नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि आरटीआई अधिनियम (RTI Act) विवादों को सुलझाने का तंत्र नहीं है (Is Not A Mechanism to Resolve Disputes), बल्कि सुलभ रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का एक साधन है (But A Means of Providing Accessible Records) । अदालत ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 दी गई जानकारी की सत्यता का निर्णय करने के लिए एक मंच नहीं है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा।
एक व्यक्ति ने आरटीआई आवेदन से नेशनल बुक ट्रस्ट से अपना सेवा रिकॉर्ड मांगा था। उन्होंने दावा किया कि मुख्य लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने गलत तरीके से उनकी रोजगार शुरू होने की तारीख 15 दिसंबर, 2008 बताई, जबकि वह 2001 से वहां काम कर रहे थे। अदालत ने पुष्टि की कि सीपीआईओ की ज़िम्मेदारी सुलभ जानकारी और दस्तावेज़ प्रदान करना है और जानकारी की सटीकता के बारे में विवाद आरटीआई कार्यवाही के दायरे से बाहर है।
अदालत ने कहा, “सीपीआईओ को सभी जानकारी/दस्तावेज उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। आरटीआई अधिनियम के तहत सीपीआईओ द्वारा प्रदान की गई ऐसी जानकारी किसी भी तरह से गलत है या नहीं, यह आरटीआई कार्यवाही के तहत विचार या निर्धारण का क्षेत्र नहीं है।” अदालत ने कहा, “एक्ट से साफ पता चलता है कि आरटीआई अधिनियम के तहत दी जाने वाली जानकारी में विभिन्न रिकॉर्ड, दस्तावेज, परिपत्र आदि शामिल हैं, जिन्हें “सार्वजनिक प्राधिकरण” किसी भी समय लागू किसी अन्य कानून के तहत प्राप्त कर सकता है।”
पीठ ने आगे कहा कि सीपीआईओ की जिम्मेदारी आरटीआई अधिनियम के तहत ऐसी सभी जानकारी और दस्तावेज प्रदान करने पर पूरी होती है जो उसके लिए सुलभ हो सकती हैं। “यह अदालत अपील में कोई योग्यता नहीं देख रही है। इसलिए, इस आवेदन को खारिज किया जाता है।”
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