लखनऊ: “आरएसएस की विचारधारा महिला विरोधी है. आरएसएस महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता है. महिलाओं को शाखा में जाने की इजाजत नहीं देता.” ये कुछ बातें हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ईर्द-गिर्द घूमता रहा है. सवाल उठते हैं कि आखिर आरएसएस महिलाओं को शाखा में क्यों नहीं जाने देता? इन्हीं सब सवालों के जवाब के साथ संगठन ने महिलाओं को लेकर एक बड़ी योजना बनाई है. महिला समन्वय नाम से संघ नई शाखा शुरू कर रहा है.
अपनी महिला विरोधी छवि से निपटने के लिए आरएसएस इसके साथ एक नई शुरूआत करने जा रहा है. अब तक संघ में राष्ट्र सेविका समिति नाम से महिला संगठन हुआ करता था लेकिन संघ के अब महिला समन्वय नाम से शाखा शुरू किए जाने की उम्मीद है, जहां महिलाएं अपनी हाजिरी देकर देश की तरक्की को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सके.
आरएसएस के महिला समन्वय की शुरूआत 24 दिसंबर को लखनऊ से हो रही है. सितंबर महीने में लखनऊ में संघ की हुई बैठक में सर सह कार्यवाह अरुण कुमार ने इसकी कार्य योजना बनाई थी. आरएसएस ने अपनी नीतियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद बदलाव किया है, जिसमें वह महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं. खुद प्रधानमंत्री और आरएसएस ने दो अलग-अलग कार्यक्रमों में महिलाओं के विकास और उन्हें सशक्त करने की जरूरतों पर जोर दिया है.
बीते साल 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान, मोदी ने “नारी शक्ति” की बात की और कहा था, “लैंगिक समानता एकता का एक अहम पैरामीटर है.” इसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने “नारी शक्ति” और “मातृ शक्ति” पर बात की. पिछले साल ही एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्र सेविका समिति दोनों अलग-अलग तरह से व्यक्ति निर्माण में जुटा है. भारत का ट्रैडिशन ही यही रहा है लेकिन “हम इस ट्रैडिशन को भूल गए और मातृ शक्ति पर कुछ सीमाएं लगा दीं, जो समय बीतने के साथ आदत बन गई.”
आरएसएस के बारे में कहा जाता है कि यह एक ‘महिला विरोधी’ संगठन है, जहां शाखाओं में महिलाओं की एंट्री नहीं दी जाती. उनके पास कोई उच्च पद नहीं होता और संगठन से जुड़ने के लिए तमाम कठोर नियमों का भी हवाला दिया जाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद भी आरएसएस को एक महिला विरोधी संगठन बता चुके हैं. अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने कहा था कि “आरएसएस-बीजेपी महिलाओं को एक ऑब्जेक्ट के तौर पर देखता है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है.”
1936 में स्थापित, राष्ट्र सेविका समिति एक हिंदू राष्ट्रवादी महिला संगठन है जो ऐतिहासिक रूप से संघ की तुलना में कम चर्चित है. इस समिति के लिए काम कर चुकी कई महिलाओं ने बीजेपी जॉइन किया है और बड़े पदों पर काम कर रही हैं. हालांकि, समिति की प्रमुख सदस्य बीजेपी से नहीं जुड़तीं और वे अपना पूरा योगदान संगठन को आगे बढ़ाने में देती हैं. आरएसएस की तुलना में राष्ट्र सेविका समिति का आकार काफी छोटा है.
संघ के पास विभिन्न राज्यों में लगभग 3,000 प्रचारक हैं, वहीं सेविका समिति में सिर्फ 52 प्रचारिका और 150 विस्तारिका ही हैं. हालांकि, समिति की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, कथित तौर पर समिति की 2700 शाखाएं हैं, जहां कमोबेश 55 हजार महिला सदस्य हैं. सेविकाएं समिति के लिए एक समर्पित स्वयंसेवक के रूप में काम करती हैं, जबकि विस्तारिकाएं संगठन से कुछ समय के लिए जुड़ती हैं. संगठन में प्रचारिका की भी सदस्यता दी जाती है, जो आमतौर पर अपनी पूरी जिंदगी संगठन को समर्पित करती हैं, ब्रह्मचर्य अपनाती हैं. प्रचारिकाओं की उम्र 25 से 70 साल तक हो सकती है.
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