नई दिल्ली (New Delhi) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने बुधवार (29 मार्च) को हरिद्वार (Haridwar) में कहा कि सनातन धर्म को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह समय की कसौटी पर खरा साबित हुआ है. संन्यास दीक्षा के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “आज आप भगवा रंग धारण करके इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने का संकल्प ले रहे हैं, लेकिन जो सनातन है, उसे किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है.”
मोहन भागवत ने आगे कहा कि “सनातन धर्म जो पहले शुरू हुआ था, आज भी है और कल भी रहेगा. बाकी सब कुछ बदल जाता है, यह पहले शुरू हुआ था, आज भी है और कल भी रहेगा. हमें अपने आचरण से लोगों को सनातन समझाना होगा.” उन्होंने आगे कहा, “सनातन आ रहा है का मतलब है, सनातन कहीं गया नहीं था. सनातन हमेशा से है. हमारा दिमाग आज सनातन की ओर जा रहा है. कोरोना के बाद लोगों को काढ़े का मतलब समझ आ गया. प्रकृति ने ऐसी करवट ली है कि हर किसी को सनातन की ओर करवट लेनी होगी.”
सनातन को सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं
उन्होंने कहा कि आज आप केसरिया रंग धारण कर इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने का संकल्प ले रहे हैं. जो ‘सनातन’ है उसे किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. यह समय की कसौटी पर खरा साबित हुआ है. मोहन भागवत ने ऋषिग्राम पहुंचकर पतंजलि संन्यास में संन्यास पर्व के आठवें दिन चतुर्वेद पारायण यज्ञ किया. इस मौके पर मौजूद स्वामी रामदेव ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद पतंजलि महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और स्वदेशी शिक्षा प्रणाली के सभी क्रांतिकारियों के सपने को पूरा कर रहा है. यही नहीं यहां जुड़कर न सिर्फ कमाई के रास्ते खुले, बल्कि जिंदगी भी बदल गई है.
गुलामी के संस्कारों को खत्म करने की जरूरत
स्वामी रामदेव ने कहा, “देश तो कई साल पहले आजाद हो गया, लेकिन शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था उसकी अपनी नहीं है. गुलामी के संस्कारों और प्रतीकों को खत्म करना होगा. यह काम केवल संन्यासी ही कर सकते हैं.”
आज कार्यक्रम में पहुंचेंगे अमित शाह
शुक्रवार (30 मार्च) को रामनवमी के अवसर पर स्वामी रामदेव 150 युवाओं को दीक्षा देकर ‘प्रतिष्ठान संन्यास’ करेंगे. इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहेंगे. वह कार्यक्रम शुरू होने के बाद पतंजलि विश्वविद्यालय के नवनिर्मित भवन का भी उद्घाटन करेंगे. बता दें कि इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन के पीछे का उद्देश्य भविष्य के नेताओं को प्राचीन ऋषियों की दृष्टि के साथ प्रशिक्षित करना है, जो भारत के लिए एक ऐसी दुनिया का नेतृत्व करें जो सभी सृष्टि की भलाई के लिए सेवा में रहता है.
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