पटना । झारखंड चुनाव में (In Jharkhand Elections) एक बार फिर (Once again) राजद और जदयू (RJD and JDU) अपनी धमक दिखाने के लिए आतुर हैं (Are Eager to show their Threat) । बिहार में ताकतवर मानी जाने वाली पार्टियां राजद और जदयू झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने को लेकर तैयार हैं। ये दोनों पार्टियां पहले भी झारखंड के चुनावी समर में उतरती रही हैं, लेकिन इनकी ताकत लगातार कमजोर होती रही है।
ऐसा नहीं कि बिहार की पार्टियां कोई पहली बार झारखंड के चुनावी समर में ताल ठोकने को तैयार हैं। बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद से ही बिहार की पार्टियां झारखंड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं। शुरुआती दौर में जदयू और राजद ने झारखंड में अपनी ताकत का एहसास भी कराया था। हालांकि, बाद में इनका वोट बैंक खिसकता चला गया।
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद विधानसभा चुनाव 2005 में हुआ। इसके बाद हुए चुनावों में राजद और जदयू की उपस्थिति लगातार कमजोर होती गई। झारखंड राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में जदयू के 16 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे जिसमें से छह विजयी हुए। उस चुनाव में जदयू को चार प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद जदयू के विधायकों की संख्या 2009 के विधानसभा चुनाव में घटकर दो रह गई। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू ने 19 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे, लेकिन एक भी प्रत्याशी विधानसभा तक नहीं पहुंच सका। 2019 में भी जदयू को एक भी सीट नहीं मिली।
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद की स्थिति भी कमोबेश जदयू की तरह है। 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 51 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे और सात उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा भी पहुंचे। लेकिन, इसके बाद 2009 के चुनाव में उनके विधायकों की संख्या घटकर पांच हो गई।
वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में राजद ने सात सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सके। 2019 में राजद के सात उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे और एक प्रत्याशी की जीत हुई। एक बार फिर राजद झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। लोगों का मानना है कि जदयू और राजद झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने सहयोगी दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरकर अपने ग्राफ को बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
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