भोपाल । सौर गांधी के नाम से मशहूर हो चुके प्रोफेसर चेतन सोलंकी सौर ऊर्जा के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ऊर्जा स्वराज आंदोलन, ऊर्जा स्थिरता, आवश्यकता और जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण जनांदोलन के रूप में कार्य कर रहे हैं। इस समय वे 11 वर्षों तक के लिए देश भर की यात्रा पर निकले हैं जिसमें कि वे अपने घर-परिवार से दूर रहकर लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें सौर ऊर्जा का उपयोग करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। सोलर ऊर्जा से चलने वाली जिस बस में वे अपनी यात्रा निकाल रहे हैं वो भी खुद उन्होंने तैयार की है । यही कारण है कि उनके कार्य से अत्याधिक प्रभावित होकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रो. सोलंकी को सौर ऊर्जा के लिए प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर बनाया है। उन्होंने कहा है कि सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की तरह ही हर बच्चे का यह भी अधिकार है कि उसे पढ़ाई के लिए क्लीन लाइट मिले।
यात्रा का उद्देश्य सोलर ऊर्जा के प्रति लोगों को जागरूक करना है-
आइआइटी बॉम्बे के एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सोलंकी ने सोलर ऊर्जा की उपयोगिता को लेकर कहा कि इस एनर्जी स्वराज यात्रा का मूल उद्देश्य लोगों को सोलर ऊर्जा के प्रति जागरूक करना है। बचपन से ही मेरी इच्छा ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कुछ करने की थी। यह कार्य भाषण एवं आफिस में बैठकर नहीं किया जा सकता था। इसको जन आंदोलन के माध्यम से ही जन-जन तक पहुंचाया जा सकता है। जहां तक सौर ऊर्जा क्षेत्र को चुनने का विषय है, वास्तव में बिगड़ते पर्यावरण से समाज के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। सौर ऊर्जा सहित अक्षय ऊर्जा के अन्य साधनों का उपयोग हमें इस खतरे से बचा सकता है।
उन्होंने कहा कि सोल (soul) हमारे कार्य का बेस है। इसका अर्थ हमारे लिए सोलर ऊर्जा है। मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव से हूं । 1976 में मैंने विद्यालय में पढ़ा था कि भारत में सोलर प्रोग्राम आया है, बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए सोलर लैंप आए लेकिन यदि 45 साल बाद भी सोलर लैंप केरोसिन लैंप को रिप्लेस नहीं कर पाए हैं तो अवश्य ही यह हम सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। यही वह कारण भी रहा जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया। लगा कुछ गड़बड़ है । ध्यान में आया कि कि सोलर लैंप ही नहीं बाकी प्रोडेक्ट में भी दिक्कते हैं जो काम नहीं करते। सोलर प्रोग्राम थोड़ी देर के लिए अच्छा होता है। जबकि बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट सोलर प्रोडक्ट में जाता है और ज्यादातर बेकार हो जाता है, इससे देश की बहुत बड़ी सम्पत्ति का नुकसान होता है। तब फिर तमाम बातें सोचने में आईं ।
उन्होंने बताया कि फिर हमने इसके पीछे की तीन समस्याएं चिन्हित कीं और उसके समाधान पर कार्य किया। समस्या के रूप में ध्यान में आया कि सौर ऊर्जा प्रोडक्ट की सबसे अधिक मांग और आवश्यकता ग्रामों में है, वहां तक पहुंचते-पहुंचते यह महंगा हो जाता है फिर यदि पहुंच गया तो इसके खराब होने पर इसके सुधार के लिए कोई नहीं होता। फिर हमेशा हम प्रोग्राम मोड में काम करते हैं । इसलिए हमारा सबसे पहले ध्यान सोलर लैंप पर गया, क्योंकि यह पढ़ने के कार्य में सबसे अधिक उपयोगी है।
सोलर प्रोग्राम सफलता में मप्र सरकार का बड़ा योगदान-
प्रो. सोलंकी ने बताया कि भारत में 30 प्रतिशत आबादी 14 साल से कम उम्र की है । इसमें भी जो जनसंख्या इन बच्चों की गांव में है वे ठीक से बिजली की बराबर से उपलब्धता न होने के चलते पढ़ नहीं पा रही है। इसका यह कारण नहीं है कि वहां बिजली नहीं है, बल्कि ज्यादातर यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्टैण्डर्ड 150 लक्स लाइट होना चाहिए जो बच्चों को नहीं मिल पाती है। इसलिए हमने सबसे अधिक सोलर लैंप पर काम किया है। इसके लिए हमने तीन समाधान निकाले, लोकोलाइजेशन। इसमें स्थानीय लोग उसे असेंबल करें, सेल करें व उसे रिपेयर करें। फिर हमने लोकल लोगों को ही ट्रेंनिंग दी। उन्हें इस कार्य के लिए तैयार किया और उसके बाद हमने फिर बच्चों तक बड़े स्तर पर यह सोलर लैंप पहुंचाए ।
प्रो. सोलंकी ने बताया कि सबसे पहले 2012 में 21 हजार बच्चों को हमने सोलर लैंप दिए । यह बहुत सफल प्रोग्राम रहा, इसमें मध्य प्रदेश की सरकार का बहुत बड़ा योगदान था। इसके बाद हमने 10 लाख बच्चों तक लैंप पहुंचाने की योजना हाथ में ली । इसमें भी हम सफल रहे । हमने राजस्थान, मप्र, महाराष्ट्र और उड़ीसा राज्यों में 01 मिलियन बच्चों को यह लैंप पहुंचाए। उसके बाद हमने तय किया कि हमें पूरे देश में इन्हें पहुंचाना है। शिक्षा के लिए हर बच्चे को क्लीन लाइट का भी अधिकार होना चाहिए। प्रो. सोलंकी इस सोलर प्रोग्राम के अंतर्गत अब तक 7.5 मिलियन परिवारों तक सोलर लैंप पहुंचा चुके हैं। यूपी, बिहार, झारखण्ड एवं देश के कई राज्यों में हम गांव-गांव तक इसे लेकर गए हैं।
विश्व को वर्ष 2050 तक 100 फीसद नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग की आवश्यकता है-
प्रो. सोलंकी ने कहा, मौजूदा परिदृश्य में दुनिया की ऊर्जा जरूरतें विरोधात्मक हैं, एक ओर जहां सर्वव्यापी ऊर्जा तक पहुंच उपलब्ध कराना जरूरी है वहीं दूसरी ओर ऊर्जा के अत्याधिक इस्तेमाल से जलवायु में काफी प्रतिकूल बदलाव आ रहा है। दुनिया का तापमान पहले ही लगभग 1°C तक बढ़ गया है। आइपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया को वर्ष 2050 तक, सिर्फ 30 सालों में 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने की जरूरत है। इसलिये, मौजूदा ऊर्जा उत्पादन परिदृश्य और इसके डिलीवरी मैकेनिज्म पर फिर से विचार करने की आवश्यकता हम सभी को है। इसलिए आज इस तरह के सौर ऊर्जा जागरण जैसे नवाचार की अत्याधिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बदलाव बड़ा करना है स्वभाविक है कि इतने बड़े बदलाव के लिए समय लगेगा जोकि हमें देना ही चाहिए।
मिल चुके हैं कई अवार्ड
मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के झिरनिया तहसील के छोटे से गांव में जन्में चेतन सोलंकी आईआईटी मुंबई के छात्र रह चुके हैं। उन्होंने गत 20 वर्ष से सौर ऊर्जा पर नवाचार और शोध कार्य किया है। उन्हें आई.ई.ई.ई. संस्था ने 10 हजार डॉलर का अवार्ड दिया है। प्रो. सोलंकी प्राइम मिनिस्टर अवार्ड फॉर इनोवेशन के विजेता भी रह चुके हैं। इसके अलावा भी उन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। वैज्ञानिक होने के साथ ही वह सौर प्रौद्योगिकी से संबंधित कई राष्ट्रीय समितियों के सदस्य हैं। (एजेंसी/हि.स.)
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