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    कैप्टन से बगावत, सिद्धू की भी गुड बुक से बाहर; चन्नी को CM बना Congress ने साधे कई निशाने

  • September 20, 2021

    नई दिल्ली। सियासत में चौंकाने के फैसले अभी तक भाजपा (BJP) लेती रही है, पर पंजाब (Punjab) में चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनाने का फैसला कर कांग्रेस (Congress) ने सभी को चौंका दिया है। पंजाब में पहली बार कोई दलित, मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा है। वहीं, पार्टी कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को भी झटका देकर विधानसभा चुनाव के लिए अपनी राह मजबूत करने में सफल रही।

    एक तीर से कई निशाने साधे
    कई माह से अंतरकलह से जूझ रही पंजाब कांग्रेस में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। चन्नी की गिनती कैप्टन के विरोधियों में होती है, पर वह सिद्धू की गुड बुक में नहीं हैं। सिद्धू की पूरी कोशिश सुखविंदर सिंह रंधावा को मुख्यमंत्री बनाने की थी, क्योंकि रंधावा ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने में पूरी ताकत झोंक दी थी। पर, पार्टी ने सिद्धू की बात नहीं मानी।


    अकाली दल और आप के दांव को पलटने की कोशिश
    चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने अकाली दल और आम आदमी पार्टी के दांव को पलट दिया है। क्योंकि, आप और अकाली दल ने दलित को उप मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया था। पंजाब में अकाली दल और बसपा गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को दलित वोटों के हाथ से निकलने का डर था।

    अकाली दल-बसपा ने 25 साल बाद फिर गठबंधन किया है
    अकाली दल और बसपा ने करीब 25 साल बाद एक बार फिर चुनावी गठबंधन किया है। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल और बसपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। गठबंधन ने 13 में से 11 सीट पर कब्जा कर लिया था। इसलिए कैप्टन के इस्तीफे के बाद पार्टी ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर अकाली-बसपा गठबंधन के असर को खत्म करने की कोशिश की है।

    पंजाब में दलित वोट करीब 32 फीसदी
    पंजाब में दलित वोट करीब 32 फीसदी है। जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर और नवाशहर में दलित मतदाताओं की तादाद 40 प्रतिशत है। पर दलित अकाली दल और कांग्रेस को वोट करते रहे हैं। बसपा संस्थापक कांशीराम का ताल्लुक पंजाब से था, इसलिए बसपा लगातार पंजाब में अपनी किस्मत आजमाती रही है। पर अभी तक बसपा कोई बड़ा फेरबदल करने में विफल रही है।

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