भोपाल। प्रदेश में अधिकारियों-कर्मचारियों की कमी का खामियाजा कई विभागों को उठाना पड़ रहा है। सबसे अधिक असर राजस्व विभाग पर पड़ रहा है। प्रदेश में राजस्व संबंधी शिकायतों की पेंडेंसी लगातार बढ़ रही है। पेंडेंसी अब तक बढ़कर 10 लाख से अधिक हो गई है। इस कारण जहां सरकार को राजस्व हानि हो रही है, वहीं लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नामांतरण (दाखिल खारिज ), ग्राम सभा की भूमि को सुरक्षित करने एवं अवैध कब्जेदारों की बेदखली, मेड़बंदी एवं पैमाइश (सीमांकन), बंटवारा, अतिक्रमण, भूमि की नीलामी से संबंधित मामले सबसे अधिक लंबित हैं।
अफसरों की कमी के कारण तहसील से लेकर संभाग आयुक्त न्यायालय तक राजस्व से संबंधित शिकायतों के निराकरण की गति धीमी हो गई है। विभाग के अधिकारी बताते हैं कि तीन साल पहले जहां लंबित प्रकरणों की संख्या 10 लाख से अधिक हो गई है। अकेले इस साल सीएम हेल्प लाइन में ही 1.95 लाख आवेदन दिए जा चुके हैं।
कई जिलों में राजस्व अधिकारियों की कमी
छतरपुर में पिछले छह माह एसडीएम नहीं है। नौगांव के एसडीएम को प्रभार दिया गया है। तहसील कार्यालय में राजस्व संबंधी शिकायतों का निराकरण लगभग ठप है। यही हाल प्रदेश के कई और जिलों में है। लोक सेवा केंद्र से अनिवार्य रूप से नामांतरण और बंटवारा के आवेदन प्रारंभ हो जाएं तो नामांतरण और बंटवारा क्रमश: 30 और 45 दिन में करना अनिवार्य है अन्यथा से तहसीलदार पर 250 रुपए प्रतिदिन का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। उधर तहसीलदार प्रकरण निबटाने में गंभीर नहीं हैं, तारीख पर तारीख बढ़ाते रहते हैं। 40 प्रतिशत पटवारी मामलों को उलझा कर रखे हुए हैं। कोई बाबू प्रकरण उलझाता है तो तहसीलदार कलेक्टर को सूचना नहीं देते। पटवारी और राजस्व निरीक्षक द्वारा रोकी गई फाइल के बारे में भी कलेक्टर को नहीं बताया जाता। 90 प्रतिशत तहसीलों में नामांतरण बंटवारा के मामले सुलझ नहीं रहे। तहसीलदार लोक सेवा केंद्र में आवेदन नहीं आने देते। सीधे तहसील कार्यालय मंगाते हैं।
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