नई दिल्ली। भारतीय संविधान (Indian Constitution) ने सभी धर्म और जाति के लोगों को बराबरी का दर्जा दिया है, लेकिन समाज में गैरबराबरी इस कदर व्याप्त है कि आयु पर भी इसका असर पड़ता है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों का विश्लेषण करके तैयार की गई एक रिपोर्ट्स (Reports) को देखें तो पता चलता है कि उच्च जाति के लोग ज्यादा समय तक जिंदा रहते हैं।
पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट रिव्यू जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक, अपर कास्ट के लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों से औसतन 4 से 6 साल ज्यादा जीवित रहते हैं। इसी तरह अपर कास्ट और मुसलमानों के बीच औसत उम्र का अंतर ढाई साल तक का है। गौर करने वाली बात ये भी है कि ये अंतर किसी एक क्षेत्र, समय या आय के स्तर तक सीमित नहीं है और इन वर्गों के स्त्री-पुरुष दोनों में नजर आता है।
स्टडी के मुताबिक, निचली कास्ट और अपर कास्ट की महिलाओं के बीच जीवन प्रत्याशा में मामूली गिरावट आई लेकिन अनुसूचित जाति, मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के पुरुषों में अपर कास्ट की तुलना में बहुत कम हो गई। अनुसूचित जनजाति के पुरुषों में तो ये घटकर 8.4 साल तक पहुंच गई जबकि इन वर्गों की महिलाओं में 7 साल का अंतर देखा गया।
इन्हीं आंकड़ों पर एक अन्य स्टडी के दौरान देखा गया कि औसत उम्र का ये अंतर चाहे जन्म के समय से मापा जाए या फिर जीवन के बाकी सालों से, बदलता नहीं है। मतलब निचली जातियों में नवजातों की ज्यादा मृत्यु दर से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है. इसी तरह, आर्थिक स्थिति में अंतर का भी औसत उम्र के इस फासले पर फर्क नहीं पड़ता।
जबकि निचली जातियों में नवजातों की ज्यादा मृत्यु दर से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसी तरह, आर्थिक स्थिति में अंतर का भी औसत उम्र के इस फासले पर फर्क नहीं पड़ता। सर्वे से ये बात भी निकलकर आई कि यूपी, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदीभाषी बेल्ट के लोगों में जीवन प्रत्याशा बाकी जगहों के मुकाबले सबसे कम है।
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