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स्टडी में खुलासा; दलितों से 6 साल तक ज्यादा जिंदा रहते हैं अपर कास्ट के लोग

April 23, 2022

नई दिल्ली। भारतीय संविधान (Indian Constitution) ने सभी धर्म और जाति के लोगों को बराबरी का दर्जा दिया है, लेकिन समाज में गैरबराबरी इस कदर व्याप्त है कि आयु पर भी इसका असर पड़ता है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों का विश्लेषण करके तैयार की गई एक रिपोर्ट्स (Reports) को देखें तो पता चलता है कि उच्च जाति के लोग ज्यादा समय तक जिंदा रहते हैं।
पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट रिव्यू जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक, अपर कास्ट के लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों से औसतन 4 से 6 साल ज्यादा जीवित रहते हैं। इसी तरह अपर कास्ट और मुसलमानों के बीच औसत उम्र का अंतर ढाई साल तक का है। गौर करने वाली बात ये भी है कि ये अंतर किसी एक क्षेत्र, समय या आय के स्तर तक सीमित नहीं है और इन वर्गों के स्त्री-पुरुष दोनों में नजर आता है।



एक रिपोर्ट के अनुसार इस स्टडी के दौरान 1997-2000 और 2013-16 में किए गए नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों की तुलना की गई. 1997-2000 का सर्वे देखें तो पुरुषों के मामले में जीवन प्रत्याशा अपर कास्ट में 62.9 साल थी जबकि मुस्लिम पुरुषों में 62.6, ओबीसी में 60.2. एससी में 58.3 और एसटी में 54.5 साल थी. 2013-16 के सर्वे के मुताबिक, अपर कास्ट पुरुषों में 69.4 साल, मुस्लिमों में 66.8, ओबीसी में 66, एससी में 63.3 और एसटी में 62.4 साल थी। 1997-2000 के सर्वे के हिसाब से महिलाओं की स्थिति देखें तो अपर कास्ट की औरतों की औसत उम्र 64.3 साल, मुस्लिम (62.2), ओबीसी (60.7), एससी 58 और एसटी (57 साल) थी. 2013-16 के सर्वे के मुताबिक अपर कास्ट महिलाओं की औसत उम्र 72.2 साल, मुस्लिम (69.4), ओबीसी (69.4) एससी (67.8) और एसटी (68 साल) रही।
इन आंकड़ों के विश्लेषण से देखा गया कि अपर कास्ट और अनुसूचित जाति के लोगों में जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) का अंतर जो पहले 4.6 साल था, वो बढ़कर 6.1 साल तक पहुंच गया। अपर कास्ट के पुरुषों और मुस्लिम पुरुषों में तो ये और भी तेजी से कम हुआ है. इनमें अंतर पहले 0.3 साल का था, जो 2.6 साल हो गया. अपर कास्ट और मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के बीच इस दौरान जीवन प्रत्याशा 2.1 से बढ़कर 2.8 साल हो गई।

स्टडी के मुताबिक, निचली कास्ट और अपर कास्ट की महिलाओं के बीच जीवन प्रत्याशा में मामूली गिरावट आई लेकिन अनुसूचित जाति, मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के पुरुषों में अपर कास्ट की तुलना में बहुत कम हो गई। अनुसूचित जनजाति के पुरुषों में तो ये घटकर 8.4 साल तक पहुंच गई जबकि इन वर्गों की महिलाओं में 7 साल का अंतर देखा गया।

इन्हीं आंकड़ों पर एक अन्य स्टडी के दौरान देखा गया कि औसत उम्र का ये अंतर चाहे जन्म के समय से मापा जाए या फिर जीवन के बाकी सालों से, बदलता नहीं है। मतलब निचली जातियों में नवजातों की ज्यादा मृत्यु दर से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है. इसी तरह, आर्थिक स्थिति में अंतर का भी औसत उम्र के इस फासले पर फर्क नहीं पड़ता।

जबकि निचली जातियों में नवजातों की ज्यादा मृत्यु दर से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसी तरह, आर्थिक स्थिति में अंतर का भी औसत उम्र के इस फासले पर फर्क नहीं पड़ता। सर्वे से ये बात भी निकलकर आई कि यूपी, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदीभाषी बेल्ट के लोगों में जीवन प्रत्याशा बाकी जगहों के मुकाबले सबसे कम है।

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