वाशिंगटन। दुनियाभर में महिलाओं के बांझपन (female infertility) पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जाता था लेकिन अब पता लगा है कि पिछले कुछ दशकों में पुरुषों की प्रजनन क्षमता भी तेजी से घटी (decreased male fertility) है। लेकिन विशेषज्ञ पुरुषों से जुड़े आधे मामलों में इसकी कोई एक वजह नहीं पकड़ पा रहे हैं। हालांकि, कुछ अध्ययनों के आधार पर उनका कहना है कि पर्यावरण में मौजूद विषैले तत्व (toxic substances present in the environment) इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
क्या है बांझपन
अगर एक साल तक नियमित रूप से शारीरिक संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण न हो पाए तो इस अक्षमता को बांझपन कहा जाता है। इन मामलों में चिकित्सक दोनों साथियों का आकलन करके ही बांझपन का निर्धारण करते हैं।
पुरुषों में वीर्य विश्लेषण है आधार
पुरुषों में प्रजनन क्षमता के मूल्यांकन का आधार वीर्य विश्लेषण होता है। इसमें मौजूद शुक्राणुओं का आकलन करने के कई तरीके हैं। मसलन, पुरुषों में निकलने वाले शुक्राणुओं की कुल संख्या और शुक्राणु सांद्रता (प्रति मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या) इसके आम तरीके हैं। लेकिन ये प्रजनन क्षमता के सटीक मानक नहीं हैं। ज्यादा बेहतर आकलन कुल गतिशील शुक्राणुओं को देखकर किया जाता है।
प्रजनन अक्षमता के कारण
पुरुष की प्रजनन क्षमता मोटापे से लेकर हार्मोन असंतुलन व आनुवंशिक बीमारियां के कारण प्रभावित हो सकती है। कई इलाज से ठीक हो जाते हैं। पर 1990 के दशक में शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि कई जोखिमों को नियंत्रित करने के बावजूद पुरुषों की प्रजनन क्षमता दशकों से घटी है।
शुक्राणुओं में 50 फीसदी कमी
कई अध्ययनों में निष्कर्ष निकला कि आज पुरुषों में पहले की तुलना में कम शुक्राणु बन रहे हैं और वे कम सेहतमंद हैं। 1992 में शोध में पता लगा कि 60 वर्षों में दुनियाभर के पुरुषों में शुक्राणुओं की तादाद 50 फीसदी घटी है। 2017 के अध्ययन में शुक्राणु सांद्रता में 50-60 फीसदी कमी देखी गई। 2019 में गतिशील शुक्राणु संख्या पर गौर किया गया। शोध में सामने आया कि 16 वर्षों में सामान्य गतिशील शुक्राणुओं की तादाद वाले पुरुषों का अनुपात 10 फीसदी गिरा है।
प्रजनन पर हावी पर्यावरणीय विषैलापन
वैज्ञानिकों को जानवरों के बारे में तो यह जानकारी थी कि पर्यावरणीय विषाक्तों के संपर्क में आने से हार्मोन का संतुलन बिगड़ता है और प्रजनन क्षमता घटती है। मनुष्यों में नतीजे जानने के लिए बीते कुछ समय से वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए वातावरण में खतरनाक रसायनों पर गौर करना शुरू किया। हालांकि अभी प्रजनन क्षमता घटाने वाला ऐसा कोई खास रसायन निर्धारित नहीं हुआ है पर इसे लेकर साक्ष्य बढ़ते जा रहे हैं।
खराब हवा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
प्लास्टिक की पानी की बोतलों, भोजन डिब्बों में मिलने वाला प्लास्टिसाइजर पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन और वीर्य क्षमता पर असर डालता है। कीटनाशक, खरपतवार नाशक, भारी धातु, जहरीली गैसें और अन्य सिंथेटिक सामग्रियां इन खतरनाक रसायनों में शामिल है। हवा में पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड भी शुक्राणु की गुणवत्ता प्रभावित करते हैं। लैपटॉप, मॉडम, मोबाइलों से निकलने वाली रेडिएशन का भी गिरती शुक्राणु संख्या से संबंध मिला है।
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