नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह (gay marriage) को मान्यता देने की मांग का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में है। केंद्र सरकार (Central government) ने मान्यता की मांग वाली याचिका का विरोध (protest petition) किया है। केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को प्रकृति के खिलाफ बताया है। अगली सुनवाई 18 अप्रैल को है। फिलहाल देश में समलैंगिक विवाह (gay marriage) एक नई बहस का मुद्दा बन गया है।
ताजा मामले में देश के पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह ने चार पन्नों का एक खुला पत्र लिखा है। जिसमें 21 न्यायाधीशों ने कहा कि जो लोग इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठा रहे हैं, हम सम्मानपूर्वक उनसे आग्रह करते हैं कि वे भारतीय समाज और संस्कृति के सर्वोत्तम हित में ऐसा करने से बचें। इसके परिणाम विनाशकारी होंगे।
पत्र में आगे कहा गया है कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है। हाल ही के दिनों में संविधान पीठ के पास भेजे जाने के बाद इसकी सुनवाई में भी तेजी आई है। लेकिन इससे लोगों को धक्का लगा है। समलैंगिक विवाह को परिवार व्यवस्था को कमजोर करने के लिए थोपा जा रहा है। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के बाद समाज और परिवार पर गहरा आघात होगा। भारत में विवाह का मतलब सिर्फ शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति नहीं है। बल्कि इससे दो परिवारों के बीच सामाजिक, धार्मिक और संस्कारों का गठबंधन होता है। दो विपरीत लिंगी के बीच शादी से उत्पन्न संतान समाज के विकास के लिए जरूरी है।
लेकिन दुर्भाग्य से विवाह के महत्व का ज्ञान न रखने वाले कुछ समूहों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इसका मुखर होकर विरोध किया जाना चाहिए। पत्र में यह भी कहा गया है कि सदियों से भारतीय संस्कृति पर हमले होते रहे हैं, लेकिन बची रही। अब स्वतंत्र भारत में भारतीय संस्कृति पश्चिमी विचारों, दर्शनों और प्रथाओं के आरोप का सामना कर रही है, जो राष्ट्र के लिए बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है।
न्यायाधीशों ने कहा कि राइट टू चॉइस के नाम पर कुछ संस्थाएं निजी स्वार्थ के लिए न्यायपालिका का दुरुपयोग कर रही हैं। पत्र में लिखा गया है कि हमें पश्चिमी देशों से सबक लेना चाहिए। विशेष रूप से अमेरिका से, जहां 2019 और 2020 में एड्स के 70 फीसदी मामले समलैंगिक या उभयलिंगी पुरुषों में मिले हैं। आगे यह भी लिखा गया है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर संसद और राज्यों के विधानमंडल में बहस होनी चाहिए। आम लोगों की राय को भी लिया जाना चाहिए। इस खुले पत्र पर 21 पूर्व न्यायाधीशों के हस्ताक्षर हैं। जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसएन झा, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एमएम कुमार, गुजरात लोकायुक्त पूर्व जस्टिस एसएम सोनी और पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा शामिल हैं।
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