नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने डीएमके नेता (DMK leader)और तमिलनाडु(Tamil Nadu) की स्टालिन सरकार(Stalin Government) के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी (Minister V. Senthil Balaji)को कड़ा अल्टीमेटम दिया है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें या तो मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा या फिर जेल वापस जाना होगा। यह निर्देश मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी जमानत के बाद फिर से मंत्री बनाए जाने के संबंध में आया है। सुप्रीम कोर्ट ने बालाजी की जमानत पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनके मंत्री बनने से चल रहे मुकदमे में गवाहों के विश्वास पर असर पड़ सकता है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “हम जमानत देते हैं और अगले दिन आप मंत्री बन जाते हैं। यह गवाहों पर दबाव डाल सकता है।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बालाजी को पद और स्वतंत्रता में से एक को चुनना होगा। शीर्ष अदालत ने उन्हें चेतावनी भी दी कि यदि वह तमिलनाडु में मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते हैं तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि ‘नौकरी के बदले नकदी’ घोटाले से संबंधित धनशोधन मामले में जमानत मिलने के कुछ दिनों बाद ही बालाजी को तमिलनाडु के कैबिनेट मंत्री के रूप में बहाल कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इस बात की गंभीर आशंका है कि आप हस्तक्षेप करेंगे और गवाहों को प्रभावित करेंगे। आपको पद (मंत्री) और स्वतंत्रता के बीच चुनाव करना होगा। आप क्या चुनाव करना चाहते हैं, आप हमें बताइए।’’
शीर्ष अदालत ने पिछले फैसले का हवाला दिया जिसमें दर्ज किया गया था कि उन्होंने लोगों को अपने खिलाफ शिकायतें वापस लेने के लिए मजबूर किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत दिए जाने का मतलब गवाहों को प्रभावित करने की शक्ति नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘जब आप मंत्री थे, तो आपने जिस तरह से समझौता कराया था, उसके बारे में आपके खिलाफ स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज किए गए हैं और कार्यवाही रद्द की जाती है। जमानत दिए जाने का मतलब गवाहों को प्रभावित करने का अधिकार नहीं है। अतीत में भी आपने गवाहों को प्रभावित किया है।’’
परिणामस्वरूप, शीर्ष अदालत ने उन्हें एक विकल्प दिया। पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, आपको पद और स्वतंत्रता के बीच चुनाव करना होगा। मंत्री के रूप में आपके खिलाफ ऐसे कठोर निष्कर्ष दर्ज किए गए हैं।’’ उच्चतम न्यायालय बालाजी की जमानत को वापस लेने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में इस बात को आधार बनाया गया है कि उन्होंने मामले में गवाहों को प्रभावित किया था। शीर्ष अदालत ने बालाजी के खिलाफ उनके पिछले आचरण के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला पाया, जिसमें दिखाया गया कि उन्होंने गवाहों के काम में हस्तक्षेप किया और उन्हें प्रभावित किया।’
पीठ ने कहा, ‘‘अब, आप उसी स्थिति में वापस चले गए हैं, जहां एक मंत्री के रूप में आप प्रभावित करने में सक्षम होंगे। हमने आपको बिल्कुल अलग आधार पर जमानत दी है। आपको एक बात याद रखनी चाहिए। उन्हें गुणदोष के आधार पर जमानत नहीं दी गई थी। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के संभावित उल्लंघन के आधार पर जमानत दी गई थी। जब आप मंत्री के पद पर हैं, तो हम क्या संकेत दे रहे हैं?’’
बालाजी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई सीधा निष्कर्ष नहीं था। तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर गवाहों को प्रभावित करने की कोई संभावना है तो मुकदमे को राज्य से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपने हलफनामे का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि बालाजी ने गवाहों को प्रभावित किया। करूर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले बालाजी को 14 जून, 2023 को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला तब का है जब वह 2011 और 2015 के बीच पिछली अन्नाद्रमुक सरकार के दौरान परिवहन मंत्री थे।
पिछले साल 13 फरवरी को, तमिलनाडु के राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद से बालाजी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर, 2024 को उन्हें राहत दी थी तथा इसी के साथ उनकी 471 दिनों की कैद को समाप्त कर दिया। ईडी ने 2018 में तमिलनाडु पुलिस द्वारा तीन प्राथमिकी दर्ज किए जाने और कथित घोटाले में पीड़ितों की शिकायतों के आधार पर आरोपों की जांच के लिए जुलाई 2021 में धनशोधन का मामला दर्ज किया था। आरोपपत्र में दावा किया गया है कि मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान राज्य परिवहन विभाग में पूरी भर्ती प्रक्रिया ‘भ्रष्ट शासन’ में बदल गयी थी।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved