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हरियाणा में आरक्षण बना बेहतर

November 23, 2021

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हरियाणा की भाजपा सरकार ने आरक्षण के मामले में साहसिक निर्णय किया है, जो देश की सभी सरकारों के लिए अनुकरणीय है। जब समाजवादी नेता डा. लोहिया कहा करते थे कि ‘पिछड़े पावें सौ में साठ’ तो मेरे-जैसे नौजवान उनका डटकर समर्थन करते थे और फिर प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब आरक्षण का कानून बनाया तो उसका समर्थन भी बड़ी-बड़ी जनसभाओं में हमने किया लेकिन हमने महसूस किया कि हमारे समाज के जिन लोगों के साथ सदियों से अन्याय हुआ है उन्हें जातीय आधार पर आरक्षण देने से सिर्फ मुट्ठीभर लोगों को न्याय मिलेगा लेकिन जो वास्तव में पिछड़े हैं, गरीब हैं, ग्रामीण हैं, अशिक्षित हैं और मेहनतकश हैं वे सब सदियों से जहां पड़े हुए हैं, वहीं पड़े रहेंगे। उन सबका उद्धार होना बेहद जरूरी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने हमारे इस विचार पर मुहर लगाई और फैसला किया कि आरक्षित जातियों में जो मलाईदार परत है, उसके लोगों को आरक्षण की जरूरत नहीं है। हरियाणा सरकार ने इस मलाईदार परत की नई व्याख्या की है और उसे और चौड़ा कर दिया है। 1993 में नरसिंह राव सरकार ने तय किया था कि जिस परिवार की आमदनी एक लाख रु. वार्षिक या उससे ज्यादा है, उसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं मिलेगा। 2004 में यह सीमा ढाई लाख, 2008 में छह लाख और 2017 में केंद्र सरकार ने इसे आठ लाख रुपये कर दिया है लेकिन हरियाणा सरकार की नौकरियों में यह सीमा 6 लाख घोषित की गई है। याने हरियाणा सरकार की आरक्षित नौकरी उसे ही मिलेगी, जिसकी आमदनी 50 हजार रु. महीने से कम हो। साथ ही सांसदों, विधायकों, क्लास-1, क्लास-2, सेना के मेजर रेंक और उससे ऊपर के अधिकारियों और उनके परिवारवालों को भी आरक्षण नहीं मिलेगा। आरक्षण का यह प्रावधान संवैधानिक पदों पर बैठे सभी लोगों पर भी लागू होगा।

दूसरे शब्दों में आरक्षण का मूल चरित्र ही बदल रहा है। इसका आधार जाति तो अब भी है लेकिन उसमें भी जरूरत ऊपर है और जाति नीचे है। मेरा तर्क यह है कि जाति के आधार पर आरक्षण को पूर्णरूपेण खत्म किया जाना चाहिए। उसका आधार जन्म नहीं, जरूरत होना चाहिए। जातीय आरक्षण देकर सरकार क्या करती है? पिछड़ों और अनुसूचितों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाती है लेकिन उसके चलते देश में जातिवाद के जहरीले सांप को दूध पिलाती है। जन्मना जातिवाद ने देश की राजनीति का गला घोंट रखा है। लोकतंत्र का मजाक बना रखा है। लोकतंत्र को भेड़तंत्र बना रखा है। यदि जातीय आरक्षण खत्म कर दिया जाए और जो सचमुच पिछड़ें हों, गरीब हो और वे चाहे किसी भी जाति या मजहब के हों, यदि उन्हें और उनके बच्चों को शिक्षा और चिकित्सा में आरक्षण मिले तो उन्हें नौकरियों में आरक्षण के लिए भीख का कटोरा नहीं फैलाना पड़ेगा। वे अपनी योग्यता के दम पर पदासीन होंगे, उनका स्वाभिमान सुरक्षित रहेगा और उनका व्यवहार सबके लिए उत्तम कोटि का होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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