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    नगरीय निकाय चुनाव की राह में आरक्षण बना रोड़ा

  • March 17, 2021

    भोपाल। मप्र (MP)में नगरीय निकाय चुनाव टलने के आसार बढ़ गए हैं। हाईकोर्ट (High Court) की ग्वालियर खंडपीठ (Gwalior Bench) जैसा ही एक आदेश इंदौर खंडपीठ ने दिया है। इस आदेश में साफ कहा गया है कि बार-बार एक ही वर्ग के लिए आरक्षण करना अन्य वर्ग को चुनाव से वंचित रखना है। निकाय चुनाव में आरक्षण की प्रक्रिया में रोटेशन पालिसी (Rotation policy) का पालन होना चाहिए। कोर्ट के इन आदेशों के बाद राज्य में नगरीय निकाय चुनाव एक बार फिर अटकनें की अटकलें तेज हो गई हैं। बता दें कि इसके पहले हाईकोर्ट (High Court) की ग्वालियर खंडपीठ ने मुरैना, उज्जैन की 2 नगर निगम सहित 81 नगर पालिकाओं और नगर परिषदों के महापौर-अध्यक्ष पद के आरक्षण पर रोक लगा दी थी। आरक्षण को चुनौती देने वाली ऐसी ही एक याचिका पर इंदौर (Indore) खंडपीठ ने फैसला सुनाया। एक पार्षद नरोत्तम चौधरी (Narottam Chodhary) और एक पूर्व पार्षद सुरेन्द्र कुमार ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षित की गई सीटों पर लंबे समय से चले आ रहे आरक्षण को दोहराया गया है। इसमें रोटेशन (The rotation) है ही नहीं। संविधान में व्यवस्था दी गई है कि रोटेशन प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। दोनों खंडपीठों में दायर याचिकाओं में यही बताया गया कि एक निकाय में लगातार एक ही वर्ग को आरक्षण दिया जा रहा है।

    आरक्षण पर रोक के बाद क्या
    अब सवाल उठ रहा है कि आरक्षण पर रोक के बाद नगरीय निकाय चुनावों का क्या होगा। हालांकि ग्वालियर खंडपीठ के फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) लगाने और अप्रैल में खंडपीठ को जवाब देने और रोक हटाने का आग्रह करने की बात कही है। लेकिन इंदौर खंडपीठ से भी ऐसा ही आदेश आने के बाद सरकार का रुख देखने वाला होगा। वैसे नगरीय विकास विभाग के मंत्री भूपेन्द्र सिंह का तर्क है कि आरक्षण तय करने में कोई त्रुटि नहीं हुई है, हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि ग्वालियर हो या इंदौर खंडपीठ दोनों की रोक के आदेश कुछ निकायों के लिए हैं, लिहाजा सरकार अपनी तरफ से शेष स्थानों पर चुनाव की तैयारियों में लगी है। एक अटकल यह भी है कि सरकार नए सिरे से आरक्षण की प्रक्रिया करने की बात कर सकती है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो यह साफ है कि निकाय चुनाव में देरी होगी और निकाय चुनाव होने तक प्रशासकीय अफसरों के भरोसे चलते रहेंगे।

    भोपाल (Bhopal) में भी याचिका दायर करने की तैयारी
    ग्वालियर और इंदौर खंडपीठ में आरक्षण में रोक के आदेश के बाद भोपाल में भी महापौर और पार्षद पद के लिए हुए आरक्षण को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी चल रही है। कुछ नेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ग्वालियर की याचिकाओं के साथ अपनी याचिका लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। याचिका में रोटेशन पद्धति पर सवाल उठाया जाएगा कि भोपाल नगर निगम में अब तक महापौर का पद ओबीसी ओपन यानी हर ओबीसी के लिए क्यों आरक्षित नहीं किया गया। गौरतलब है कि अब तक दो बार ओबीसी महिला के लिए महापौर पद का आरक्षण हुआ है। लेकिन ओबीसी ओपन के लिए आरक्षण न होने पर रोटेशन पद्धति को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। बता दें कि राज्य में निकाय चुनाव को लेकर जबसे आरक्षण प्रक्रिया चल रही है, तभी से इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। दिसंबर 2020 में कांग्रेस के प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता ने छिंदवाड़ा निकायों में आरक्षण को लेकर सवाल उठाए थे, तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कहा था कि यह कांग्रेस वाले आदिवासियों का भला होते नहीं देखना चाहते।

     

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