लंदन (London)। तेजी से विकसित होते शहरों (fast growing cities) में प्रदूषण (pollution ) से मौतें बढ़ी (Deaths increased) हैं। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों (South and Southeast Asian cities) में यह आंकड़ा 150,000 तक पहुंच गया है। एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में 18 शहर ऐसे हैं, जहां खतरा अधिक देखने को मिल रहा है। इन शहरों में लाखों लोग वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले मृत्यु के जोखिम का सामना कर रहे हैं।
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, खतरा साल 2100 तक और भी बढ़ सकता है। लाखों की संख्या के बजाय करोड़ों लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। वायु प्रदूषण के अपर्याप्त नियंत्रण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और अमोनिया जैसे प्रदूषकों की निगरानी के लिए चुनौतियां बढ़ जाती हैं। इसके चलते हानिकारक सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) भी बनाते हैं।
इन सभी में से सबसे खतरनाक प्रदूषक पीएम 2.5 है, जो सीधे फेफड़ों की गहराई तक प्रवेश करके मानव शरीर में लगभग हर अंग को प्रभावित करता है। पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से 2005 में दक्षिण एशियाई शहरों में 149,000 और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों में 53,000 शुरुआती मौतें हुईं।
ढाका, मुंबई व बंगलूरू में पीएम 2.5 से ज्यादा मौतें
यह आंकड़ा 2018 में दक्षिण एशियाई शहरों में 126,000 से बढ़कर 275,000 और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों में 26,000 से 80,000 हो गया। बांग्लादेश में ढाका और भारत में मुंबई और बंगलूरू में पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से होने वाली शुरुआती मौतों में सबसे अधिक वृद्धि हुई थी।
अहमदाबाद, बंगलूरू और चेन्नई जैसे शहरों में बढ़ता प्रदूषण का स्तर
नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा 2005 और 2018 के बीच एकत्र किए गए उपग्रह अवलोकन 18 शहरों में अधिकांश वायु प्रदूषकों के बढ़ते स्तर को दर्शाते हैं। इस अध्ययन में दक्षिण एशिया के अहमदाबाद, बंगलूरू, चेन्नई, चटगांव, ढाका, हैदराबाद, कराची, कोलकाता, मुंबई, पुणे और सूरत तथा दक्षिण पूर्व एशिया के बैंकांक, हनोई, हो ची मिन्ह सिटी, जकार्ता, मनीला, नोम पेन्ह और यंगून का विश्लेषण किया गया।
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