जोशीमठ । चमोली जिले (Chamoli District) में उगाई जाने वाली हल्दी (Turmeric) की गुणवत्ता काफी बेहतर है। वैज्ञानिकों के एक शोध में यह बात सामने आई है कि अन्य जगह पर पाई जाने वाली हल्दी के मुकाबले चमोली की हल्दी में करक्यूमिन (curcumin) की मात्रा काफी अधिक है।
उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने हल्दी पर किए शोध में पाया कि चमोली जिले के 1500 से 1700 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली हल्दी में अन्य जगह के मुकाबले करक्यूमिन की मात्रा काफी अधिक है। शोध में शामिल रहे पीजी कॉलेज गोपेश्वर में वनस्पति विज्ञान के प्रवक्ता (वर्तमान में पुरोला महाविद्यालय में तैनात) डॉ. विनय नौटियाल ने बताया कि उत्तराखंड से 117 सैंपल लिए गए थे। जबकि केरल से पांच और मेघालय से एक सैंपल आया।
मेघालय सरकार 2018 से हल्दी पर बड़े स्तर पर प्रोजेक्ट चला रही है। जबकि केरल में हल्दी व मसाले का बड़ा शोध संस्थान है। इन जगह की हल्दी की व्यावसायिक रूप में काफी मांग है। शोध में इन जगह की हल्दी का उत्तराखंड की हल्दी से तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इसमें सामने आया कि चमोली में उगाई जाने वाली पारंपरिक हल्दी में करक्यूमिन की मात्रा 10.64 प्रतिशत है। जबकि अन्य जगह की हल्दी में यह मात्रा कम है। करक्यूमिन सबसे अच्छा एंटीसेप्टिक माना जाता है। फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री अधिक करक्यूमिन वाली हल्दी को ज्यादा महत्व देती है। चमोली से मंडल, घिंघराण और निजमुला घाटी से सैंपल लिए गए थे।
शोध कार्य में शामिल वैज्ञानिक
इस शोध कार्य में राजकीय पीजी कॉलेज मालदेवता रायपुर देहरादून, डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ साइंस ग्राफिक ऐरा विवि, पीली कॉलेज गोपेश्वर और यूकास्ट संस्थान शामिल रहे।
स्वरोजगार का बेहतर विकल्प बन सकती है हल्दी
हल्दी का उत्पादन आने वाले समय में बेहतर स्वरोजगार का विकल्प बन सकता है। इसके पौधे को वन्यजीव कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यदि हल्दी को सरकार की ओर से प्रमोट किया जाए तो यह एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में विकसित हो सकती है।
किस क्षेत्र की हल्दी में कितना करक्यूमिन
क्षेत्र/राज्य | करक्यूमिन (प्रतिशत में) |
चमोली | 10.64 |
पौड़ी | 8.70 |
उत्तरकाशी | 6.88 |
मेघालय | 7.10 |
केरल | 6.77 |
केरल और मेघालय की हल्दी की व्यावसायिक क्षेत्र में काफी मांग है। इसलिए यहां के सैंपल लेकर उत्तराखंड की हल्दी से तुलना की गई। चमोली की हल्दी में 10.64 प्रतिशत तक करक्यूमिन पाया गया। हल्दी पर यदि बेहतर काम किया जाए तो इससे स्वरोजगार के बेहतर अवसर पैदा हो सकते हैं। मेघालय सरकार की तर्ज पर यदि पांच साल का इस पर प्रोजेक्ट चलाया जाए तो यह करोड़ों की इंडस्ट्री बन सकती है। – डॉ. विनय नौटियाल, प्रो. वनस्पति विज्ञान विभाग।
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