नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Republic Day) के रूप में मनाया जाता है। इस साल देश अपना 75वां गणतंत्र दिवस (75th republic day) मनाएगा। साल 1947 में देश को ब्रिटिश राज से आजादी (independence from british rule) मिली, लेकिन उसका अपना संविधान (Constitution) नहीं था। 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान मिला. इस दिन भारतीय संविधान लागू हुआ और इसके साथ ही भारत एक संप्रभु राज्य बन गया, जिसे गणतंत्र घोषित किया गया। इसलिए इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और नागरिकों से इसका पालन करने की अपेक्षा की जाती है। आइए जानते हैं अपने संविधान की कुछ विशेषताएं …।
पृष्ठभूमि:
– 15 अगस्त, 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। यह वह तारीख है जिसे लॉर्ड लुई माउंटबेटन द्वारा निर्धारित किया गया था जैसा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मित्र देशों की शक्तियों को जापान की अधीनता की दूसरी वर्षगांठ के रूप में चिह्नित किया गया था।
– भारत के स्वतंत्र होने के बाद इसका अपना कोई संविधान नहीं था। जो कानून उस समय विद्यमान थे, वे एक सामान्य कानून प्रणाली और “भारत सरकार अधिनियम, 1935” के एक संशोधित संस्करण पर आधारित थे, जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा लाया गया था।
– लगभग दो सप्ताह बाद डॉ. बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने हेतु एक मसौदा समिति नियुक्त की गई और अंततः भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 (संविधान दिवस) को तैयार हुआ और इसे स्वीकार किया गया। दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ।
– 19 दिसंबर, 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में “पूर्ण स्वराज” या पूर्ण स्वशासन का एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया। कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा यह घोषणा की गई थी कि 26 जनवरी, 1930 को भारतीयों द्वारा “स्वतंत्रता दिवस” के रूप में मनाया जाएगा।
– कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में रावी नदी के तट पर तिरंगा फहराया। इस दिन को अगले 17 वर्षों तक पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाता राह। इस प्रकार जब 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अपनाया गया, तो कई लोगों ने राष्ट्रीय गौरव से जुड़े इस दिन (26 जनवरी) पर कानूनी दस्तावेज़ को स्वीकार करना और लागू करना आवश्यक समझा।
महत्व:
– गणतंत्र दिवस भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन भारत ने अपना संविधान अपनाया था और देश के अपने कानूनों की घोषणा की थी।
– ब्रिटिश औपनिवेशिक भारत सरकार अधिनियम (1935) को अंततः बदल कर देश एक नई शुरुआत करने के लिये तैयार था। इसके अतिरिक्त इसी दिन भारत के संविधान की प्रस्तावना को भी लागू किया गया था।
– प्रस्तावना मोटे तौर पर एक व्यापक बयान है जो संविधान के प्रमुख सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है। इसी दिन भारत ने औपनिवेशिक व्यवस्था को समाप्त किया और एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनकर एक नई सुबह की शुरुआत की।
– यह दिन हमारे समाज और हमारे सभी नागरिकों के बीच स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिये हमारे लोकतंत्र और गणतंत्र के मूल्यों को मनाने का अवसर है।
– यह दिन एक विशाल राष्ट्र की इच्छा का जश्न मनाता है जो भारत की विविधता में एकता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए एकल संविधान के माध्यम से शासित होना चाहता है।
भारतीय लोकतंत्र के लिये खतरा:
– हालाँकि भारत ने दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपनी एक जगह बनाई है, लेकिन यह विकास के नाम पर बहुत पीछे छूट जाता है। गरीबी वर्तमान भारत की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है, अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे अमीर एवं गरीब के बीच एक विशाल विभाजन के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। विषम महिला अनुपात, आर्थिक अवसरों तथा मज़दूरी में असमानता, हिंसा, कुपोषण आदि के साथ लैंगिक भेदभाव जैसे सभी स्तरों पर बना हुआ है।
सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद ने भारत में एक बहुत ही खतरनाक रूप ओए भयानक अनुपात हासिल कर लिया है। यह भारत की राष्ट्रवादी पहचान का अपमान है तथा इसकी उभरती धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के लिये दुखद है। भारतीय लोकतंत्र भी क्षेत्रवाद की चुनौतयों का सामना कर रहा है जो मुख्य रूप से क्षेत्रीय असमानताओं और विकास में असंतुलन का परिणाम है।
राज्य स्तर पर और राज्य के भीतर निरंतर असमानता के कारण उपेक्षा, अभाव और भेदभाव की भावना पैदा होती है। चुनाव,जो कि लोकतंत्र की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति के रूप में काम करते हैं, राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा धन एवं बाहुबल के दुरुपयोग से प्रभावित होते हैं। अधिकांश राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं; वहीं चुनाव के लिये धन का स्रोत संदिग्ध बना हुआ है।
संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र
संप्रभु: ‘संप्रभु’ का तात्पर्य है कि भारत न तो किसी अन्य राष्ट्र पर निर्भर है, बल्कि एक स्वतंत्र राज्य है। इसके ऊपर किसी का कोई अधिकार नहीं है, यह अपने मामलों का संचालन करने हेतु स्वतंत्र है।
लोकतांत्रिक: यह ‘लोकप्रिय संप्रभुता’ के सिद्धांत पर आधारित है, अर्थात सर्वोच्च शक्ति का अधिकार आम लोगों के पास होता है।
गणतंत्र: प्रस्तावना इंगित करती है कि भारत में एक निर्वाचित प्रमुख होता है ,जिसे राष्ट्रपति कहा जाता है। वह अप्रत्यक्ष रूप से पाँच वर्ष की निश्चित अवधि के लिये चुना जाता है।
आगे की राह
हमारे गणतंत्र ने एक लंबा सफर तय किया है और हमें इस बात की सराहना करनी चाहिये कि नई पीढ़ियाँ इस गणतंत्र को कितनी दूर ले आई हैं। साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिये कि हमारी यह यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है।
मात्रा से गुणवत्ता तक- उपलब्धि और सफलता के हमारे मानदंड को फिर से जाँचने की आवश्यकता है; ताकि इसे एक साक्षर समाज से एक ज्ञानी समाज की ओर ले जाया जा सके।
समावेश की भावना को अपनाए बिना भारत के विकास की कोई भी अवधारणा पूरी नहीं हो सकती है। भारत का बहुलवाद इसकी सबसे बड़ी ताकत है और दुनिया के लिये यह सबसे बड़ा उदाहरण है।
‘भारतीय मॉडल’ विविधता, लोकतंत्र और विकास के एक तिपाई पर टिका हुआ है जहाँ हम एक को दूसरे के ऊपर नहीं चुन सकते हैं।
राष्ट्र को सभी वर्गों और सभी समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्र एक ऐसे परिवार में बदल जाए जो प्रत्येक व्यक्ति में विशिष्टता और क्षमता का आह्वान व प्रोत्साहन कर सके।
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