भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर प्रदेश के सभी पंचायत निकायों के जनप्रतिनिधियों को पूर्ववत अधिकार प्रदान करके एक तरह से पुनर्जीवित कर दिया गया है। लेकिन इन अधिकारों का कोई औचित्य बड़े जनप्रतिनिधियों को नहीं समझ आ रहा। वो अभी भी अफसरशाही से परेशान हैं। जिला और जनपद पंचायत अध्यक्ष जैसे जनप्रतिनिधियों का कहना है कि अधिकारी अपने मनमाफिक काम कर रहे हैं, उनसे किसी प्रकार का राय-मशविरा नहीं लिया जा रहा। और तो और पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने के बाद आज तक एक भी बैठक नहीं बुलाई गई। कमोवेश ऐसे ही हालात पूरे प्रदेश में हैं। इस साल के शुरूआती दिनों मेंं पंचायत प्रतिनिधियों का एक दल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिला था। इस दल ने ग्रामीण क्षेत्रों में अनियोजित और मनमाने तरीके से विकास कार्य कराए जाने की बात कही थी।
इसके बाद सीएम ने 6 जनवरी 2022 को प्रदेश के समस्त ग्राम पंचायतों के सरपंचों को वित्तीय अधिकार प्रदान कर दिए थे। जबकि जनवरी माह के मध्य में जिला पंचायत और जनपद अध्यक्षों को पूर्ववत सुविधाएं प्रदान करने के आदेश दे दिए। प्रदेश के मुखिया की इस पहल के बाद जनप्रतिनिधियों में उम्मीद जागी थी कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में प्रशासन उनकी भी सहभागिता सुनिश्चित करेगा। ग्राम पंचायतों में तो सचिव भुगतान के लिए चैक बनाते समय सरपंचों से हस्ताक्षर करा रहे हैं, लेकिन सीएम के आदेश के करीब डेढ़ महीने बाद भी जिला पंचायत और जनपद पंचायत अध्यक्षों के प्रति अफसरों का रवैया उपेक्षापूर्ण है। अफसरों की ओर से न तो जनपद अध्यक्षों को पूछा जा रहा है और न ही जिला पंचायत अध्यक्ष को।
मनमाने तरीके से विकास कार्य
जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों का कहना है कि प्रशासन के लोग अपने मन माफिक तरीके से कार्य करा रहे हैं। उनसे न तो राय-मशविरा लिया जाता है और न ही उनकी सलाह को तवज्जो दी जाती है। विकास कार्य हो तो रहे हैं, लेकिन उनकी समानांतर मानीटिरंग करने वाला प्रशासनिक अमले के अलावा कोई नहीं है। अफसरों ने अभी भी सारे अधिकार अपने पास ही सीज कर रखे हैं। पंचायतों से जुड़े जनप्रतिनिधि कांग्रेस के हों या भाजपा के- सभी की दशा एक जैसी ही है।
साल-भर से नहीं मिला वाहन
बताया जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्षों को पिछले साल अप्रैल माह से न तो वाहन भत्ता दिया गया है और ना ही ड्राइवर। परिणामस्वरूप वो हैं तो राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त जनप्रतिनिधि, लेकिन जिला सरकार के नजरिये ये उनकी हैसियत कुछ भी नहीं है।
अफसर कर रहे मनमानी
पंचायत-सरकार के प्रतिनिधियों की दशा कैसी भी हो, लेकिन नगरीय निकायों के भी निवृतमान जनप्रतिनिधि अपनी शक्तियां वापस किए जाने की अपेक्षा रखते हैं। नगरीय निकायों के निवृतमान जनप्रतिनिधियों का भी कहना है कि कमिश्नर और सीएमओ मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। पेंडिंग कार्य पहले की तरह उनसे सवाल करने वाला या उन पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है। इसलिए शहरी निकायों के जनप्रतिनिधि भी चाहते हैं कि पंचायतों की तरह उनको भी वित्तीय अधिकार प्रदान किए जाएं। ताकि अफसरों की मनमानी और मनमाने तरीके से काम कराने की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सके।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved