नई दिल्ली (New Delhi)। यूपी की राजनीति(Politics) में जातीय समीकरण (ethnic equation)का ढांचा और गाढ़़ा होता जा रहा है। लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Elections) परिणाम आने के बाद तस्वीर(picture) पूरी तरह से अब साफ हो चुकी है। यह परिणाम बता रहा है कि यूपी की राजनीति में पिछड़ों का दबदबा बढ़ गया है। पिछड़ी जातियों की गोलबंदी का आलम यह रहा कि इस चुनाव में 34 सांसद पिछड़ा वर्ग के चुनकर आए हैं। क्षत्रिय और ब्राह्मण की नुमाइंदगी कम हुई है।
पिछड़ों का 40 से अधिक सीटों पर असर
यूपी में वैसे तो प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर पिछड़ों और अति पिछड़ों का असर है, लेकिन पूर्वांचल व अवध की करीब 40 सीटों पर इनका सर्वाधिक दबदबा है। इनमें खासतौर पर यादव, कुर्मी, पटेल, सैंथवार, चौरसिया, कसेरा, ठठेरा जातियां प्रमुख हैं। अति पिछड़ी जातियों में देखा जाए तो गिरी, गूजर, गोसाई, लोध, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, कुम्हार, पाल, बघेल, साहू, विश्वकर्मा, भुर्जी श्रीवास जैसी जातियां हैं। राजनीतिक रूप से यह जातियां काफी जागरूक मानी जाती हैं और समाज के लिए काम भी करती हैं। पूर्वांचल और अवध की अधिकतर सीटों पर इन्हीं जातियों के सहारे राजनीतियां पार्टियां बाजी मारती रही हैं।
अवध की तराई में पिछड़े तारणहार
अवध की 16 सीटों की अगर बात करें तो लखीमपुर खीरी से लेकर बस्ती तक नदी के किनारे तराई वाले क्षेत्रों में कुर्मी जातियां सबसे अधिक हैं। इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां भी हैं जो राजनीतिक पार्टियों के लिए तारणहार बनते रहे हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव रहे हो या फिर बसपा संस्थापक कांशीराम। पिछड़ी जातियों को लेकर सबसे अधिक प्रयोग इन्हीं दोनों नेताओं ने किया। इन दोनों नेताओं ने पिछड़े नेताओं की ऐसी गोलबंदी की कि यूपी की राजनीति में इनका दबादबा बनता चला गया।
सर्वाधिक ओबसी सांसद
लोकसभा चुनाव परिणाम की बात करें तो सबसे अधिक ओबीसी सांसद चुने गए हैं। पश्चिमी यूपी में जाट और गुर्जर नेताओं का खूब जादू चला। अवध और पूर्वांचल में राजभरप, कुशवाहा, कुर्मी व सैंथवार जैसी जाति के नेताओं ने खूब चमत्कार किए हैं। जिस सीटों पर कभी अगड़े जीता करते थे, वहां पिछड़ों ने अपनी पैठ बना ली है।
किसके खाते में कितनी सीट
ओबीसी 34
एससी 18
ब्राह्मण 11
क्षत्रिय 07
भूमिहार 02
वैश्य 03
मुस्लिम 05
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