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    जनप्रतिनिधित्व: एक कठोर साधना

  • December 13, 2021

    – हृदयनारायण दीक्षित

    विविधता प्रकृति का नियम है। वैसे समूचा ब्रह्मांड एक इकाई है। कार्ल सागन जैसे विद्वान ने इसे ‘कासमोस’ कहा है। भारतीय चिंतन दर्शन में संपूर्ण प्रकृति को ब्रह्म कहा गया है। यह एक ब्रह्मांड ही भिन्न-भिन्न रूपों में हम सबको दिखाई पड़ता है। नदियाँ, पर्वत, वनस्पतियाँ, वन-उपवन और सभी जीव उसी एक के अलग-अलग रूप हैं। इन्द्र वैदिक काल के प्रतिष्ठित देवता हैं। ऋग्वेद में स्तुति है कि इन्द्र ही सभी रूपों में रूप प्रतिरूप प्रकट हो रहे हैं। विविधता रूपों में है और अनेकता में प्रकट होती है। प्रकृति विविध आयामों में एक है। विविधता रूप के स्तर पर है और एकता आंतरिक स्तर पर है। इसी तरह लोकतंत्र का विस्तार है। यहां सारी विविधताएँ एक साथ प्रेमपूर्ण ढंग से सक्रिय रहती हैं।

    आधुनिक विश्व में लोकतंत्र सर्वोत्तम शासन प्रणाली के रूप में जाना जाता है। विश्व के अधिकांश देशों में लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्थाएं विद्यमान हैं। लोकतंत्र जनता का शासन है। लोकतंत्र एक सारवान जीवन पद्धति भी है। यह भारत के लोगों की जीवनशैली है। अपने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुधा ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा दिया है। सबको साथ लेकर चलना भारत के राष्ट्र जीवन की प्रकृति है। विश्व लोकमंगल इसका ध्येय है।

    भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह देश अनेक विविधताओं से भरा-पूरा है। इंद्रधनुष प्रकाश की किरणों के विभाजित होने से बनता है। इसमें सात रंग हैं। लेकिन प्रकाश एक है। प्रकृति में भी करोड़ों जीव हैं लेकिन सब मिलाकर एक प्रकृति है। इसमें विराट विविधता है। यह विविधिता ऊपरी है। लेकिन आंतरिक एकता गहरी है।

    लोकतंत्र का व्यापक अर्थ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र भी है। कोई देश वास्तविक रूप में तभी लोकतांत्रिक है जब उसके नागरिकों को समान सामाजिक अवसर और प्रतिष्ठा उपलब्ध होती है। सबको अवसर लोकतंत्र का प्राण है। समान आर्थिक अवसर और राजनीति में भी समान भागीदारी लोकतंत्र का मुख्य भाग है। लोकतंत्र में सभी सामाजिक विभिन्नताओं, असमानताओं के बीच सामंजस्य होता है।

    भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह विविधताओं से परिपूर्ण देश है। यहाँ विभिन्न आर्थिक वर्ग हैं। इनमें समानता जरूरी है। सामाजिक समानता भी आवश्यक है। भारत विविधतापूर्ण राष्ट्र है। विविधता में एकता भारत की विशेषता है। यह भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। विविधता जीवंत लोकतंत्र का अच्छा उदाहरण है।

    लोकतंत्र पूर्ण जीवन पद्धति है। इसमें विविधता में एकता रहती है। डॉ. अम्बेडकर ने भारत की विविधता के बारे में लिखा है, ‘‘यह सही है कि भारत में लोग आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, लेकिन यहाँ अलगाव के साथ एक सांस्कृतिक एकता, सबको एक-सूत्र में बांधे रखती है।’’ यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है। यहां के लोकतंत्र में सांस्कृतिक एकता है। भारत को ध्यान से देखते हैं तो चारों दिशाओं में अनेक भाषाएंँ बोली जाती हैं। जलवायु भी सतरंगी है। उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम अनेक तरह के पर्व-त्यौहार व मान्यताएं भी हैं। यहाँ अनेक विचार हैं और अनेक दर्शन। यहाँ कपिल ऋषि का सांख्य दर्शन है तो बादरायण का अद्वैत ब्रह्म भी है। कर्मयोग है। परमाणुवाद है। यहाँ ईश्वरवाद है तो अनीश्वरवाद भी है और बहुदेव उपासना भी। सहमति और असहमति से भरा-पूरा है भारत का लोकतंत्र। यहाँ सभी स्तर पर विविधता है। विविधता के सूत्र सहमति और असहमति के बावजूद सर्व समावेशी लोेकतंत्र का ताना-बाना बुनते हैं। भारत के राष्ट्र जीवन में लोकतंत्र की उपस्थिति बड़ी गहरी है। ऋग्वेद दुनिया का प्राचीनतम ज्ञान कोष है। इसमें भौतिक लोकतंत्र के साथ आध्यात्मिक लोकतंत्र भी है। सबकी अपनी आस्तिकता है।

    ऋग्वेद के रचना काल से ही यहाँ वैचारिक विविधता दिखाई पड़ती है। यहाँ अनेक पंथिक समुदाय हैं। तमाम भाषाएँ और तमाम रीति-रिवाज हैं। विविधता में एकता भारतीय लोकतंत्र का आधार है। ऋग्वेद में सभा और समितियों का स्पष्ट उल्लेख है। सभा और समितियाँ प्राचीन लोकतंत्रीय संस्थाएँ हैं। वैदिक साहित्य में मोटे तौर पर पाँच बड़े जन-समूह हैं। ऋग्वेद में सरस्वती को ‘‘पंच जाता वर्धयन्ती’’ कहा गया है। इन जन समूहों को पाँचजन्य भी कहा गया है। पाँच बड़े जनसमूह मिलकर भारत का लोकतांत्रिक समाज गढ़ते हैं। सहमति और असहमति मिलती है। प्रश्न और तर्क चला करते हैं। विविध समूह अपनी पहचान रखते हैं और अपने-अपने समूहों की ओर से जन प्रतिनिधित्व करते हैं। एकता बनाए रखते हैं।

    राज व्यवस्था के स्तर पर भी सब अपने-अपने पक्ष का विचार रखते हैं। वे विचार के आधार पर राजनैतिक समूह भी बनाते हैं। स्वाधीनता आंदोलन में भी सभी जन ब्रिटिश सत्ता से लड़े थे। ब्रिटिश सत्ता की विदाई व स्वाधीनता प्राप्ति के समय अपना संविधान गढ़ने की चुनौती थी। संविधान सभा की रचना भी विविधता पूर्ण प्रतिनिधित्व के आधार पर हुई थी। संविधान निर्माताओं के सामने इस विशाल विविधतापूर्ण देश के लिए आदर्श शासन प्रणाली गढ़ने की चुनौती थी। संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली अपनाई। संसदीय प्रणाली में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का आदर्श सिद्धांत अपनाया गया है। सरकार को जनप्रतिनिधियों के समक्ष जवाबदेह भी बनाया गया। संविधान के मसौदे पर सभा में लंबी बहस हुई थी। सरकार के स्थायित्व का भी प्रश्न उठा। डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि ‘‘हमने ‘स्थायित्व-स्टेबिलिटी’ के सापेक्ष ‘जवाबदेही-रिस्पांसबिलिटी’ को महत्व दिया है। यहाँ आदर्श जन प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए वंचित जन समूहों को राजनैतिक आरक्षण की व्यवस्था है। संसद और विधान मंडलों के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया गया था। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से विधायिका बनी। विधायिका का बहुमत समूह सरकार को जवाबदेह बनाता है और सरकार भी चुनता है। जनप्रतिनिधि यहाँ जनता के हितों के लिए अपना पक्ष रखते हैं।

    जनप्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण धारणा है। वे अपने-अपने जन समूह और राजनैतिक विचार का पक्ष रखते हैं। विधायिका में बहुदलीय प्रतिनिधि होते हैं। वाद-विवाद, संवाद होते हैं। जनप्रतिनिधि संस्थाओं में विरोधी विचार भी प्रकट होते हैं। सत्ता और विपक्ष के बीच मतभेद भी होते हैं। ऐसे मतभेदों से लोकतंत्र मजबूत होते हैं। असली शक्ति जनता के पास होती है। संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में ‘‘हम भारत के लोग’’ की शक्ति का उल्लेख है।

    जनप्रतिनिधित्व एक कठोर साधना है। इसमें वाक संयम महत्वपूर्ण है। बीते बीस वर्ष से वाक् संयम टूटा है। शब्द अराजकता बढ़ी है। जनप्रतिनिधत्व का सौंदर्य घटा है। आम जन अपने प्रतिनिधि से तमाम अपेक्षाएँ रखते हैं। आम जन ही किसी दल समूह को सत्ता चलाने का जनादेश देते हैं और अल्पमत वाले समूह को सरकार की आलोचना करने का अधिकार देते हैं। यहाँ अल्पमत की उपेक्षा नहीं है। अल्पमत की भी प्रतिष्ठा है। अल्पमत के कर्तव्य भी सुपरिभाषित है। उसे सरकार को सुझाव देना चाहिए। सकारात्मक विरोध उसका कर्तव्य है। लेकिन कुछ समय से सदनों में व्यवधान है। संप्रति सदन में अनुचित आचरण और व्यवहार के लिए निलम्बित सदस्यों को लेकर गतिरोध है। यह शुभ नहीं है। हंगामा सार्थक संवाद का विकल्प नहीं हो सकता।

    जनप्रतिनिधि को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए संयम और अनुशासन में रहना चाहिए। आमजन अपने जन प्रतिनिधि के आचार व्यवहार को ध्यान से देखते हैं। संसदीय लोकतंत्र में आचार और व्यवहार की महत्ता है। विचार अभिव्यक्ति का सौन्दर्य जरूरी है। इससे विविधता की अभिव्यक्ति के साथ राष्ट्रीय एकता भी विकसित होती रहती है। काॅमनवेल्थ पार्लियामेण्ट्री एसोसिएशन लोकतंत्रीय संस्थाओं को मजबूत करने की दिशा में लंबे अरसे से सक्रिय है। इस सक्रियता के कारण काॅमनवेल्थ देशों के साथ भारत के लोगों का संवाद चलता है। लोकतंत्र का कोई विकल्प नहीं है। लोकतंत्र में विविधता के साथ एकता का भी आदर्श गतिशील रहता है।

    (लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।)

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