नई दिल्ली। अगले तीन साल (next three years) में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (India’s Space Economy) का आकार 1,280 करोड़ डॉलर ($1280 million) यानी करीब 1.05 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। इसमें बड़ी संख्या में उपग्रहों के प्रक्षेपण और प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी की अहम भूमिका होगी। यह दावा इंडियन स्पेस एसोसिएशन और अर्नस्ट एंड यंग (Indian Space Association and Ernst & Young) ने अपनी रिपोर्ट ‘भारत में अंतरिक्ष के लिए अनुकूल वातावरण: भारत में समावेशी प्रगति’ में सोमवार को किया।
साल 2020 में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार 900 करोड़ डॉलर आंका गया था। रिपोर्ट के अनुसार, उपग्रहों की मांग लगातार बढ़ रही है। भारत में इनके निर्माण में तेजी आएगी। साथ ही वैश्विक कंपनियां व स्टार्ट-अप्स भी यहां आकर्षित होंगे, जिससे अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करना चाह रही कंपनियों को मदद मिलेगी।
2025 में अंतरिक्ष के कोर-क्षेत्रों में भारतीय कारोबार
– उपग्रह सेवाएं : 460 करोड़ डॉलर
– धरती से दी जानी वाली सेवाएं: 400 करोड़ डॉलर
– उपग्रह निर्माण : 320 करोड़ डॉलर
– प्रक्षेपण सेवाएं : 100 करोड़ डॉलर
सरकार के कदम मददगार
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत से अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने के लिए सरकार के उठाए कदम मददगार बन रहे हैं। प्राइवेट कंपनियों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
2020 में प्रक्षेपण सेवाएं 60 करोड़ डॉलर की थीं, जिसमें सालाना 13 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। सस्ते प्रक्षेपण और उपग्रहों की उपलब्धता, बड़े स्तर पर उत्पादन आदि फैक्टर वैश्विक स्तर पर भारत को उपभोक्ता लाकर देंगे। यही वजह है कि प्राइवेट कंपनियां इस क्षेत्र में विशेष निगाह बनाए हुए हैं और इनोवेशन पर ध्यान दे रही हैं।
स्पेस पार्क से बढ़ रहीं जड़ें
देश में स्पेस पार्क की स्थापना से प्राइवेट कंपनियों को अपनी जड़ें जमाने में मदद मिलती दिख रही है। कई कंपनियां लोअर अर्थ ऑर्बिट (लियो – धरती से 160 से 2000 किमी तक ऊंचाई पर), मिडियम अर्थ ऑर्बिट (मियो – 2000 से 35786 किमी ऊंचाई) और जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट (जियो – 35786 से अधिक ऊंचाई) में उपग्रह भेजने से जुड़ी तकनीकों पर काम कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि इस समय भारत में करीब 100 स्टार्टअप अंतरिक्ष क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
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