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    जून में 0.25 फीसदी बढ़ सकती है रेपो रेट, पेट्रोल-डीजल समेत खाने-पीने की चीजें होगी महंगी

  • May 05, 2022

    नई दिल्ली। महंगाई (Dearness) काबू में करने के लिए रेपो दर अचानक बढ़ाने के बाद आरबीआई अगले महीने यानी जून में झटका देने की तैयारी में है। जानकारों का कहना है, केंद्रीय बैंक जून में भी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) रेपो दर में 25 आधार अंकों (0.25 फीसदी) की बढ़ोतरी कर सकती है।

    आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास(Governor Shaktikanta Das) ने कहा कि महंगाई से जुड़े संवेदनशील उत्पादों जैसे खाने के तेल(edible oil) की कीमतें पहले से ऊंची हैं, प्रमुख उत्पादक देशों ने आयात पर प्रतिबंध (import ban) लगा दिया है। खाद की भी कीमतें ऊंची हैं। अन्य इनपुट लागत ज्यादा होने से खाद्य की कीमतों पर असर दिखा है। 12 खाद्य पदार्थों में 9 की कीमतें मार्च में बढ़ी हैं। ऐसे में इस महीने भी महंगाई ज्यादा रहने वाली है।

    चिंता : पहले से था ब्याज दरें बढ़ने का अनुमान
    ब्याज दरें बढ़ने का अनुमान पहले से ही था। दुनियाभर के केंद्रीय बैंक (Central bank) ऐसा ही कर रहे हैं। आरबीआई ने अप्रैल की एमपीसी बैठक में कहा था, खुदरा महंगाई उसके ऊपरी दायरे से बाहर निकल गई है। ऐसे में अब ध्यान विकास दर की जगह महंगाई को काबू करने पर है।



    मौका : भारत के लिए खुले बाजार के अवसर
    हाल में हुए व्यापार (Business) समझौतों और भू-राजनीतिक हालात के चलते भारत के लिए बाजार के नए अवसर खुले हैं। दास ने कहा, वैश्विक बाधाओं के बीच भारत का विदेश व्यापार जुझारू बना हुआ है। अप्रैल में वस्तुओं का निर्यात मजबूत रहा, तो मार्च में सेवा निर्यात नई ऊंचाई पर पहुंच गया।

    खुदरा महंगाई लगातार तीन महीने से आरबीआई के ऊपरी दायरे से बाहर
    09 खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ीं मार्च में 12 में से
    10 साल के सरकारी बेंचमार्क का यील्ड बढ़कर 7.40 फीसदी पहुंच गया। ऐसे में आरबीआई उदार रुख को वापस ले सकता है।

    गेहूं की कमी से घरेलू कीमतों पर असर
    दास ने कहा, वैश्विक स्तर पर गेहूं की कमी से घरेलू कीमतों पर भी असर पड़ रहा है। कुछ प्रमुख उत्पादक देशों के निर्यात पर पाबंदियों और युद्ध के कारण सूरजमुखी तेल के उत्पादन में कमी से खाद्य तेल के दाम मजबूत बने रह सकते हैं। पशुचारे की लागत बढ़ने से पॉल्ट्री, दूध और डेयरी उत्पादों के दाम बढ़ सकते हैं। कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बने हुए हैं। इससे कंपनियां लागत का बोझ ग्राहकों पर डाल रही हैं।

    जानिए…हालात व वजहें, जिनके कारण बढ़ीं दरें
    महंगाई बढ़ी क्योंकि युद्ध हुआ :
    रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है। पश्चिमी देश रूस पर पाबंदियां कड़ी करते जा रहे है। इससे तेल व अनाज (खासतौर पर गेहूं) आपूर्ति में कमी आ रही है।

    महामारी के बाद आया तेज सुधार : कोविड-19 महामारी में भारत सहित अधिकतर देशों ने आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाने के लिए वित्तीय पैकेज, छूट और योजनाओं का सहारा लिया। जैसे-जैसे देश महामारी से उबरते गए, छूट जारी रहने से बाजार में पैसा भी बढ़ता रहा। पैसा बढ़ा तो मांग और मांग बढ़ी तो महंगाई भी बढ़ी।

    तेल-अनाज नहीं, सभी क्षेत्रों पर असर :
    तेल व अनाज की बढ़ती कीमतों का असर सभी क्षेत्रों पर होगा। आरबीआई और सरकार को उम्मीद है कि ब्याज दरें बढ़ने से अत्यधिक महंगाई के हालात आने से रोके जा सकते हैं।

    अभी तो और बढ़ेगी महंगाई :
    तीन महीने से महंगाई 6 फीसदी की दर से बढ़ रही है। ऐसे में रेपो रेट बढ़ाने का तात्कालिक फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है, लेकिन हालात को और बिगड़ने से रोकने की कोशिश की गई है।
    बैंकों से पैसा लाने की कोशिश : कैश रिजर्व रेशो भी 50 बेसिस प्वॉइंट बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत किया है। यह बैंकों को आरबीआई के पास ज्यादा पैसा लाने के लिए मजबूर करेगा। पर ग्राहकों को ऋण देने के लिए कम पैसा होगा।

    वृद्धि से जरूरी महंगाई रोकना :
    बढ़ती महंगाई नागरिकों को सरकार के खिलाफ ज्यादा नाराज करती है। भारत भी इससे अलग नहीं है, बल्कि आर्थिक विकास दर के मुकाबले महंगाई दर पर ज्यादा चर्चा होती है। यही वजह है कि सरकार के लिए इस महंगाई की बढ़ती दर को काबू करना प्राथमिकता बन गया।

    एसबीआई के मुताबिक : फिलहाल ऊंचे स्तर पर ही बनी रहेगी महंगाई
    सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने कहा है कि रेपो दरों में बढ़ोतरी के बाद भी महंगाई दर कुछ समय तक ऊंची बनी रहेगी। महंगाई की दरें मार्च में तो 17 महीने के ऊपरी स्तर पर पहुंच गईं थीं। मार्च, 2023 तक रेपो दर 5.15 फीसदी तक जा सकती है। आरबीआई की कोशिश है कि वह ब्याज दरों को कोरोना के पहले के स्तर पर ले आए।

    एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष की रिपोर्ट के अनुसार, यह बढ़ोत्तरी बैंकों के लिए अच्छा कदम है। हालांकि इससे उनके फंड की लागत बढ़ेगी क्योंकि नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी आधा फीसदी का इजाफा किया है। हालांकि, जमाओं पर बैंकों को ज्यादा ब्याज देना होगा।

    कोरोना काल में दो बार घटी थीं दरें
    रिपोर्ट के मुताबिक, 21 मई से सीआरआर लागू होने के बाद बैंकों के सिस्टम से पैसे निकलने शुरू हो जाएंगे। कोरोना काल में दो बार में रेपो रेट में 1.15 फीसदी की कटौती हुई थी। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए फरवरी, 2019 से रेपो दर में 2.5 फीसदी कटौती हुई थी। इसमें 27 मार्च, 2020 को 0.75 फीसदी और 22 मई, 2020 को 0.40 फीसदी की कटौती भी शामिल है।

    21 देश बढ़ा चुके हैं दरें
    पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। अप्रैल-मई में 21 देशों ने दरों में इजाफा किया है। इनमें से 14 देशों ने आधा फीसदी की बढ़ोतरी की है। अमेरिका का केंद्रीय बैंक भी इसी हफ्ते ब्याज दरों में आधा फीसदी बढ़ोतरी कर रहा है।

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