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    इमामों को पारिश्रमिक संविधान का हनन, SC के आदेश को सूचना आयोग ने बताया गलत

  • November 26, 2022

    नई दिल्ली: मस्जिदों के इमामों को पारिश्रमिक देने के सुप्रीम कोर्ट के 1993 के आदेश को केंद्रीय सूचना आयोग ने संविधान का उल्लंघन बताया है. आयोग का कहना है कि यह गलत मिसाल स्थापित करने के साथ ही अनावश्यक राजनीतिक विवाद और सामाजिक वैमनस्य की वजह बन गया है. यह बात केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने दिल्ली सरकार और दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा इमामों के वेतन विवरण की मांग करने वाली एक अर्जी के जवाब में कही. एक कार्यकर्ता द्वारा दायर आरटीआई की सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा कि अदालत का यह आदेश संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है. संविधान में कहा गया है कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी धर्म विशेष के लिए नहीं किया जा सकता. ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में वक्फ बोर्ड को निर्देश दिया था कि वह उसके द्वारा संचालित मस्जिदों के इमामों को पारिश्रमिक प्रदान करे.

    गत दिनों सुभाष अग्रवाल नाम के व्यक्ति ने सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act 2005) के तहत आवेदन करके दिल्ली की मस्जिदों में इमामों को दी जाने वाली सैलरी के बारे में पूरी जानकारी मांगी थी. उन्होंने दिल्ली में उन मस्जिदों की कुल संख्या जानने की कोशिश की, जहां इमामों को वेतन मिलता है, जिसमें राशि, सालाना खर्च और भुगतान के लिए जिम्मेदार सक्षम अधिकारी का ब्यौरा शामिल हो. उन्होंने अपने आरटीआई एप्लीकेशन यह भी पूछा था कि क्या हिंदू मंदिरों के पुजारियों को भी इस तरह का वेतन दिया जा रहा है? हालांकि, एलजी और मुख्यमंत्री के कार्यालयों ने आरटीआई आवेदन का जवाब नहीं दिया. मुख्य सचिव के कार्यालय ने इस आवेदन को राजस्व विभाग और दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास ट्रांसफर कर दिया. वहीं, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने सुभाष अग्रवाल को दिए जवाब में कहा कि उनका कोई भी प्रश्न इससे संबंधित नहीं है.


    इस मामले में केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने इन दोनों विभागों के जन सूचना अधिकारियों को नोटिस जारी कर 18 नवंबर को सुनवाई के लिए पेश होने का निर्देश दिया था. साथ ही सभी अधिकारियों से मामले से जुड़ी सभी फाइलों को सुनवाई के लिए लाने को कहा था. अब केंद्रीय सूचना आयोग का कहना है कि शीर्ष अदालत ने इमामों को वेतन का आदेश देकर संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया है, खासतौर से अनुच्छेद 27 का, जिसमें कहा गया है कि करदाताओं के पैसे का उपयोग किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जाएगा.केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने निर्देश दिया है कि उनके आदेश की एक प्रति उपयुक्त कार्रवाई के साथ केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी जाए ताकि सभी धर्मों के पुजारियों, इमामों के मासिक वेतन मामले में संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक के प्रावधानों को समान ढंग से लागू किया जा सके. उन्होंने दिल्ली वक्फ बोर्ड को यह निर्देश दिया कि वह आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को 25 हजार रुपये का मुआवजा दे, क्योंकि उन्हें अपने आरटीआई आवेदन का संतोषजनक जवाब पाने में काफी वक्त व संसाधन लगाने पड़े.

    गौरतलब है कि, सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में वक्फ बोर्डों को उनके द्वारा संचालित की जा रही मस्जिदों में काम करने वाले इमामों को पर्याप्त वेतन देने का आदेश दिया था. जस्टिस आरएम सहाय की खंडपीठ ने कहा था, ‘हम इस दलील को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि वक्फ अधिनियम में किसी भी वैधानिक प्रावधान के अभाव में मस्जिदों की धार्मिक गतिविधियों की देखभाल करने वाले इमाम किसी पारिश्रमिक के हकदार नहीं हैं.’ ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन ने यह याचिका दायर की थी. इमामों के इस संगठन ने वक्फ बोर्डों द्वारा उनके शोषण के खिलाफ मौलिक अधिकार लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्डों को निर्देश देने की मांग की थी कि वे इमामों के साथ कर्मचारी के रूप में व्यवहार करें. साथ ही उन्हें गुजर-बसर के लिए मूल वेतन का भुगतान करें. हरियाणा, कर्नाटक और दिल्ली सहित कई राज्यों में वक्फ बोर्ड इमामों को वेतन देने के आदेश का का पालन कर रहे हैं.

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