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    जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना ही पर्याप्त नहीं, कश्मीरी लोगों के दिलों को भी जोड़ना होगाः भागवत

  • October 17, 2021

    नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh’s) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से अनुच्छेद 370 को हटाने से कुछ हद तक समस्याओं का समाधान हुआ है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है, अभी कश्मीरी लोगों के दिलों को भी जोड़ना होगा।

    नागपुर के चिटणवीस सेंटर में शनिवार को ‘सेंटर फॉर लद्दाख, जम्मू-कश्मीर स्टडीज’ द्वारा प्रकाशित “जम्मू कश्मीर: ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में अनुच्छेद 370 के संशोधन के उपरांत” और “आधुनिक लद्दाख के निर्माता 19वें कुशोग बकुला” पुस्तिकाओं का सरसंघचालक ने विमोचन किया। डॉ. भागवत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 एक अन्याय की तरह था। मौजूदा सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इसे हटाकर इस अन्याय को दूर किया है, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। अभी कश्मीरी लोगों के बेपटरी मन को हमें पटरी पर लाना होगा। हालांकि कश्मीरियों के दिलों को शेष भारत से जोड़ना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें समाज को भी अहम भूमिका निभानी होगी। डॉ. भागवत ने आह्वान किया कि समाज को आगे आकर कश्मीरी जनता के मन को अपनी ओर यानी शेष भारत की ओर आकर्षित कर उनके दिलों में स्नेह की ज्वाला प्रज्ज्वलित करनी होगी। तभी हमारे अंदर का अपनत्व और राष्ट्रचिंतन सही दिशा में चलेगा।


    डॉ. भागवत ने कहा कि कई लोगों को ऐसा लगता है कि महज अनुच्छेद 370 हटाने से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। नतीजतन समाज में एक तरह की वैचारिक सुस्ती आई है। सरसंघचालक ने कहा कि यह तो केवल प्रारंभ है। असली काम तो अभी शुरू हुआ है। बतौर भागवत जम्मू-कश्मीर में इस वक्त तीन वैचारिक धाराएं हैं। उसमें पहली धारा पाकिस्तान से सांठगाठ कर चलनेवाले लोगों की है। वहीं दूसरी धारा उन लोगों की है जो ऊपरी तौर पर खुश नजर आते हैं। राज्य में हो रहे विकास से संतुष्ट हैं, लेकिन मन में चाहते हैं कि कश्मीर स्वतंत्र ही रहे। तीसरी धारा उन लोगों की है जो दिल से भारत को अपना मानते हैं। डॉ. भागवत ने कहा कि विगत दिनों मुंबई में हुए कार्यक्रम के कुछ कश्मीरी युवा शामिल हुए थे। वह भारत के संविधान को अपना संविधान मानते हैं, लेकिन महज कुछ युवाओं के विचार को हम पूरी घाटी का विचार नहीं कह सकते।

    डॉ. भागवत ने कहा कि सरकार व्यवस्थाएं खड़ी कर सकती है, लेकिन लोगों के मन में जबरन राष्ट्रीयत्व का भाव उत्पन्न नहीं कर सकती। नतीजतन समाज को आगे आकर यह काम करना होगा। डॉ. भागवत ने आह्वान किया कि जिस तरह शरीर के अंगों में एक दूसरे के लिए अपनत्व होता है वैसा भाव कश्मीर और शेष भारत में होना चाहिए।

    डॉ. भागवत ने बताया कि 1948 में पाकिस्तान के कबाइली हमले के वक्त आधुनिक लद्दाख के निर्माता 19वें कुशोग बकुला ने लद्दाख के युवाओं में देशभक्ति की अलख जगाकर कबाइलियों को खदेड़ने का काम किया। एक शांतिप्रिय लामा होने के बावजूद कुशोग बकुला ने देश के लिए संघर्ष किया। वहीं कुशोग बकुला को जब मंगोलिया में राजदूत के तौर पर नियुक्त किया गया तब उन्होंने स्थानीय बौद्धों को अपने देश के खिलाफ न जाते हुए शांति मार्ग से आंदोलन करने का निर्देश दिया था। डॉ. भागवत ने कहा कि कुशोग बकुला की दोनों भूमिकाएं आदर्श हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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