एक धर्म गुरु थे। उनके प्रवचन से प्रभावित होकर एक युवक ने उनको अपना गुरु बना लिया। युवक रोज गुरुजी के आश्रम आता, उनकी सेवा करता। गुरुजी जहाँ भी कहीँ प्रवचन करने जाते युवक को भी साथ ही ले जाते। इस प्रकार वह युवक लगभग हर सत्संग और प्रवचन में गुरुजी के साथ रहता।
गुरुजी को युवक के हाव भाव देखकर कुछ दिन से लग रहा था कि उसका मन कहीं भटक रहा है । एक दिन गुरु जी ने युवक को अपने पास बुला कर पूछा, ‘क्या बात है पिछले कुछ दिनों से तुम परेशान लग रहे?’ युवक ने उत्तर दिया, ‘गुरुजी मैं पूरे श्रद्धा भाव से आपकी सेवा सत्कार कर रहा हूं, आपकी प्रवचन में बताई गई बातें भी पूरे ध्यान से सुनता हूँ लेकिन मैं आपका शिष्य इसलिए बना था क्योंकि मैं यह जानना चाहता था कि क्या ईश्वर को प्राप्त करना संभव है? परन्तु इतने दिनों तक आपकी संगत में रहगत में रहने पर भी मुझे इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। अतः मेरा मन थोड़ा अशांत है।
गुरुजी अपने शिष्य को लेकर नदी की ओर चल पड़े। नदी के किनारे पहुंचने पर गुरुजी ने अपने शिष्य को गर्दन से पकड़कर उसका मुँह नदी में डूबा दिया। गुरुजी के यूँ अचानक डुबोने से शिष्य संभल नहीं पाया और पानी से बाहर आने को छटपटाने लगा। कुछ देर युवक को यूँ ही डूबाये रखने के बाद गुरुजी ने युवक को छोड़ दिया। युवक ने लम्बी साँस ली फिर गुरुजी की ओर देखकर कहा आप यह क्या कर रहे थे! गुरुजी ने मुस्कुरा कर पूछा, जब तुम पानी में थे तो क्या सोच रहे थे, तुम्हारे मन को उस समय किसकी आस थी। युवक ने कहा उस समय तो बस एक कतरा साँस लेने के लिए ही मैं मरा जा रहा था लग रहा था बस एक पल के लिए हवा में मैं साँस ले पाऊँ।
जब आत्मा को इतनी ही तड़प होती है ईश्वर से मिलने की, जितनी तुम्हें डूबते समय हवा की थी, तब आत्मा को परमात्मा के दिव्य दर्शन होते हैं। ईश्वर से मिलने के लिए पहले अपनी आत्मा में वो भूख, वो तड़प पैदा करो तभी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
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