मुंबई । धर्मगुरु रामगिरि महाराज (Ramgiri Maharaj) ने राष्ट्रगान और भारत के महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की आलोचना की है, जिसके बाद नया विवाद शुरू हो गया है. रामगिरि महाराज ने महाराष्ट्र (Maharashtra) के संभाजीनगर में कहा कि जन, गण, मन… की बजाय वंदे मातरम हमारा राष्ट्रगान होना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि वंदे मातरम को राष्ट्रगान बनाने के लिए भविष्य में हम संघर्ष भी कर सकते हैं.
रामगिरि महाराज ने कहा कि रबींद्रनाथ टैगोर ने यह गीत ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम के समर्थन में गाया था. यह कभी भी राष्ट्र के नाम संबोधन नहीं था.
बयानो की वजह से विवादों में रहते हैं रामगिरि महाराज
रामगिरि महाराज विवादित बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं. पहले भी उनके बयानों पर विवाद हुआ है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने नासिक में एक कार्यक्रम में मोहम्मद पैगम्बर पर अपमानजनक टिप्पणी की थी. जिसके बाद महाराष्ट्र में उनके खिलाफ 60 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुईं थीं.
‘भविष्य में हम इसके लिए भी संघर्ष करेंगे’
रामगिरि महाराज ने राष्ट्रगान के साथ-साथ महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर की भी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रगान सुनते हैं, मैं नहीं जानता कि कितने लोग हमारे राष्ट्रगान का इतिहास जानते हैं, लेकिन आज मैं सच बताने जा रहा हूं. शायद आप लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है. रबींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में कलकत्ता में इस गीत को गाया था, तब भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था.
रामगिरि महाराज ने कहा कि रबींद्रनाथ टैगोर ने जॉर्ज पंचम के समर्थन में गाना गाया था. उन्होंने आगे कहा कि जॉर्ज पंचम कौन थे? वह एक ब्रिटिश राजा थे और वह भारतीयों पर अत्याचार करता था. रामगिरी महाराज ने कहा कि राष्ट्रगान भारत के लोगों के लिए नहीं था. इसलिए भविष्य में हमें इसके लिए भी संघर्ष करना होगा. उन्होंने आगे कहा कि वंदे मातरम् हमारा राष्ट्रगान होना चाहिए.
कौन हैं रामगिरि महाराज
रामगिरि महाराज को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि रामगिरि का असली नाम सुरेश रामकृष्ण राणे है. उनका जन्म जलगांव में हुआ था और उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा भी उसी क्षेत्र में पूरी की. 1988 में जब वे 9 वीं कक्षा में थे तब वे स्वद्यय केंद्र से जुड़ गए और पवित्र गीता का अध्ययन करना शुरू कर दिया.
दसवीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अहमदनगर जिले के आईटीआई कॉलेज केदगांव में दाखिला लिया, बाद में उन्होंने आध्यात्म का रास्ता चुना और 2009 में उन्होंने नारायणगिरि महाराज से दीक्षा ली. नारायणगिरि महाराज की मृत्यु के बाद उन्होंने सरला द्वीप के द्रष्टा के रूप में पदभार संभाला.
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