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रिलायंस से एम्सः सबके लिए जरूरी कुशल नेतृत्व

January 02, 2022

– आरके सिन्हा

मुकेश अंबानी जब किसी विषय पर बोलते हैं, तो साधारणतया उसे नजरअंदाज करना संभव नहीं होता। उन्होंने हाल ही में साफ संकेत दिए कि रिलायंस इंड्रस्टीज लिमिटेड (आरआईएल) का सक्सेशन प्लान यानि अगला नेतृत्व तैयार है। निश्चित रूप से यह अच्छी बात है कि देश के सबसे बड़े उद्योग समूह के चेयरमेन मुकेश अंबानी ने देश को अपने समूह में आने वाले समय में होने वाले संभावित बदलावों के बारे में सूचित कर दिया। एनर्जी, टेलीकॉम, रिटेल वगैरह सेक्टरों में सक्रिय आरआईएल में एक अनुमान के मुताबिक, सात लाख से अधिक मुलाजिम हैं और इसके लाखों शेयर होल्डर हैं। रिलायंस में होने वाले उतार-चढ़ाव पर सारे देश की निगाहें रहती हैं, क्योंकि ये भारतीय उद्योग जगत का सबसे बड़ा ब्रॉंड है। हालांकि अभी मुकेश अंबानी सिर्फ 64 साल के ही हैं और वे कुछ और सालों तक आगे भी रिलायंस की कमा न संभाल सकते हैं।

दरअसल सभी कंपनियों तथा संस्थानों के शिखर पर बैठे अधिकारियों को समय रहते अपने संभावित उत्तराधिकारियों को तैयार कर लेना चाहिए। देखिए हरेक व्यक्ति के सक्रिय करियर की आखिरकार एक उम्र है। उसके बाद तो उसे अपने पद को छोड़ना ही है, खुशी-खुशी छोड़े या मजबूरी में छोड़ना पड़े। इसलिए बेहतर होगा कि किसी कंपनी का प्रमोटर, चेयरमैन या किसी संस्थान का जिम्मेदार पद पर आसीन शख्स अपना एक या एक से अधिक उत्तराधिकारी तैयार कर ले। बेहतर उत्तराधिकारी मिलने से किसी कंपनी या संस्थान की ग्रोथ प्रभावित नहीं होती। सत्ता का हस्तांतरण बिना किसी संकट या व्यवधान के हो जाता है। आप कंपनी को मेंटर या संरक्षक के रूप में शिखर या कहें कि चेयरमैन के पद से हटने के बाद भी सलाह तो दे सकते हैं।

रतन टाटा ने 2017 में टाटा समूह के चेयरमैन पद को छोड़ दिया था। वे तब से टाटा समूह के चेयरमेन एमिरेट्स हैं। वे रोजमर्रा के कामकाज से तो अपने को अलग कर चुके हैं। पर अभी टाटा समूह अपने अहम फैसले लेते हुए उनके अनुभव का लाभ तो उठाता है। देखिए, अनुभव का कोई विकल्प भी नहीं है। टाटा समूह ने कुछ समय पहले एयर इंडिया का अधिग्रहण कर लिया था। माना जाता है कि रतन टाटा भी चाहते थे उनका समूह एयर इंडिया का अधिग्रहण कर ले। आखिर एयर इंडिया पहले टाटा समूह के पास ही थी। इसलिए टाटा समूह एयर इंडिया को लेकर भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ भी था।

अगर बात उद्योग जगह से हटकर सियासत की करें तो वे ही नेता याद किए जाते हैं जो निष्पक्ष तरीके से अपने उत्तराधिकारी तैयार करते हैं। कैडर आधारित दलों जैसे भाजपा और वामपंथी दलों में यही होता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों में पार्टी की धुरी एक इंसान के आसपास ही घूमती रहती है। इसका नतीजा यह होता है कि इनमें आये दिन दो फाड़ होता रहता है। इनका विकास और विस्तार भी सही से नहीं होता। कांग्रेस के अंदर कितनी बार टूट हुई है, इसकी गिनती करना भी कठिन होगा। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) और महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को आप देख ही सकते हैं। ये कांग्रेस से ही निकली पार्टियां हैं। कांग्रेस से निकलकर ही बाबू जगजीवन राम से लेकर वीपी सिंह, नारायण दत्त तिवारी, हेमवती नंदन बहुगुणा वगैरह ने भी अपनी पार्टियां बनाईं थीं। हालांकि इनमें से कुछ नेता पुनः वापस कांग्रेस में शामिल हो गए थे। देश की इतनी अहम पार्टी में एक समय के बाद दीमक इसलिए लग गई क्योंकि उस पर एक परिवार ने कब्जा जमा लिया, उसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में तब्दील कर दिया।

दुर्भाग्यवश कुछ साल पहले तक हमारे यहां खेल संघों और महासंघों में एक ही व्यक्ति दशकों तक काबिज रहा करते थे। वे नए प्रतिभावान लोगों को आगे आने के सारे रास्ते बंद करके बैठ जाया करते थे। इनके पास कोई नए आइडिया भी नहीं होते थे। इन्हें सिर्फ कुर्सी से चिपके रहना होता था। तब हम ओलंपिक जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजनों में सांकेतिक उपस्थित दर्ज करवाने जाते थे। अब हमारे खिलाड़ी स्वर्ण पदक भी जीतने लगे हैं और वह भी एथलेटिक्स में। क्योंकि, हमने अपने खेल संघों तथा महासंघों में नए लोगों को भी अवसर देने शुरू कर दिए हैं। क्या हमने कुछ साल पहले तक सोचा भी था कि हम इस मुकाम को छू सकेंगे? नहीं न? हमारे खिलाड़ी अच्छा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हमारे खेल संघों में अब उर्जावान चेहरे सामने आ रहे हैं।

जिस संस्थान में लगातार नए चेहरे नहीं आएंगे या नहीं आने दिए जाएँगे, वह तो स्वाभाविक रूप से खत्म हो जाएगा। इस बारे में कोई बहस हो ही नहीं सकती है। बैंकिंग की दुनिया पर नजर रखने वालों को आदित्य पुरी जी का नाम बहुत अच्छे से पता है। उन्होंने एचडीएफसी बैंक को बनाया और खड़ा किया। उसकी गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ बैंकों में होती है। लंबे समय तक एचडीएफसी बैंक का नेतृत्व करने के बाद पुरी जी रिटायर हो गए। लेकिन, उन्होंने अपने कई योग्य उत्तराधिकारी तैयार कर लिए। उन्हें नेतृत्व के गुण समझाए-सिखाए। इसलिए वहां सत्ता का हस्तातंरण मजे से हो गया। पुरी के जाने के बाद भी एचडीएफसी बैंक आगे बढ़ रहा है।

दरअसल किसी परिवार से लेकर संस्थान की पहचान उसके मुखिया से होती है। अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को ले लीजिए। उसके मौजूदा निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म हो रहा है। डॉ. गुलेरिया ने अपने पद पर रहते हुए शानदार काम किया। उन्हें सारा देश जानता है, क्योंकि सारे देश को एम्स की क्षमताओं पर भरोसा है। पर क्या आप जानते हैं कि एम्स को एक श्रेष्ठ संस्थान के रूप में किसने खड़ा किया? उस महान डॉक्टर, शिक्षक और प्रशासक का नाम था डॉ.बी.बी. दीक्षित (1902-1977)। एम्स 1956 में बना तो सरकार ने डॉ. दीक्षित को इसका पहला निदेशक का पदभार संभालने की पेशकश की। उन्होंने इसे स्वीकार भी किया। वे इससे पहले पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके थे। वे फिज़ीआलजी (शरीर विज्ञान) विषय के प्रोफेसर भी थे। एम्स से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि डॉ. दीक्षित ने सरकार से साफ कह दिया था कि वे तब ही एम्स में आएंगे जब उन्हें काम करने का फ्री हैंड मिलेगा। डॉ. दीक्षित ने एम्स में चोटी के प्रोफेसरों और डॉक्टरों को जोड़ा। वे हरेक नियुक्ति मेरिट पर करते थे। वे लगातार एम्स में रिसर्च करने वालों को प्रोत्साहित करते थे। उनकी प्रशासन पर पूरी पकड़ रहा करती थी। डॉ. दीक्षित सत्य और न्याय का साथ देने वाले इंसान थे। उन्होंने देश को एम्स के रूप में एक विश्वस्तरीय संस्थान दिया और यहां रहते हुए अपने कुशल उत्तराधिकारी भी तैयार किए। तो लब्बोलुआब यह है कि बिना कुशल नेतृत्व के कोई संस्थान बुलंदियों को नहीं छू सकती। हरेक संस्थान को लगातार न्यायप्रिय और मेहनती नेतृत्व मिलते ही रहना चाहिए।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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