उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में करोड़ों रुपया का दान श्रद्धालुओं द्वारा दिया जाता है और अधिकांश राशि गुप्त दान के द्वारा आती है लेकिन इन दिनों मंदिर समिति आलू, चावल, नमक देने वालों के फोटो जारी कर रही है और उनका सम्मान कर रही है।
मंदिर समिति के कार्यालय के किसी शेखचिल्ली अधिकारी या कर्मचारी के दिमाग की उपज है और इससे महाकाल मंदिर की छवि धूमिल हो रही है, जहाँ तक सोना-चाँदी और नकदी देने वाले दानदाताओं का सवाल है तो उनका सम्मान मंदिर समिति करती है लेकिन अब आलू, प्याज, नमक, तेल देने वालों को भी मंदिर समिति सम्मानित कर रही है जिससे गलत संदेश जा रहा है और ऐसा लगता है कि चंदा एवं सहयोग लेने के लिए समिति किसी भी स्तर पर जा सकती है। यह खाद्य सामग्री अन्य क्षेत्र के लिए मिलती है और व्यक्ति अपने परिजनों की स्मृति में यह कच्ची सामग्री देता है लेकिन उनका नाम देना तथा फोटो जारी करना मात्र मूर्खता है और इस पर रोक लगनी चाहिए। यदि किसी को देना है तो वह गुप्त सहयोग करें और अधिक सहयोग करने वालों को मंदिर समिति दर्शन में सहुलियत प्रदान करें ना कि उनका ढिंढोरा पिटे और फोटो जारी करें। नियमित भक्तों का कहना है कि इसे बंद करना चाहिए।महाकाल मंदिर का हो गया है पूरी तरह बाजारीकरण
मंदिर के बाहर-अंदर जहाँ भी देखो वहाँ केवल पैसा लेने एवं देने की बात होती है..बात पूजन की हो या फिर प्रसाद चढ़ाने की यह अभिषेक कराने की या दर्शन करने की..केवल कितने में सौदा पट रहा है इस पर चर्चा होती है और ऐसा लग रहा है कि पूरा महाकाल मंदिर ही बाजार बन चुका है। ऐसे में मंदिर समिति अपने निर्णयों से इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दे रही है जबकि मंदिर का परिसर एवं दर्शन व्यक्ति आत्मिक शांति के लिए करता है और यहाँ भी बाजार हाट जैसी स्थिति कर दी है फिर शॉपिंग माल और बाजार में तथा मंदिर में जहाँ शिव का स्थान है क्या अंतर रह जाएगा..?
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