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    चुनाव से पहले घटाया: सचिन पायलट को लेकर कांग्रेस बना रही नया प्‍लान

  • September 07, 2023

    जयपुर (Jaipur)। राजस्थान विधान सभा चुनाव (Rajasthan Legislative Assembly Election) होने में अब कुछ ही समय बचा है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस (State Congress) में राजनीतिक रार पर पूर्ण विराम लगता हुआ नहीं दिख रहा है। ऐसे में इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। यही पहलू राजस्थान में तेजी से मजबूत होते दिख रही बीजेपी के लिए राजनीतिक संजीवनी का काम कर सकता है।

    बताया जा रहा है कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट (Sachin Pilot) की राह मुश्किल दिखाई दे रही है। पायलट को चुनाव से संबंधित गठित 8 कमेटियों में किसी का भी अध्यक्ष नहीं बनाया गया है, जबकि पायलट के धुर विरोधी माने जाने वाले नेताओं को इन समितियों में जगह मिली है। सियासी जानकार कांग्रेस आलाकमान की रणनीति के अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं। चुनाव में पायलट को सीधे तौर पर दूर ही रखा है, जबकि पायलट से जूनियर नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी गई है। सबसे चौंकाने वाला नाम मंत्री गोविंद राम मेघवाल का है। मेघवाल को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है।



    राजस्थान में साल के अंत में चुनाव होने हैं। सीएम अशोक गहलोत सरकार रिपीट होने का दावा कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह के कमेटियों का गठन किया गया है। उससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी में गुटबाजी दूर नहीं हुई है। बता दें कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली में गहलोत और पायलट के बीच सुलह कराई थी। हालांकि, पायलट को पार्टी ने एआईसीसी का सदस्य बनाया है। लेकिन जिस तरह ते चुनाव में पायलट को बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है, उससे एक बार खींचतान बढ़ सकती है। सचिन पायलट लगातार सरकार रिपीट होने की बात कह रहे हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट को जिम्मेदारी नहीं देकर कांग्रेस आलाकमान ने साफ संकेत दिया है कि पायलट को चुनाव से दूर ही रखा जाएगा।

    राजस्थान कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत के बाद सचिन पायलट सबसे लोकप्रिय चेहरा है। चुनाव से पहले पायलट को साइड लाइन करना पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है। सचिन पायलट की न केवल अपने गुर्जर समाज में बल्कि समाज के अन्य वर्गों में भी मजबूत पकड़ मानी जाती है। सियासी जानकारों का कहना है कि राज्य में एक दर्जन ऐसे सीटें है जहां के गुर्जर वोटर्स हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। इन सीटों पर सचिन पायलट के इशारें पर ही गुर्जर वोटिंग करते आए है। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की अनदेखी का फायदा बीजेपी को मिल सकता है। पायलट समर्थक कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़े कर सकते है।

    चुनाव से संबंधित 8 कमेटियों में से किसी में भी सचिन पायलट को पार्टी आलाकमान ने अध्यक्ष नहीं बनाया है। इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस के लिए अब मजबूरी नहीं है।

    बता दें विधानसभा चुनाव 2018 में सचिन पायलट ने बतौर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही टिकट बांटे थे। टिकट बंटवारे में सचिन पायलट की जमकर चली। परिणाम यह हुआ कि पायलट ने कांग्रेस के भीतर ही अपने समर्थकों का अलग गुट तैयार कर लिया। इन्हीं समर्थकों के दम पर पायलट साढ़े चार साल तक गहलोत सरकार का सिर दर्द बढ़ाते रहे। सियासी जानकारों का कहना है कि कमेटियों का अध्यक्ष नहीं बनाने के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है। हालांकि, सचिन पायलट और उनके समर्थक किसी विधायक का बयान नहीं आया है।

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