– हृदयनारायण दीक्षित
चिकित्सा विज्ञान ने विस्मयकारी उन्नति की है। हृदय, गुर्दा जैसे संवेदनशील अंगों की शल्यक्रिया आश्चर्यजनक है। सामान्य बीमारियों के साथ ही गंभीर बीमारियों के उपचार भी आसान हो गए हैं। लेकिन अभी रोग रहित मानवता का स्वप्न दूर है। रोगों की दवाएं हैं। प्रश्न है कि क्या कभी रोगों का होना ही रोका जा सकता है। पूर्वज अमृत की कल्पना करते रहे हैं। रोगों के आगमन पर ताला डालने की इच्छाशक्ति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रकट की है। उपाय अनेक हैं। उन्होंने स्वच्छता को शीर्ष महत्व दिया। अभियान चले। योग निरोग बनाने का मार्ग है। प्रधानमंत्री ने योग को लोकप्रिय बनाया। अब फिट इण्डिया अभियान की बारी है। इस अभियान का सर्वत्र स्वागत हो रहा है।
स्वास्थ्य सहज अभिलाषा है। सभी प्राणी स्वस्थ रहना चाहते हैं। इस संसार के सभी सुख और आनंद सुंदर स्वास्थ्य द्वारा ही उपलब्ध होते हैं। रोगी को जीवन के सुखों में हिस्सा नहीं मिलता है। स्वस्थ होना भी जीवनमूल्य है। भारतीय चिंतन में स्वस्थ शरीर की चिंता प्राथमिकता रही है। भारतीय संस्कृति और परंपरा में सुंदर स्वास्थ्य की जीवन शैली है। यहां पूरी दिनचर्या स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। ऋग्वेद में अनेक मंत्रों में स्वस्थ और दीर्घ जीवन की अभिलाषा है। ऋषि कवि सौ बरस का जीवन चाहते हैं, लेकिन प्रार्थना करते हैं कि वह सौ साल तक शरीर से भी स्वस्थ्य रहें। 100 साल तक सूर्य दर्शन करें। सतत् कर्म करें। सभी दायित्वों का निर्वहन करें और इसके लिए शरीर का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भारतीय राष्ट्र जीवन के चार पुरुषार्थ हैं। शरीर को धर्मसाधना का उपकरण बताया गया है। अर्थ की प्राप्ति भी रुग्ण शरीर द्वारा संभव नहीं है। किसी भी कामना की पूर्ति के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए। मोक्ष या मुक्ति प्राप्ति के लिए भी इसी संसार में कर्म, तप किए जाते हैं। कर्म व तप स्वस्थ शरीर से ही संभव हैं। भक्ति, योग, तप और जप स्वस्थ शरीर के बिना नहीं हो सकते है। कठोपनिषद् में स्पष्ट रूप में कहा गया है कि “बलहीन को आत्मज्ञान नहीं मिलता है। आत्मज्ञान के लिए भी स्वस्थ्य शरीर की आवश्यकता होती है।” आत्मज्ञान ही नहीं सामान्य संसारी ज्ञान की प्राप्ति भी स्वस्थ शरीर से ही होती है। स्वस्थ व्यक्ति जल्दी सिखाता है, जल्दी सीखता है। वस्तुतः रोग मुक्ति स्वास्थ्य नहीं है। रोगों का न होना और स्वस्थ होना अलग-अलग बाते हैं। स्वस्थ का अर्थ है स्वयं में होना। जैसे गृहस्थ का अर्थ है घर से सम्बन्धित होना। संन्यस्थ का अर्थ है संन्यास से जुड़े होना। वैसे ही स्वस्थ का अर्थ है स्वयं से सम्बन्धित होना। स्वास्थ्य प्रकृति है। रोग विकृति है। स्वस्थ होना प्रकृति के अनंतसंगीत में होना है। हमारे पूर्वजों ने प्राचीनकाल से ही स्वस्थ रहने के विषय पर गंभीर चिंतन किया था। अथर्ववेद में भरापूरा स्वास्थ्य विज्ञान है। सहस्त्रों औषधियों के उल्लेख के साथ योग के भी संकेत हैं।
योग भारत का प्राचीन विज्ञान है। पतंजलि ने ईशा के लगभग दो सौ वर्ष पहले योग सूत्रों की रचना की थी। योग प्रत्येक तरह से स्वस्थ रहने का विज्ञान है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में योग को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता मिली है। योग विश्व स्तर पर चर्चा का विषय है। यह केवल शारीरिक रोग ही नहीं दूर करता। मन, बुद्धि और सम्पूर्ण अंतःकरण को भी स्वस्थ रखता है। विश्व मानवता का आकर्षण योग की तरफ लगातार बढ़ रहा है। सरकार ने भी योग को बढ़ावा देने की नीति अपनाई है। योग के लाभ सर्वविदित व सर्वपरिचित हैं।
प्राकृतिक पर्यावरण भी स्वास्थ्य का आधार है। वायु और जल प्रदूषण से तमाम बीमारियाँ बढ़ी हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान में इन बीमारियों की भी चर्चा है। चरकसंहिता में कहा गया है कि जब रोग बढ़ने लगे तो समाज चेता, विद्वानों ने बैठक की और गहन चिंतन जारी रहा। इसके साथ ही आयुर्विज्ञान का विकास हुआ। आयुर्वेद आयु का ही वेद है। सम्प्रति भारत सरकार व राज्यों के राजकोष से बीमारियों पर करोड़ों रुपये का बजट खर्च होता है। भारतीय आयुर्विज्ञान में रोग न होने देने के तमाम उपाय हैं। आज रोग निरोधक शक्ति की भी बहुत चर्चा है। यह शक्ति मनुष्य के शरीर में होती ही है। जीवनचर्या के अव्यवस्थित होने से रोग निरोधक शक्ति घटती है। आयुर्वेद में अनेक औषधियाँ हैं। ये रोग निरोधक शक्ति बढ़ाती हैं। स्वस्थ शरीर में वैसे भी प्राकृतिक रूप से रोगों से लड़ने की क्षमता होती है।
भारतीय दिनचर्या प्राचीनकाल से स्वास्थ्य का स्वभाविक संधान रही है। प्रातः उठना, स्नान करना, कुछ खाना, काम करना स्वास्थ्यवर्द्धक है। इसी दिनचर्या में स्वस्थ जीवन के स्वर्ण सूत्र हैं। लेकिन औद्योगिक क्रान्ति और अन्य प्रभावों के कारण दिनचर्या और सभ्यता में परिवर्तन आए हैं। सभ्यता के परिवर्तन के कारण दिनचर्या उलट-पलट गयी है। इससे सभी अंगों पर प्रभाव पड़ा है। प्राचीन ऋषि सजग थे। केनोपनिषद् के शांति पाठ में प्रार्थना करते हैं कि ‘‘मेरे सभी अंग वाणी, प्राण और आँख, कान स्वस्थ रहें। इन्द्रियाँ स्वस्थ रहें और शरीर में बल भी रहे।‘‘ इसी प्रकार ऋग्वेद के मंत्र में कहते हैं कि हमारे कान ठीक से सुनें, हमारी आँख ठीक से देखें। हमारे शरीर के सभी अंग सुदृढ़ व मजबूत रहें। हमारी आयु दीर्घ हो। स्वस्थ रहें।
प्रधानमंत्री ने फिट इण्डिया का नारा दिया है। सबके स्वास्थ्य से भारत शक्तिशाली होगा। स्वस्थ भारत ही आत्मनिर्भर भारत होगा। स्वस्थ भारत अजेय भारत होगा। स्वास्थ्य प्राप्ति के अनेक उपाय हैं। व्यायाम और खेलकूद भी स्वस्थ भारत के विकास में सहायक है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के स्वास्थ्य के लिए भी चिंतित रहना चाहिए। हम सब अन्य कामों की चिंता ज्यादा करते हैं। स्वस्थ्य रहना स्वयं की चिंता है। स्वयं की चिंता से राष्ट्रीय स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved