बीजिंग। चीन में भारत के नए राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने सोमवार को पदभार ग्रहण कर लिया। रावत कई वजहों से चीनी मीडिया में चर्चित हैं। रावत 4 मार्च को बीजिंग पहुंच गए थे, लेकिन वह करीब 10 दिन अनिवार्य क्वारंटीन रहे। चीन के कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत विदेश से चीन पहुंचने पर क्वारंटीन रहना जरूरी है। सोमवार को बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने रावत के पदभार ग्रहण करने की जानकारी दी। रावत ने विक्रम मिसरी का स्थान लिया।
मिसरी को भारत का उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है। रावत 1990 की बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) के अधिकारी हैं। वह पहले नीदरलैंड्स में भारत के राजदूत रह चुके हैं। इससे पूर्व वह इंडोनेशिया व तिमोर लेस्टे में भी राजदूत रहे हैं। वह हांगकांग और बीजिंग में भी पूर्व में सेवाएं दे चुके हैं। वह चीन में प्रचलित मंदारिन भाषा धाराप्रवाह बोलते हैं।
लद्दाख गतिरोध के बीच अहम भूमिका
प्रदीप कुमार रावत ऐसे समय में चीन में भारत के राजदूत बनाए गए है, जब दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में 22 माह से सैन्य गतिरोध कायम है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पर अप्रैल 2020 से ही दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। अब भी गतिरोध बना हुआ है आए दिन कुछ न कुछ तनाव भरी खबरें आती रहती हैं।
दोनों देशों के बीच तनाव के बीच आश्चर्यजनक ढंग से पूरे चीनी मीडिया ने प्रमुखता से रावत की नियुक्ति को लेकर खबरें प्रकाशित की हैं। रावत को लेकर जो महत्वपूर्ण बात कही जा रही है वह है उनके चीनी भाषा मंदारिन के ज्ञान को लेकर है। इसलिए उनकी नियुक्ति के बाद उनके मंदारिन जानने वाली बात को सभी चीनी मीडिया आउटलेट्स ने प्रमुखता से कहा। ग्लोबल टाइम्स के अलावा सभी प्रमुख मीडिया आउटलेट्स नेटईज, टेंसेंट, शिन्हुआ, चाइना डेली, चाइना मीडिया ग्रुप आदि ने उनके बारे में खबरें प्रकाशित कीं।
रावत का चीनी नाम लुओ गुंदोंग
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडेय बताते हैं कि जब चीन में लोग आते हैं तो चीनी नाम रखते हैं, यह यहां की परंपरा है। प्रदीप कुमार रावत जब चीन में रहे थे तो उन्होंने भी अपने नाम का चीनी अनुवाद किया। उन्होंने अपना चीनी नाम लुओ गुंदोंग रखा है, जिसका मतलब ‘पिलर ऑफ द नेशन’ होता है। चीनी मीडिया प्रमुखता से कह रहा है कि उन्होंने चीनी नाम भी बहुत बेहतरीन चुना है। अनिल कहते हैं कि हो सकता है कि वे यह कहना चाहते हों कि मैं भारतीय राष्ट्र का स्तंभ हूं। नाम का विशेष मतलब उन्होंने चुन कर रखा है।
रावत के लिए चीन नया नहीं
रावत के लिए चीन कोई नया नहीं है। वे हांगकांग और चीन में रहे हैं। वे विदेश सेवा में 1990 में आए। विदेशी भाषा के तौर पर मंदारिन चुनी थी। अपनी पहली सेवा उन्होंने हांगकांग में दी। वे बीजिंग में 1992 से 1997 के बीच रहे। 1997 में दिल्ली लौट आए और तीन वर्षों से अधिक समय तक ईस्ट एशिया डिवीजन में सेवा की। वे इसके बाद उन्होंने मॉरीशस में भारतीय मिशन में प्रथम सचिव के रूप में कार्य किया।
सीमा पर तनाव से वाकिफ
रावत सीमा पर तनाव से वाकिफ हैं। जिसे उन्होंने विभिन्न क्षमताओं से निपटा है। उन्हें नई दिल्ली में चीन की नीति को संभालने वाले वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक माना जाता है। बीजिंग में भारत-चीन संबंधों के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि चूंकि वे ईस्ट एशिया पॉलिसी को डील करते रहे हैं। इसलिए चीन को लग रहा है कि मोदी सरकार चीन के साथ अपने संबंध सुधराने चाहती हैं।
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