उज्जैन। मकर संक्रांति स्नान के लिए कान्ह नदी का पानी शिप्रा में मिलने से रोकने हेतु जल संसाधन विभाग ने त्रिवेणी क्षेत्र में शिप्रा के किनारों की मिट्टी काटकर पाला बांधा था। यह वापस बह गया, इसके पीछे अधिकारी तर्क दे रहे हैं मावठे की बारिश से कान्ह नदी का जलस्तर बढ़ा जिसके आगे मिट्टी का बांध ठहर नहीं पाया। इस घटना के बाद शहर के संत फिर नाराज हो गए। आज दोपहर बाद वे मौके का मुआयना करने जाएंगे। स्थानीय साधु-संतों के अनशन और पाँच दिन के धरना प्रदर्शन के बाद शिप्रा नदी में मिल रही इंदौर की दूषित कान्ह नदी के पानी को रोकने के लिए मुख्यमंत्री तक मामला पहुँचा था। तब उच्च शिक्षा मंत्री और प्रदेश के जल संसाधन मंत्री मुख्यमंत्री के कहने पर धरने पर बैठे साधु संतों को मनाने दत्त अखाड़ा घाट पहुँचे थे।
आंदोलन कर रहे संतों को भरोसा दिलाया गया था कि मामले में मुख्यमंत्री से उनकी बात हो गई है। जल्द ही त्रिवेणी क्षेत्र में जहां कान्ह नदी शिप्रा में मिलती है उसका पक्का स्टॉपडेम बनाकर स्थाई हल किया जाएगा। साथ ही संतों की मांग के अनुरूप ओपन नहर बनाकर कान्ह नदी का पानी शिप्रा में मिलने से रोका जाएगा। मौका मुआयना करने के लिए मुख्यमंत्री ने तीन विभाग के सचिवों को भी उज्जैन भेजा था और वे भी दो दिन यहाँ घूमकर सारी परिस्थितियाँ देख कर गए थे। मुख्यमंत्री से मिलने की जिद पर अड़े संतों को मनाते वक्त यह भी आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही उनकी मुलाकात सीएम से करवा दी जाएगी। षट्दर्शन संत समाज के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र दास महाराज ने बताया कि उसके बाद हमने शासन प्रशासन की बात मानकर अपना आंदोलन कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया था, परंतु कल फिर मकर संक्रांति स्नान के लिए बनाया गया मिट्टी का बांध बह गया। संत समाज में इससे फिर नाराजगी है। उन्होंने कहा कि इस समस्या का स्थाई हल होना चाहिए।
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