हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाता है। कहते हैं कि प्रदोष व्रत भगवान शिव (Pradosh Vrat Bhagwan Shiv Puja) को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाया जा सकता है। इस बार ये व्रत 17 अक्टूबर यानि, रविवार (Pradosh Vrat 17 Ocyober) के दिन रखा जाएगा। रविवार के दिन होने के कारण इसका नाम रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat) कहा जाएगा। इस दिन शिव जी भगवान के साथ सूर्यदेव (Suryadev Puja) का आशीर्वाद भी पाया जा सकता है। प्रदोष व्रत की पूजा (Pradosh Vrat Puja) प्रदोष काल में ही करनी चाहिए। प्रदोष काल का मतलब होता है सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले का समय। इस समय में भगवान शिव की पूजा की जाती है।
कहते हैं कि प्रदोष काल में पूजा, जप, साधना आदि करने पर भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। सुख-संपत्ति और सौभाग्य का वरदान दिलाने वाला प्रदोष व्रत को प्रारंभ करने से पहले इसके नियम को जान लेना जरूरी है। आइए जानते हैं कि किसी कामना के लिए कब और कैसे रखा जाता है प्रदोष व्रत।
पुत्र कामना के लिए
अगर आप पुत्र प्राप्ति के लिए प्रदोष व्रत रखने की सोच रहे हैं, तो बता दें कि भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए ये व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू करना चाहिए। और वो भी तब जब उस दिन शनिवार पड़े। अर्थात शुक्ल पक्ष का शनि प्रदोष व्रत से व्रत की शुरुआत करें।
रोगों से मुक्ति पाने के लिए
किसी लंबी बीमारी से जूझ रहे हैं और उससे जीवनभर के लिए मुक्ति पाना चाहते हैं तो भगवान शिव के प्रदोष व्रत की शुरुआत रवि प्रदोष व्रत से करें।
सुख–समृद्धि और सुयोग्य जीवनसाथी के लिए
आर्थिक तंगी और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए
अगर मां लक्ष्मी आपसे रूठ गई है और कर्ज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो ये व्रत सोम प्रदोष व्रत से शुरू करना चाहिए।
प्रदोष व्रत विधि
भगवान शिव की कृपा पाने के लिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं। इस दिन स्नान-ध्यान करने के बाद ‘मम पुत्रादि प्राप्ति कामनया प्रदोष व्रत महं करिष्ये’ उच्चारण करते हुए हाथ में कुछ धन, पुष्प आदि रखकर भगवान शिव के नाम का संकल्प करें। कहते हैं कि सूर्यास्त के समय एक बार फिर से स्नान करें और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। भक्ति भाव के साथ इस दिन प्रदोष व्रत कथा सुनें या पढ़ें। इस दौरान ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का कम से कम एक माला जप जरूर करें। पूजा के बाद भगवान का प्रसाद परिवार के सदस्यों में बांटें।
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