नई दिल्ली (New Delhi)। संदीप रेड्डी वांगा (Sandeep Reddy Vanga) के निर्देशन में बनी बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘एनिमल’ (Animal ), 1 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म में रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor), रणविजय सिंह बलबीर (Ranvijay Singh Balbir) की भूमिका से दर्शकों का दिल जीत रहे हैं। इस एक्शन ड्रामा (action drama) ने बॉक्स ऑफिस पर बंपर ओपनिंग (Bumper opening at the box office) ली। साथ ही महज दो दिन में 129.80 करोड़ रुपये की कमाई कर ली है। एक तरफ अधिकांश दर्शक इसकी तारीफें करते नहीं थक रहे हैं। तो वहीं कुछ अतिहिंसक और स्त्रीद्वेषपूर्ण होने के लिए इसकी आलोचना भी कर रहे हैं। आलोचकों की सूची में लोकप्रिय गीतकार स्वानंद किरकिरे (Popular lyricist Swanand Kirkire) का भी नाम जुड़ गया है, जिनका पोस्ट सोशल मीडिया पर ताबड़तोड़ वायरल हो रहा है।
‘एनिमल’ पर भड़के गीतकार स्वानंद किरकिरे
लोकप्रिय गीतकार स्वानंद किरकिरे ने ‘एनिमल’ पर जमकर हमला बोला है। गीतकार ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा, ‘शांताराम की औरत, गुरु दत्त की साहेब बीवी और गुलाम, हृषिकेश मुखर्जी की अनुपमा, श्याम बेनेगल की अंकुर और भूमिका, केतन मेहता की मिर्च मसाला, सुधीर मिश्रा की मैं जिंदा हूं, गौरी शिंदे की इंग्लिश विंग्लिश , विकास बहल की क्वीन शूजीत सरकार की पीकू, और भारतीय सिनेमा में ऐसी कई फिल्में जिन्होंने मुझे एक महिला, उसके अधिकारों और उसकी स्वायत्तता का सम्मान करना सिखाया और सब कुछ समझने के बाद भी, इस सदियों पुरानी सोच में अभी भी कई कमियां हैं। मुझे नहीं पता कि मैं सफल हुआ या नहीं, लेकिन आज भी मैं लगातार खुद को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा हूं। इसके लिए सिनेमा को धन्यवाद।’
सिनेमा के इतिहास पर कही यह बात
गीतकार ने आगे लिखा, ‘लेकिन एनिमल फिल्म देखने के बाद मुझे सच में आज की पीढ़ी की महिलाओं पर दया आ गई। अब आपके लिए एक नया आदमी तैयार हो गया है, जो ज्यादा डरावना है, जो आपकी उतनी इज्जत नहीं करता और जो आपको अपने वश में करना चाहता है। तुम्हें दबाता हूं और खुद पर गर्व महसूस करता हूं। जब तुम, आज की पीढ़ी की लड़कियां, उस सिनेमा हॉल में बैठकर रश्मिका की सराहना कर रही थीं, तो मैंने मन ही मन समानता के हर विचार को श्रद्धांजलि दी। मैं हताश, निराश और कमजोर होकर घर आया हूं।’
‘एनिमल से खतरे में सिनेमा का भविष्य’
स्वानंद ने अंत में कहा, ‘रणबीर का डायलॉग जिसमें वह अल्फा पुरुष को परिभाषित करते हैं, और कहते हैं कि जो पुरुष अल्फा नहीं बन पाते, वे सभी महिलाओं का आनंद पाने के लिए कवि बन जाते हैं, और चांद-सितारे तोड़ने के वादे करने लगते हैं। मैं एक कवि हूं, मैं जीने के लिए कविता करता हूं। क्या मेरे लिए कोई जगह है? एक फिल्म खूब पैसा कमा रही है और भारतीय सिनेमा के गौरवशाली इतिहास को शर्मसार किया जा रहा है। मेरी समझ से यह फिल्म भारतीय सिनेमा का भविष्य नए सिरे से तय करेगी, एक अलग अंदाज में , भयानक और खतरनाक दिशा।
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