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भारत के अंदर-बाहर सभी जगह राम का नाम

March 30, 2023

– आर.के. सिन्हा

भारत के कण-कण में राम बसे हैं। भारत की राम के बिना कल्पना करना ही असंभव है। सारा भारत राम को अपना आराध्य और पूजनीय मानता है। डॉ. राम मनोहर लोहिया कहते थे कि भारत के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम– “राम, कृष्ण और शिव ही हैं।” उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक भारतीय को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता होगा। कभी सोचिए कि एक दिन में भारत में कितनी बार यहां की जनता प्रभु राम का नाम लेती है।

पर भगवान राम को सिर्फ भारत तक सीमित करना उचित नहीं होगा। वैसे तो थाईलैंड बौद्ध देश हैं, पर वहां भी राम आराध्य हैं। राजधानी बैंकॉक से सटा है अयोध्या शहर। वहां के लोगों की मान्यता है कि यही थी भगवान श्रीराम की राजधानी। थाईलैंड के बौद्ध मंदिरों में आपको ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां और चित्र भी मिल जाएंगे। इन सभी देवी-देवताओं के अलग से मंदिर भी हैं। इनमें रोज बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मताबलम्बी पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यानी थाईलैंड बौद्ध और हिन्दू धर्म का एक सुंदर मिश्रण पेश करता है। कहीं कोई कटुता या वैमनस्थ का भाव नहीं है। थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है। वैसे थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है। जिसे थाई भाषा में “ राम-कियेन“ कहते हैं l जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित हैl थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम ‘रामायण हॉल’ है। यहां पर राम कियेन पर आधारित नृत्य नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन प्रतिदिन होता है। राम कियेन के मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण), पाली (बाली), सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद), खोम्पून ( जाम्बवन्त), बिपेक ( विभीषण), रावण, जटायु आदि हैं। इस नाटिका के मंचन के दौरान हॉल में वातावरण पूरी तरह से राममय हो जाता है।


थाईलैंड में राजा को राम ही कहा जाता है। उसके नाम के साथ अनिवार्य रूप से राम लगता है। राज परिवार अयोध्या नामक शहर में रहता हैl ये स्थान बैंकॉक से 50-60 किलोमीटर दूर है। बहुत खूबसूरत शहर है। भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में भी राम हैं। यहां का पोपा पर्वत औषधियों के लिए विख्यात है। माना जाता है कि लक्ष्मण के उपचार के लिए पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान जी उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे।

अयोध्या के कोरिया से 2000 वर्ष पुराने रिश्ते बताए जाते हैं। वहां भी एक अयोध्या है जिसे अयुता कहा जाता है। रामकथा विभिन्न देशों में विभिन्न रूपों में प्रचलित है। उन सबसे भारतीयों का भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक है। इस्लामिक देश इंडोनेशिया की संस्कृति पर रामायण की गहरी छाप है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था। इंडोनेशिया के जावा शहर की एक नदी का नाम सेरयू है। इंडोनेशिया की रामलीला के बारे में अक्सर लिखा जाता है। जब वहां के राष्ट्रपति सुकर्णो के विरुद्ध साजिश रची गयी तो बीजू पटनायक (ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता) अपने विमान से उन्हें बचा कर लाये थे। सुकर्णो की बेटी का जन्म हुआ तो श्री पटनायक ने उनका नामकरण सुकर्णपुत्री मेघावती किया था। इसी नाम से उन्हें लोकप्रियता मिली और अपने पिता की भांति वह भी सत्ता प्रमुख निर्वाचित हुईं।

गांधी जी भारत में राम राज्य की स्थापना देखना चाहते थे। गांधी जी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था जो पवित्रता और सत्यनिष्ठा पर आधारित हो। राम का नाम भारत से बाहर जा बसे करोड़ों भारतवंशियों को एक-दूसरे से जोड़ता है। राम आस्था के साथ सांस्कृतिक चेतना के भी महान दूत हैं। गोरी सरकार बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश, बिहार और कुछ अन्य राज्यों के लोगों को श्रमिकों के रूप में मारीशस, फीजी, सूरीनाम और कैरिबियाई टापू देशों में लेकर गई थी, गन्ने के खेतों में काम करवाने के लिए। इन श्रमिकों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। इन भारतीय श्रमिकों ने लंबी समुद्री यात्राओं के दौरान अनेक कठिनाइयों को झेला।

अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बसने के बावजूद इन्होंने अपने संस्कारों को छोड़ा नहीं। इनके लिए अपना धर्म, भाषा और संस्कार बेहद खास थे। दरअसल ब्रिटेन को 1840 में गुलामी का अंत होने के बाद श्रमिकों की जरूरत पड़ी जिसके बाद भारत से “गिरमिटिया मजदूर” या एग्रीमेंट पर लाये जाने वाले मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। बेशक भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ एक छोटा भारत ले कर जाता था। इसी तरह भारतवंशी अपने साथ तुलसी रामायण, हिंदी भाषा, खान पान एवं परंपराओं के रूप में भारत की संस्कृति ले कर गए थे। भारत से बाहर जाकर बसे भारतीयों के सदैव आराध्य रहे भगवान राम। त्रिनिडाड के पूर्व प्रधानमंत्री वासुदेव पांडे एक बार मुझे बता रहे थे कि हमें राम नाम के उच्चारण मात्र से असीम शक्ति मिलती है।

मगर हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि राम के देश भारत में राम की जन्मभूमि में राम मंदिर का विरोध करने वाले मौजूद हैं। सारे देश ने देखा था कि किस तरह से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का विरोध हुआ था। बड़ी संख्या में मुस्लिम नेता ही नहीं वोट बैंक पर गिद्ध दृष्टि गड़ाये अनेकों हिन्दू नेता भी मुसलमानों को भड़का रहे थे कि वे राम मंदिर निर्माण का विरोध करें। वे यह भूल रहे थे कि अवध राम की जन्मभूमि है। कायदे से मुसलमानों को राम मंदिर की स्थापना करने में सहयोग देना चाहिए था। ये उनका नैतिक दायित्व था। पर उन्होंने निराश ही किया। यह अलग बात है कि अब मुसलमानों का पढ़ा-लिखा तबका स्वीकार करने लगा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में अवरोध खड़े नहीं किए जाने चाहिए थे।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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