img-fluid

रामलीलाः मर्यादा का आख्यान

October 18, 2021

– हृदयनारायण दीक्षित

प्रेय प्रिय होता है और श्रेय लोकमंगल का प्रेरक। प्रेय और श्रेय में दूरी रहती है। प्रिय का श्रेष्ठ होना जरूरी नहीं। श्रेष्ठ को प्रिय बना लेना भक्तियोग से ही संभव है। प्रेय को श्रेय नहीं बनाया जा सकता। सभ्यता और संस्कृति के आदर्श से श्रेय का निर्धारण होता है और प्रेय स्वयं की अन्तस् है। श्रीराम अनूठे चरित्र हैं। वे भारत के मन को प्रिय हैं। भारतीय भावजगत् में तीनों लोकों के राजा। वे भारतीय संस्कृति के श्रेय हैं। श्रीराम में प्रेय और श्रेय का एकात्म है। सो भारत और दक्षिण एशिया के बड़े भाग में हर बरस रामलीला के मंचन होते हैं। भारत के प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र वाराणसी की रामलीला काफी लम्बे समय से विश्वविख्यात है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की रामलीला में अतिविशिष्ट महानुभाव भी दर्शक होते हैं। भारत के हजारों गांवों में रामलीला होती है। दुनिया के किसी भी देश में एक मास की अवधि में एक साथ हजारों स्थलों पर ऐसे नाटक और अभिनय नहीं होते। रामलीला में मर्यादा का आख्यान है। संस्कृति का मधु है और लोकरंजन की ऊर्जा है। रामलीला प्रेय है। श्रेय का कथानक तो है ही।

यूरोप के कुछ विद्वानों ने रामलीला के बहुविधि मंचन पर आश्चर्य व्यक्त किया है। कुछेक विद्वानों ने इसे ‘अपरिपक्व नाटक’ भी बताया है। एच. नीहस ने लगभग 100 बरस पहले लिखा था कि रामलीला “थियेटर इन बेबी शोज” है। घोर अव्यवस्था होती है। दर्शक मंच पर चढ़ जाते हैं। लोग अभिनेताओं के सजने-संवरने वाले कमरों में भी घुस जाते हैं। विदेशी विद्वानों ने रामलीला के प्रेय और श्रेय तत्व पर विचार नहीं किया। अभिनय क्षेत्र के विद्वान इसे फोक प्ले-लोक नाटक भी कह देते हैं। ऐसे सभी महानुभाव रामलीला में नाटक की नियमावली और आचार संहिता खोजते हैं और निराश होते हैं। रामलीला नाटक भर नहीं है। नाटक में भाव विह्वलता नहीं होती, नाटक के पात्र अपने अभिनय से भाव विह्वलता सृजित करते हैं। रामकथा स्वयं भावरस का समुद्र है।

रामलीला का कथानक पहले से ही सभी रसों का मधुरसा कोष है। इस कथानक में श्रीराम के प्रति प्रीति भावुकता सुस्थापित है। यहां भावविह्वलता पहले से है, राम, लक्ष्मण, भरत, हनुमान या सीता बने पात्र उसे दोहराने का काम करते हैं। वे परिपूर्ण अभिनय में असफल भी होते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। रामकथा स्वयं ही सभी रसों की अविरल धारा है। मंदकिनी और गंगा। वाल्मीकि, तुलसी और कम्ब आदि विद्वान इसी रसधारा को शब्द रूप देने वाले महान सर्जक हैं। नाटक का मूल है रस। भरतमुनि नाट्य शास्त्र में यही बात कह चुके हैं। भारत का मन राम में रमता है। भाव प्रवणता में वे परमसत्ता हैं। परमसत्ता मनुष्य बनती है। मनुष्य की तरह खिलती, हंसती है। उदास निराश भी होती है। हर्ष और विषाद में भी आती है। श्रद्धालु राम को परमसत्ता या ब्रह्म का मनुष्य रूप जानते हैं।

ब्रह्म निरूद्देश्य है। इच्छा रहित, आकांक्षा शून्य। सर्वव्यापी लेकिन कर्तापन रहित। यही ब्रह्म राम रूप होकर संसार में लीला करता है। उसका हरेक कृत्य लीला है। वह अभिनेता है, नट है और नटखट भी। लेकिन मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। जगत् परमसत्ता की ही लीला है। आधुनिक भौतिक विज्ञान इस लीला को थोड़ा कुछ ही देख पाया है। यहां नियमबद्धता है। क्वाटम भौतिकी में इसकी अनिश्चितता भी है। प्रकृति नियमों की अकाट्यता के कारण भौतिक विज्ञानी जगत् गति को सुनिश्चित मानते हैं। क्वांट्टम भौतिकी से अनिश्चितता का सिद्धांत निकलता है। ब्रह्म का खेल रहस्यपूर्ण है। ब्रह्म संकल्प रहित है। इच्छा है नहीं। इसलिए अनिश्चितता भी है। सो उसके खेल की प्रत्येक तरंग लीला है। भाव श्रद्धा में श्रीराम का जीवन ब्रह्म की ही लीला है। दुनिया की पहली रामलीला दशरथ नंदन श्रीराम का जीवन है। उसके बाद उसी लीला का लगातार अनुकरण। अनुकरण यथारूप नहीं हो सकता।

महाभारत में प्रसंग है। युद्ध के बाद अर्जुन ने श्रीकृष्ण से दोबारा गीता ज्ञान बताने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने कहा कि अब वैसा संभव नहीं। ठीक कहा। पहले धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र में युद्ध का तनाव था। दोनों पक्ष आमने-सामने थे। अर्जुन तब विषादग्रस्त था। बाद में अर्जुन शांत चित्त। घर बैठे आराम से गीता सुनने की इच्छा। ऐसी गीता सीडी जैसी। दिक्-काल बदल गया था। पहली रामलीला में ब्रह्म का मनुष्य राम बनना फिर संसारी लेकिन संकल्पनिष्ठ जीवनव्रती की तरह मर्यादा पालन करना। वन में रहना, युद्ध करना आदि प्रसंग हैं। भारत स्वाभाविक ही उस राम लीला के प्रति भावुक और प्रीतिबद्ध है। उसके बाद की राम लीला का आयाम भिन्न है। दुनिया की पहली रामलीला में ब्रह्म राम बनता है। बाद की रामलीलाओं में मनुष्य राम बनते हैं। त्रुटि स्वाभाविक है।

दोनों लीला हैं। लेकिन पहली राम लीला और आधुनिक रामलीला में भिन्नता है। कहां ब्रह्म का राम बनकर लीला करना और कहां साधारण युवा का राम बनकर रामलीला में हिस्सा लेना ? हम भारत के लोग हजारों बरस से राम में रमते हैं। रावण फूंकते हैं। लेकिन रावण नहीं मरता, हम राम जैसी मर्यादा पालन के प्रयत्न भी नहीं करते। कथित प्रगतिशील रामलीला को अतीत में घसीटने का नाटक मानते हैं। लेकिन रामलीला अतीत में जाने का खेल नहीं है। यह वर्तमान में ही राम रस का आस्वाद लेने का सृजन कर्म है। रामरस मधुरस है। अमर जिजीविषा का राम रसायन। तुलसीदास ने बताया है कि यही राम रसायन हनुमान के पास था – राम रसायन तुम्हरे पासा।

हम सबका जीवन भी लीला जैसा। हम संसार में छोटी अवधि के लिए आते हैं। अभिनय करते हैं। विदा हो जाते हैं। रामलीला का रस आस्वाद मधुमय है। गांव की रामलीला का आनंद और भी रम्य। मुझे अनेक बार रामलीला में रमने का अवसर मिला है। अव्यवस्था की बात अलग है। अव्यवस्था आधुनिक भारत का स्वभाव है। हम रोड जाम में खौरियाते हैं। रामलीला की भी अव्यवस्था पीड़ा दे सकती है। लेकिन परंपरा रस के पियक्कड़ों की मस्ती ही कुछ और है। रामलीला में पात्र ही अभिनय नहीं करते। दर्शक भी अपनी जगह बैठे भावानुकीर्तन में रससिक्त अभिनेता हो जाते हैं। कभी-कभी पात्र संवाद भूल जाते हैं। हास्यरस फैल जाता है। आयोजक अधबिच में कथा प्रसंग रोककर आधुनिक फिल्मी गानों पर नाच भी करवाते हैं। मैंने लक्ष्य किया है कि तब भाव आपूरित दर्शकों का बड़ा भाग तटस्थ हो जाता है और एक छोटा भाग ही नाच-फांच में रुचि लेता है।

राम हमारे इतिहास बोध के मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। दुनिया के किसी नाटक का नायक ऐसा लोकप्रिय नहीं। इस कथा का खलनायक भी चरित्रवान है। सीता के साथ सम्मान सहित प्रस्तुत होता है। यह खलनायक भी विद्वान है। श्रीराम ने लंका जीती। वे चार भाई थे। एक भाई को लंका का राज्य दे सकते थे लेकिन राम ने रावण के भाई को ही लंकाधिपति बनाया। भारत विस्तारवादी नहीं रहा। राम का शील, मर्यादा, संस्कृति प्रेम, संगठन कौशल और पराक्रम विश्व दुर्लभ है। उसे जीवन में न सही नाटक जैसे स्टेज पर पुनर्जीवित करना, रस पाना, रस पीना और रस पिलाना ही रामलीला है। राम और रावण चेतना के दो छोर हैं। एक छोर पर “अखिल लोकदायक विश्राम” की व्याकुलता और दूसरे छोर पर धनबल-बाहुबल की अहमन्यता। राम आनंदरस, करुणरस और जीवन के सभी आयामों में मधुछन्दस् मधुरस चेतना हैं। रामलीला उसी तत्व और लोकमंगल की अभीप्सा का पुनर्गीत पुर्नसृजन है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।)

Share:

भविष्य का इंटरनेट बनाने फेसबुक कर रहा काम, यूरोपीय संघ में दस हजार लोगों को भर्ती करने का ऐलान

Mon Oct 18 , 2021
नई दिल्‍ली। भविष्य का इंटरनेट (internet of the future) तैयार करने के लिए फेसबुक ने यूरोपीय संघ(The European Union) में 10,000 लोगों को भर्ती करने का ऐलान (Announcement to recruit 10,000 people) किया है. फेसबुक (Facebook) ने कहा है कि वह यूरोपीय संघ(European Union) में मेटावर्स (metaverse) नाम का वर्चुअल रियलिटी वर्जन(virtual reality version) तैयार […]
सम्बंधित ख़बरें
खरी-खरी
रविवार का राशिफल
मनोरंजन
अभी-अभी
Archives

©2025 Agnibaan , All Rights Reserved