– राजेन्द्र तिवारी
अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का भव्य व विशाल मन्दिर का निर्माण होने मे प्रत्येक हिन्दू भावनात्मक रूप से उत्साहित है। मैने स्वयं यह अनुभव किया है कि श्रीराम मन्दिर निर्माण हेतु आर्थिक सहायता के लिए श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के निमित्त जिससे भी सम्पर्क किया, तो रामभक्त उत्साहित दिखे। यदाकदा तो यह अनुभव भी किया कि दानदाता से ग्यारह सौ की राशि की अपेक्षा कर रहै थे, लेकिन वह तो पांच हजार देने को आतुर था, जिससे पांच हजार की अपेक्षा कर रहै हैं, वे इक्कीस हजार देने को आतुर हैं। छोटे-छोटे बच्चे अपनी बचत की गुल्लक तोड़ कर दानराशि देते हुए मन्दिर निर्माण मे सहयोगी दिखे। समस्या मुख्यतः यह नहीं है कि मन्दिर निर्माण मे आर्थिक सहायता कैसे एकत्रित की जावे ? बल्कि उद्देश्य यह है कि आर्थिक सहायता के साथ-साथ प्रत्येक भारतवासी की यह भावना रहै कि मन्दिर निर्माण मे उसकी भी सहभागिता हो, जिस ईंट गारे से मन्दिर बन रहा है उसमे उसकी सहायता और भक्ति का अंश समाहित हो।
यह भाव ठीक वैसा ही है, जिस तरह भगवान श्रीराम जब अपनी वानर सेना के साथ रामसेतु का निर्माण कर रहै थे तो उसी समय एक गिलहरी अपने मुंह मे कंकड़ दबाते हुए दु्रत गति से भाग-भाग कर सेतु निर्माण मे सहायता कर रही थी और उसके इस भाव को देख कर श्रीरामजी प्रसन्न हो रहै थे। श्रीराम जन्म-भूमि स्थल पर 495 वर्ष पूर्व श्रीराम मन्दिर को बाहर से आए आक्रांन्ता बाबर के समय तोड़ा गया था और तभी से निरन्तर इस स्थल की सुरक्षा व मन्दिर निर्माण हेतु रामभक्तों का संघर्ष चलता रहा, जन्म-भूमि की रक्षार्थ लाखों रामभक्तों ने अपने प्रांणों की आहुति दी। रामलला टेन्ट मे टाट पट्टी पर बिराजमान रहै। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात रामभक्तों ने शांन्तिपूर्वक कानून के पथ पर चलते हुए न्यायालयीन लड़ाई भी लड़ी। अन्ततः सत्य की विजय हुई, श्रीरामजी की विजय हुई। अब हमारे श्रीरामजी एक भव्य मन्दिर मे पहुंचेंगे और विश्व के सभी रामभक्त अपने आराध्यदेव भगवान श्रीराम कके मन्दिर निर्माण मे बढ़-चढ़ का आगे आ रहै हैं। यह सहयोग राशि उन लाखों बलिदानी रामभक्तों के मन्दिर निर्माण की कामना हेतु उन्हे नमनकरते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि भी है। तो जानिए, इस संघर्ष की एक संक्षिप्त तस्वीर।
श्रीराम जन्म-भूमि के संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकता। विषय से जुड़ने के लिए यह भी समझना सुसंगत होगा कि अयोघ्या स्थित श्रीराम जन्म-भूमि के प्राचीनतम मन्दिर को किस प्रकार बाबर के कार्यकाल मे तोड़ा गया और फिर इसके बाद निरन्तर निरंकुश हत्याकाण्ड होता रहा, धर्म परिवर्तन कराया गया। सन् 1526 मे बाबर ने भारत पर हमला किया था। उसके आगमन के समय श्रीराम जन्म-भूमि मन्दिर विख्यात महात्मा श्यामानन्द जी महाराज के अधिकार-क्षेत्र मे थी। महात्मा जी से प्रभावित होकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोघ्या आए थे और वह महात्मा जी के शिष्य बन गए थे। यह सुन कर एक फकीर जलालशाह भी महात्मा श्यामानन्द जी महाराज का शिष्य बन गया था। जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था और उसे यह सनक थी कि हर जगह इस्लाम का अधिपत्य हो। अतः उसने अपने गुरू महात्मा श्यामानन्द जी महाराज पर छुरा से हमला किया था। जलालशाह ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिल कर यह योजना बनाई कि इस मन्दिर को तोड़ कर यहां मस्जिद बनाई जाए। इस योजना को पूरा करने के लिए मन्दिर के आस-पास जो खाली जमीन थी, उसमे मुसलमसानों को दफनाने लगे थेे और उसे कब्रिस्तान का स्वरूप बना दिया था। इसके बाद मींरबांकी के माध्यम से श्रीराम जन्म-भूमि मन्दिर तोड़ कर मस्जिद बनाने हेतु बाबर तक संन्देश भिजवाया गया था। अपने मुस्लिम शिष्यों की योजना समझ कर महात्मा श्यामानन्द जी बहुत दुखी हो गए थे, वह समझ गए थे कि इस मन्दिर को बाबर तुड़वा कर ही दम लेगा।
बाबर की सेना ने सन 1527 मे मन्दिर पर हमला किया तो मन्दिर के अन्य पुजारी मन्दिर की रक्षार्थ द्वार पर खड़े हो गए तब जलालशाह के निर्देश पर वहां पुजारियों के सिर काट दिए गए थे। जब मन्दिर को तोड़ कर मस्जिद बनाने की घोषंणा हुई तो उसी समय भीटी के राजा मेहताब सिंह तीर्थ-स्थल बद्रीनारायण भगवान के दर्शनार्थ निकल रहे थे और जैसे ही यह सूचना मिली तो उन्होने बद्रीनारायण की यात्रा को स्थगित कर अपनी छोटी सी सेना मे राम भक्तों को शामिल कर एक लाख चोहŸार हजार लोगों के साथ मिल कर बाबर की चार लाख पचास हजार सेना के सामने लड़ने को पहुंच गए थे। राम भक्तों ने शपथ ले रखी थी कि जब तक शरीर मे प्रांण हैं, तब अन्तिम स्वांस तक लड़ेंगे। राजा मेहताब सिंह ने राम भक्तों के साथ मिल कर बाबर की सेना से 70 दिनों तक मन्दिर को बचाने हेतु युद्ध किया था और अन्ततः सभी एक लाख चोहŸार हजार राम भक्त मारे गए एवं श्रीरामजन्म भूमि राम भक्तों के रक्त से लाल हो गई थी। तब मीरबांकी ने तोप लगवा कर मन्दिर ध्वस्त कर दिया था। मन्दिर के मसाले मे रक्तरन्जित मिट्टी से ही मस्जिद बनवाना प्रारम्भ कर दिया था। जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बनवा कर मस्जिद की नीव बनवाने मे उपयोग कराया था। इस प्रकार मन्दिर स्थल पर सन् 1528 मे बाबरी मस्जिद बना दी गई थी।
कहा जाता है कि उस समय अयोध्या के निकट निवासी देवीदीन पाण्डेय् ने आस-पास के सूर्यवंशी क्षत्रियों और वहां के निवासियों को एकत्रित किया और उनसे कहा था कि ’भाईयों आप सभी लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हो, मर्यादा पुरूषोŸाम श्रीराम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रांता कब्रों से पाट रहै हैं और खोद रहै हैं, अतः इस परिस्थिति मे हमारा मूकदर्शक हो कर जीवित रहने से तो यही अच्छा है कि जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते हुए प्रांण त्याग दें।’ देवीदीन पाण्डेय् की आज्ञानुसार नब्बे हजार हिन्दू युद्ध करने के लिए तैयार हुए और पांच दिनों तक अक्रांताओं से युद्ध होता रहा, छठवें दिन मींरबांकी के अंगरक्षकों ने धोखे से देवीदीन पाण्डेय् के सिर मे ईंट मारी जिससे उनका सिर फट गया और तब उन्होने पगड़ी से अपना सिर बांध लिया था तथा तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सिर काट दिया था। तभी मींरबांकी ने छिप कर गोली चलाई और जो देवीदीन पाण्डेय् को लगी एवं वह वीरगति को प्राप्त हुए। नब्बे हजार हिन्दुओं के खून से श्रीराम जन्मभूमि पुनः रक्तरन्जित हो गई थी। देवीदीन पाण्डेय् की मृत्यु के लगभग 15 दिन बाद श्रीराम जन्मभूमि की रक्षार्थ हंसवर के महाराजा रंणविजय सिंह ने 25 हजार सैनिकों के साथ मींरबांकी के कब्जे से श्रीराम जन्मभूमि मुक्त कराने हेतु आक्रमण किया था, यह युद्ध दस दिनों तक चला और महाराजा रणविजय सिंह भी वीरगति को प्राप्त हो गए व 25 हजार हिन्दुओं का रक्त पुनः जन्मभूमि स्थल मे समा गया। तब महाराजा रणविजय सिंह की पत्नी महारानी जयराज कुमारी ने जन्मभूमि की रक्षार्थ तीन हजार नारियों की सेना के साथ युद्ध का बीड़ा उठाया और आक्रांताओ पर हमला कर दिया था।
बाबर के पश्चात उसका उत्तराधिकारी हुमांयु भारत आया और उसके कार्यकाल मे भी रामभक्तों का छापामार युद्ध जारी रहा। उस समय महारानी जयराज कुमारी के गुरू स्वामी महेश्वरानन्द जी ने रामभक्तों को इकट्ठा कर महारानी जयराज कुमारी की सहायता की थी और 24 हजार सन्यासियों की एक सेना बनाई थी व जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु दस हमले किए थे। आखिरी हमले मे हुमांयु की सेना को बहुत नुकसान हुआ था और जन्मभूमि पर महारानी जयराज कुमारी का अधिपत्य हो गया था। इसके लगभग एक माह बाद हुमांयू ने पूरी ताकत से पुनः अपनी सेना भेजी और तब युद्ध हुआ तो स्वामी महेश्वरानन्द जी व महारानी जयराज कुमारी अपनी बची हुई सेना सहित युद्ध मे मारे गए व 24 हजार सन्यासियों, तीन हजार वीर नारियों का खून पुनः इस भूमि मे समा गया और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिपत्य हो गया था। इसके बाद हिन्दुओं की ओर से युद्ध का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी ने अपने हाथ मे लिया था, उन्होने गांव गांव भ्रमण कर रामभक्त हिन्दूओं व सन्यासियों की एक मजबूत सेना का गठन किया था और श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त करने हेतु 20 बार हमले किए जिनमे से 15 बार जन्मभूमि को मुगलों से मुक्त करा कर अपने अधिकार मे ले लिया था, लेकिन ऐसा अल्प समय के लिए ही हो पाता था। अन्ततः मुगल सेना ने जन्मभूमि को पुनः अपने अधिकार मे कर लिया। इस प्रकार लाखों हिन्दू जन्मभूमि की रक्षार्थ बलिदान होते गए।
हुमांयु का उत्तराधिकारी मुगल शासक अकबर ने राज्य प्राप्त किया और उसके कार्यकाल मे भी रामभक्तों का युद्ध मुगल सेना से होता रहा। अकबर ने कूटनीति से काम लेना चाहा, राजा टोडरमल व बीरबल की सलाह से अकबर ने बाबरी मस्जिद के सामने एक चबूतरे पर खस की टाट से तीन फीट का छोटा सा मन्दिर बनवा दिया था। अकबर ने आदेश दिया था कि चबूतरे पर बना मन्दिर पर हिन्दुओं द्वारा पूजन करने मे कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। लगातार युद्ध करने से स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता गया व उनकी मृत्यु हो गई। रामभक्तों का बार-बार श्रीराम जन्मभूमि की सुरक्षा मे आक्रमण करने और हिन्दुओं के क्रोध को देखते हुए मुगलों की पकड़ ढीली होती गई। कुछ दिनों तक हिन्दुओं का रक्त बहना बन्द हो गया था व यही क्रम शाहजहां के कार्यकाल तक चलता रहा।
जब औरंगजेब के हाथ सत्ता आई तो उसने हिन्दू मन्दिरों को तोड़ने का अभियान पुनः प्ररम्भ किया था। वह कट्टरवादी मुसलमान था। उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाया करने का संकल्प लिया था, अयोध्या मे मन्दिरों व उनकी मूर्तियों को तुड़वाना शुरूं कर दिया था। तब समर्थ गुरू श्री रामदास जी महाराज व उनके शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार अक्रमण किए थे और इस कार्य मे अयोध्या के आस-पास के गांव के सूर्यवंशी क्षत्रियों ने उनका सहयोग किया था, जिनमे प्रमुखतः ठाकुर सरदार सिंह, गजराज सिंह, कुंवर गोपाल सिंह व ठाकुर जगदम्बा सिंह के नाम बताए जाते हैं। हिन्दू रामभक्तों का निरन्तर संघर्ष व युद्ध मुगल सेना से होता रहा और श्रीराम जन्मभूमि रामभक्तों के खून से सनती रही। लम्बे समय तक चले युद्ध मे श्रीराम जन्मभूमि मे बिराजमान रामलला को मुक्त कराने मे लाखों हिन्दुओं ने बलिदान दिया था। अयोध्या की धरती पर रक्त बहता रहा। श्रीराम जन्मभूमि मुक्त कराने हेतु आस-पास के सूर्यवंशी क्षत्रियों ने अपने पूर्वजों के समक्ष यह संकल्प लिया था कि जब तक जन्मभूमि को मुक्त नहीं करा लेंगे तब तक सिर पर पगड़ी नहीं बांधेगे, जूते नहीं पहनेंगे व छाता नहीं लगाएंगे और उनका यह संकल्प अभी तक चलता रहा।
तत्पश्चात औरंगजेब ने जाबांज खां के नेतृत्व मे श्रीराम जन्मभूमि पर एक बड़ी सेना भेज दी थी, उस समय बाबा वैष्णवदास के साथ साधुओं की एक निपुण चिमटाधारी सेना थी। जब जन्मभूमि पर पर जाबांज खां ने आक्रमण किया तो समस्त रामभक्तों के साथ चिमटाधारी सेना ने मिल कर सात दिनों तक उर्वशी कुंड नामक स्थल पर मुगल सेना से भीषण युद्ध किया था और तब मुगलों की सेना वहां से भाग गई थी व चबूतरे पर स्थित श्रीराम के मन्दिर की रक्षा की गई थी। जाबांज खां को पराजित देख कर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबांज खां को हटा कर सैयद हसन अली के नेतृत्व मे 50 हजार सैनिको सहित तोपखाना अयोध्या की ओर इस निर्देश के साथ भेज दिया था कि अबकी बार श्रीराम जन्मभूमि व उस पर बने चबूतरे पर श्रीराम लला की मूर्ति को ध्वस्त कर के ही बापिस आना। तब बाबा वैष्णवदास ने सिक्खों के गुरू गुरूगोविन्द सिंह से युद्ध मे सहयोंग के लिए पत्र भेजा था। अतः गुरूगोविन्द सिंह जी अपनी सेना सहित तत्काल अयोध्या पहुंच गए और ब्रह्मकुंड पर अपना डेरा डाल दिया था। यह वही स्थल है जहां अयोध्या मे गुरूगोविन्द सिंह जी स्मृति मे सिक्खों का गुरूद्वारा बना हुआ है। इस बार बाबा वैष्णवदास रामभक्तों व गुरूगोविन्द सिंह जी की सेना सहित श्रीरामलला मन्दिर की रक्षार्थ युद्ध मे कंूद पड़े थे। इन वीरों के द्वारा सुनुयोजित तरीके से युद्ध करने पर मुगलों की सेना के पैर उखड़ गए थे और सैयद हसन अली युद्ध मे मारा गया था। यह जान कर औरंगजेब स्तब्ध रह गया और चार साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत ही नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण किया और इस बार के हमले मे लगभग 10 हजार रामभक्तों की हत्या कर दी गई थी और वहां के स्थानीय हिन्दू निवासियों को भी नहीं छोड़ा था। जन्मभूमि के अन्दर एक कुंआ था जिसमे मुगल सैनिकों ने हिन्दुओं की लाशें फेक दीं थीं। मुगल सेना ने श्रीराम जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला था और बहुत दिनों तक यह स्थल एक गड्ढा के स्वरूप मे बना रहा था। अपने आराध्य देव के प्रति अटूट अस्था व विश्वास के कारण हिन्दू जनता भक्तिभाव से इसी स्थल पर जल, पुष्प, अक्षत चढ़ाती रहती थी।
सन् 1763 मे जन्मभूमि की रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरूदŸा सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बहां बने बाबरी ढ़ाचे पर पांच बार आक्रमण किए गए थे और हर बार अयोध्या मे हिन्दुओं की लाशें गिरतीं रहीं। हिन्दुओ के बार-बार आक्रमण के कारण नवाब ने हिन्दुओ व मुसलमानों को नमाज व भजन कीर्तन की अनुमति दे दी थी।
मकरही के राजा के नेतृत्व मे जन्मभूमि को पुनः अपने मूल स्वरूप मे लाने के लिए हिन्दुओं ने तीन बार आक्रमण किए थे जिसमे बढ़ी संख्या मे हिन्दू मारे गए थे। तीसरे आक्रमण मे आठवें दिन हिन्दुओं की शक्ति क्षींण होने लगी थी और जन्मभूमि पर हिन्दुओं व मुसलमानों की लाशों का ढेर लग गया था। कहा जाता है कि इस संग्राम मे भीती, हंसवर, मकरही, खजुरहट, दीयारा, अमेठी के राजा सम्मिलित थे। पराजित हुई हिन्दू सेना के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना भी युद्ध मे शामिल हो गई थी, परिणामतः मुगल सेना के चिथड़े उड़ गए थे और हिन्दुओ ने पुनः जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया था। लेकिन प्रत्येक बार की तरह कुछ दिनों बाद मुगल सेना ने जन्मभूमि को अपने अधिकार क्षेत्र मे ले लिया था।
नवाब वजिदअली शाह के समय पुनः हिन्दुओं ने जन्मभूमि को अपने कब्जे मे लेने के लिए आक्रमण किया था और इस संग्राम मे बहुत खूनखराबा हुआ था, सेकड़ों हिन्दू मारे गए थे, भयंकर युद्ध हुआ था, अंततः हिन्दुओं ने श्रीराम जन्मभूमि पर अधिपत्य कर लिया था। औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किए गए जन्मभूमि के चबूतरे को पुनः हिन्दुओं ने निर्मित कर लिया था और तीन फीट ऊंची खस की टाट से एक छोटा सा मन्दिर बना लिया था जिसमे श्रीरामलला की स्थापना की गई थी। परन्तु ऐसा अधिक दिन नहीं रह सका था और जेहदी मुसलमानों ने कालान्तर मे जन्मभूमि के चबूतरे को पुनः अपने कब्जे मे ले लिया था। इस प्रकार श्रीराम जन्मभूमि पर निरन्तर संघर्ष चलता रहा।
भारत की स्वतन्त्रता के साथ ही देश के प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरू हुए थे और प्रसंग से जुड़ते हुए यह जानना भी आवश्यक है कि तत्समय श्री राम जन्मभूमि स्थल के सन्दर्भ मे भारत के राजनीतिक व प्रशासनिक पटल पर क्या-क्या हुआ था। इसी के साथ उस समय फैजाबाद मे पदस्थ कलेक्टर श्री के.के. नायर को भी याद करना आवश्यक हो जाता है। के.के. नायर का जन्म दिनांक 11 सितम्बर 1907 को केरल के एलेप्सी मे हुआ था और दिनांक 7 सितम्बर 1977 को उनका स्वर्गवास हुआ। उनकी शिक्षा मद्रास, लन्दन मे हुई थी। वर्ष 1930 मे वह आई.सी.एस. (आज का आई.ए.एस., उस समय आई.सी.एस. कहा जाता था) दिनांक 1 जून 1949 को उन्हे फैजाबाद का कलेक्टर पदस्थ किया गया था। दिनांक 23 दिसम्बर 1949 को बाबरी मस्जिद (वास्तविक नाम श्रीराम जन्मभूमि) स्थल पर बड़ी संख्या मे रामभक्त व श्रद्धालुओ का एकत्रीकरण इस धारणा के साथ होने लगा कि श्री रामलला प्रकट हुए हैं। तभी तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने उŸार प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत व तत्कालीन गृहमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को कहा कि श्रीराम जन्मभूमि स्थल से तत्काल श्रीरामलला की प्रतिमा को हटा दिया जावे। जब यह सन्देश उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री की ओर से कलेक्टर के.के. नायर को पहुंचा तो उन्होने प्रतिमा हटाने से स्पष्टतः इन्कार कर दिया था। तब जवाहरलाल नेहरू ने सीधे कलेक्टर के.के. नायर को श्रीरामलला की प्रतिमा हटाने का निर्देश दिया था लेकिन इसके बावजूद भी के.के. नायर ने श्रीरामलला की मूर्ति नहीं हटवाई थी और श्रीराम जन्मभूमि स्थल से मूर्ति हटाने से इन्कार करते हुए कहा था कि मूर्ति किसी ने रखी नहीं है, बल्कि श्रीरामलला का प्रकटीकरण हुआ है। कहा जाता है कि कलेक्टर के.के. नायर को ट्रांसफर करने की भी धमकी दी गई थी, जिसके जवाब मे उन्होने कह दिया था कि ट्रांसफर पर काशी या मथुरा के अलावा अन्य कहीं नहीं जाएंगे। इस सूचना पर नेहरू नाराज हो गए। अन्ततः के.के. नायर को सस्पेंड कर दिया गया था। तब उन्होने इलाहबाद उच्च न्यायालय मे अपने निलम्बन आदेश को चुनौती दी थी और उच्च न्यायालय ने उनके निलम्बन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद के.के. नायर ने आगे नोकरी करने से इन्कार कर दिया था और स्वेच्छा से सेवानिवृति ले ली। तत्पश्चात सन् 1952 मे उन्होने इलाहबाद उच्च न्यायालय मे बकालत प्रारम्भ की थी।
श्री के.के. नायर जब फैजाबाद के कलेक्टर थे तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हे श्रीराम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया था। उन्होने अपने सहायक सिटी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट तैयार करने हेतु आदेशित किया था और तब श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर श्रीराम मन्दिर के निर्माण की सिफारिश की थी। समस्त रिपोर्ट के.के. नायर ने सरकार को भेजी थी कि इस स्थल पर पूर्व से मन्दिर था जिसे मुगल शासक बाबर के कार्यकाल मे तोड़ दिया गया था और उसके स्थान पर एक मस्जिद बनवा दी गई थी जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है। हिन्दू समुदाय एक विशाल मन्दिर बनाना चाहता है और इस हेतु उन्हे अनुमति दी जा सकती है।
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात भी बाबरी मस्जिद के विादित ढ़ाचा और श्रीराम जन्मभूमि के लिए हिन्दुओ का संघर्ष निरन्तर जारी बना रहा और दिनांक 6 दिसम्बर 1992 को रामभक्तों के जोश व उत्साह के कारण विशाल जन समूह ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। वहीं पर भगवान श्रीरामलला को एक टेंन्ट मे बिराजमान कर दिया गया था। इधर न्यायालयों मे श्रीराम जन्मभूमि स्थल के स्वत्व के लिए मुकदमाबाजी भी होती रही। अन्ततः दिनांक 9 नवम्बर 2019 को भारत की सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया कि प्रस्तुत हुई साक्ष्य व खुदाई मे मिले मन्दिर के चिन्हों से यह स्पष्ट है कि श्रीराम जन्मभूमि स्थल भगवान श्रीरामलला के स्वत्व व स्वामित्व की भूमि है और इस पर भगवान श्रीराम का मन्दिर बनाया जावे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार भारत सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का निर्माण किया गया और तब दिनांक 5 अगस्त 2020 को भारत के प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या मे श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर विशाल मन्दिर निर्माण हेतु भूमि पूजन किया।
(लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं।)
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