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    राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक

  • June 11, 2023

    – हृदयनारायण दीक्षित

    सत्य, शिव और सुन्दर भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं। भारतीय राष्ट्र का उद्भव सांस्कृतिक भाव भूमि में ही हुआ था। प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव इस संस्कृति की विशेषता है। भारतीय संस्कृति उदात्त है। इस विशाल देश में यहां अनेक भाषाएं और अनेक बोलियां हैं। अनेक भाषाओं और बोलियों के बावजूद यहां सांस्कृतिक एकता है। सभ्यता राष्ट्र की देह है। संस्कृति प्राण है। यह कला, गीत, संगीत, स्थापत्य आदि अनेक रूपों में व्यक्त होती है। सबसे खास बात है भारतीय संस्कृति में विश्व एक परिवार है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सूत्र में समूचा विश्व परिवार जाना गया है।

    स्वाधीनता संग्राम सांस्कृतिक नवजागरण था। यूरोप के पुनर्जागरण से भिन्न था। ऋग्वेद में सभी दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है। काव्य साहित्य और स्थापत्य संस्कृति की अभिव्यक्ति रहे हैं। सभी भारतीय भाषाओं में राष्ट्र का सांस्कृतिक प्रवाह प्रकट होता रहा है। संस्कृति का पोषण और संवर्द्धन प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। राष्ट्र राज्य का भी कर्तव्य है। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक संस्कृति और एक राष्ट्र की अवधारणा बिसरा दी गई। भारत की संस्कृति को कई संस्कृतियों का घालमेल बताया गया। इसे कम्पोजिट कल्चर कहा गया यहां अनेक बोलियां अनेक रीति रिवाज हैं। यहां विविधता है लेकिन विविधता के बावजूद सांस्कृतिक एकता भी है। यह बात डॉ. आंबेडकर ने ‘पाकिस्तान आर पार्टीशन ऑफ इंडिया’ में लिखी है। उन्होंने लिखा है कि यह बात सही है कि भारतवासी आपस में लड़ते झगड़ते हैं। लेकिन एक संस्कृति सबको जोड़े रखती है।


    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में संस्कृति संवर्द्धन पर उल्लेखनीय काम हुआ है। संस्कृति और धरोहरों का संरक्षण इन 9 वर्षों में एक विशेष एजेंडा रहा है। सांस्कृतिक धरोहरों की प्रतिष्ठा बढ़ी है। संस्कृति के प्रतीक वाले स्थानों, खूबसूरत मंदिरों के पुनर्निर्माण का काम हुआ है। श्रीराम भारत के मन के महानायक हैं। सारी दुनिया में उनकी कीर्ति है। राजनीति का एक बड़ा भाग श्रीराम को इतिहास पुरुष नहीं मानता। श्रीराम काल्पनिक चरित्र बताए जाते रहे हैं। केंद्र की सरकार ने राम वन गमन नाम की परियोजना शुरू की थी। यह मोदी जी की महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना ने दुनिया के तमाम देशों को आकर्षित किया है। इस परियोजना में 9 राज्यों में फैले 15 केंद्रों का पुनर्निर्माण/निर्माण सम्मिलित है। श्रीराम इन्हीं 9 राज्यों से होकर निकले थे। ऐसे स्थलों को पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित करना लक्ष्य रहा है। केंद्र सरकार के साथ सम्बंधित 9 राज्यों की सरकारें इस योजना पर काम कर रही हैं। राम भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रतीक हैं। श्रीराम के नाम से भारत की विशेष पहचान है।

    काशी को भारतीय संस्कृति की राजधानी कहा जाता है। अब वाराणसी आकर्षक नगर है। 2019 में प्रधानमंत्री की अपेक्षानुसार विश्वनाथ कॉरिडोर पर काम शुरू हुआ। मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार का काम भी साथ साथ चला। विश्वनाथ कॉरिडोर देश का दूसरा सबसे बड़ा कॉरिडोर है। 13 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया था। इस कॉरिडोर की चर्चा यत्र तत्र सर्वत्र होती है। मध्य प्रदेश का उज्जैन सांस्कृतिक महत्त्व का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां महाकाल के दर्शनार्थ लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष आते हैं। कालिदास की प्रतिष्ठित रचना ‘मेघदूत’ में महाकाल की प्रीतिकर उपस्थिति है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में महाकाल कॉरिडोर का निर्माण हुआ। इसकी भव्यता और सुंदरता आकर्षक है। अक्टूबर 2022 को उज्जैन में प्रधानमंत्री जी ने ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के विस्तृत क्षेत्र ‘महाकाल लोक’ का लोकार्पण किया था। यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का तीर्थ है।

    उत्तर प्रदेश के अयोध्या में श्रीराम के जन्म स्थान में भव्य मंदिर की अभिलाषा सपना रही है। जन्म भूमि को लेकर अनेक आंदोलन हुए। 2019 में श्रीराम जन्म भूमि सम्बंधी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया। मोदी जी ने स्वयं अगस्त 2020 में इसकी आधारशिला रखी। अयोध्या पहले से ही भारतीय संस्कृति दर्शन और आस्तिकता का केंद्र रही है। केंद्र सरकार अयोध्या को उसकी प्रतिष्ठा के अनुसार एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में विकसित कर रही है। यह काम इसी 9 वर्ष के दौरान शुरू हुआ। भव्य मंदिर का निर्माण जारी है। केंद्र और राज्य की सरकार बधाई की पात्र हैं। 2013 में केदारनाथ धाम के आस पास भीषण आपदा के कारण काफी क्षति हुई थी।

    प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में इसकी भव्यता को फिर से संवारा गया। केदारनाथ मंदिर परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्वयं किया था। केदारनाथ धाम का विकास जारी है। संस्कृति प्रेमियों और भारतीय दर्शन के निष्ठावान लोगों के मध्य शंकराचार्य का नाम श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है। वे अद्भुत विद्वान थे। भारतीय चिंतन में 6 प्राचीन दर्शन हैं। शंकराचार्य जी ने वेदांत दर्शन को विश्वव्यापी बनाया था। पं० दीन दयाल उपाध्याय ने शंकराचार्य पर एक पुस्तक भी लिखी थी। 25 नवंबर 2021 को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री जी ने किया था। मोदी सरकार ने उत्तराखंड के लिए चार धाम परियोजना शुरू की है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम जोड़ने वाली चार लेन सड़क का निर्माण जारी है।

    जम्मू-कश्मीर के रघुनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया गया। एक सरकारी अनुमान के अनुसार कश्मीर घाटी में लगभग 1842 आस्था केंद्र हैं। इनमें 952 मंदिर हैं। इनमें सिर्फ 212 में पूजा होती है। संविधान के अनुच्छेद 370 के हटने के बाद अनेक आस्था केंद्रों का पुनर्निर्माण हुआ है। लगभग 2300 वर्ष पुराने शारदा मंदिर की भी जीर्णोद्धार जारी है। कॉरिडोर का उद्घाटन गृहमंत्री अमित शाह ने किया था। खीरभवानी मंदिर का भी सौंदर्यकरण जारी है। फरवरी 2022 में हैदराबाद में ग्यारहवीं सदी के प्रख्यात संत व दार्शनिक रामानुजाचार्य के सम्मान में बनी 216 फिट ऊंची ‘स्टेच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया था। इस परिसर में 25 करोड़ की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन का निर्माण कराया गया था।

    करतारपुर कॉरिडोर उपेक्षित रहा है। केंद्र सरकार ने यहां कॉरिडोर बनाए। उस स्थान तक पहुंचने के लिए मार्ग भी बनाया गया। गुरु गोविन्द सिंह के पुत्रों के शहादत दिवस को मोदी सरकार ने ‘वीर बाल दिवस’ घोषित किया। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद मोदी जी के प्रयास से गुरु ग्रंथ साहिब की तीन प्रतियों की पवित्रता बनाए रखते हुए भारतीय वायु सेना के विमान से सुरक्षित रूप में भारत लाया गया। 9 वर्ष में दुनिया के दुसरे देशों में भी मंदिरों व सांस्कृतिक केंद्रों को भव्य बनाने का काम भी हुआ है।

    2018 में प्रधानमंत्री ने अबुधाबी में बनने वाले पहले हिन्दू मंदिर की आधारशिला रखी। उन्होंने 2019 में बहरीन की राजधानी अबुधाबी में श्रीकृष्ण श्रीनाथ के पुनर्निर्माण के लिए 4.2 मिलियन डॉलर देने की घोषणा की। अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर की यात्रा सुगम बनाई गई। 9 वर्ष में भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन के लिए ऐतिहासिक कार्य हुए हैं। सेकुलरवाद के बहाने संस्कृति और हिन्दुत्व को सांप्रदायिक बताने की लत पृष्ठभूमि में है। विपक्षी दलों के नेता भी सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रति निष्ठा व्यक्त कर रहे हैं।

    (लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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