नई दिल्ली। सावन पूर्णिमा (Sawan Purnima) के अवसर पर्व पर भाई-बहन का प्रमुख त्योहार रक्षाबंधन (Raksha Bandhan celebrated two days) मनाए जाने को लेकर समाज में बड़ी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण वैदिक विद्वान ही हैं जो स्वयं बंटे हुए है। विद्वानों में मतभेद (differences among scholars) के कारण शास्त्रीय विवेचन भी कठिन हो गया है और बहुमत के आधार पर पर्व का निर्णय मनाने की मजबूरी पैदा हो गयी है। इस संदर्भ में स्थानीय विद्वानों के बहुमत के आधार पर रक्षाबंधन पर्व 11 व 12 को दोनों दिन मनाया जाएगा। जबकि ब्राह्मणों के पर्व श्रावणी मनाने के लिए 11 अगस्त की तिथि तय हो गयी है।
रक्षाबंधन (भद्रा) में नहीं किया जा सकता और रक्षा बंधन भद्रा रहित पूर्णिमा में मनाया जाता है, किंतु इस वर्ष 11 अगस्त को सुबह 09.35 से पूर्णिमा तिथि लगेगी जो 12 अगस्त को सुबह 07.16 तक रहेगी और भद्रा 11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि के साथ ही सुबह 09.35 से प्रारंभ हो कर रात्रि 08.25 तक रहेगी। धर्म सिंधु के अनुसार सूर्योदय से तीन घड़ी 10 मुहूर्त से अधिक व्याप्त तिथि में भद्रा रहित अपरान्ह और प्रदोष काल में रक्षाबंधन करना चाहिए, यदि सूर्योदय काल से पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त से कम है तो पूर्व दिन भद्रा रहित प्रदोष काल में रक्षाबंधन करना चाहिए। 12 अगस्त को पूर्णिमा त्रिमुहूर्त व्यापिनी (तीन घटी) से कम है अतएव 11अगस्त को रात्रि 08.26 से लेकर रात्रि 11.30 के मध्य रक्षांबधन मनाया जायेगा। भद्रा रहित निशीथ काल से पहले 12 अगस्त को रक्षाबंधन का उत्तम मुहूर्त नहीं है।
काशी विद्वत परिषद ने भद्रा के उपरांत 11 अगस्त को रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत माना:श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है । इस वर्ष पूर्णिमा के मान 11 अगस्त को प्रात: 9:35 से आरंभ होकर 12 अगस्त के दिन प्रात: 7:16 तक होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं । काशी विद्वत परिषद की बैठक में धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के रक्षा बन्धन एवं श्रावणी उपकर्म निर्णय सम्बन्धी उद्धरणों का उल्लेख किया गया।
बताया गया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए। पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर छह घटी से न्यून हो तो रक्षाबंधन ठीक नहीं । 12 अगस्त को पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही है। ऐसी दशा में 11 अगस्त को ही रात्रि 8:25 के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा। श्रावण पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण कर्म उपाकर्म भी होता है जिसका अनुष्ठान धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि में करना शास्त्र सम्मत रहेगा। उपाकर्म में भद्रा दोष नहीं लगता।
धर्मसम्राट करपात्री महाराज के शिष्य 12 अगस्त को रक्षाबंधन की दे रहे सलाह
धर्मसम्राट करपात्री महाराज के विद्वान शिष्य भागवदाचार्य काशी का निर्णय है कि 11 अगस्त को पूर्णिमा शुरु होते ही भद्रा लग रही हैं जो क्षेत्र के आधार पर रात्रि 9.00 बजे से 9.30 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा 12 अगस्त को प्रात: काल 7.15 रहेगी। रक्षाबंधन सूर्य अस्त होने के बाद नहीं मनाया जाता। इसीलिए 12 अगस्त को सूर्य उदय के बाद ही रक्षाबंधन शास्त्रसम्मत है। विषेष परिस्थितियों में यदि रक्षासूत्र को बहनें प्रात: 7.15 बजे से पहले स्नान करके भगवान शिव या भगवान के श्रीविग्रह के चरणों में रख दें तो 12 अगस्त को पूरा दिन सूर्य अस्त से पूर्व रक्षाबंधन बांध सकती हैं।
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