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    कैदियों द्वारा बनाई गई राखी देश के फौजी पहनेंगे

  • July 20, 2020

    • इंदौर, उज्जैन सहित अन्य जेलों में प्रतिदिन हजारों राखियों का निर्माण कार्य जारी
    • कुछ जेलों में स्टॉल लगाकर बिक्री भी की जाएगी

    इन्दौर। प्रदेशभर की सेंट्रल और जिला जेलों में सजा काट रहे कैदी इन दिनों जेल के अंदर प्रतिदिन हजारों राखियों का निर्माण करने में जुटे हुए हैं। कैदियों द्वारा तैयार की गई राखी देश की सीमाओं पर तैनात फौजियों को भेंट की जाएगी और फौजियों की कलाई पर यह राखियां बंधेंगी। कुछ जेलों में स्टॉल लगाकर इनकी बिक्री भी की जाएगी।
    कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते अधिकांश जेलों में कैदियों की रोज होने वाली सोशल एक्टिविटी बंद है और उनसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए छोटा-मोटा काम कराया जा रहा है। इसकी शुरुआत इंदौर की सेंट्रल जेल से की गई थी, जहां कैदियों के माध्यम से बंद पड़ी स्टील के बर्तनों के निर्माण की यूनिट को चालू किया गया था। कैदियों द्वारा यहां स्टील की थाली, गिलास, कटोरी, चम्मच आदि का निर्माण किया जा रहा है। वहीं 3 अगस्त को कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच ही भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन मनाया जाएगा। जेल में कैदियों द्वारा दिन-रात मेहनत कर राखियां बनाने का काम किया जा रहा है। जेल के अधिकारियों के अनुसार सबसे ज्यादा राखियों का निर्माण उज्जैन की भैरवगढ़ जेल में हो रहा है। यहां प्रतिदिन हजारों राखियां कैदियों द्वारा तैयार की जा रही हैं। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर की जेलों में भी कैदियों के माध्यम से राखियों का निर्माण किया जा रहा है। जेल के अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कैदियों द्वारा तैयार की गई राखियां डाक के माध्यम से देश की सीमा पर तैनात फौजी भाइयों को भेजी जाएंगी और फौजी भाई इन राखियों को रक्षाबंधन के पर्व पर पहनेंगे। इसके अलावा इंदौर, उज्जैन सहित अन्य जेलों के बाहर स्टॉल लगाकर नाममात्र के शुल्क पर इन्हें आम लोगों को बेचा भी जाएगा।
    लाखों मास्क भी तैयार किए
    कोरोना वायरस से बचाव में उपयोगी मास्क का निर्माण भी जेलों में जारी है। मार्च में जैसे ही कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ था, उसी दौरान कैदियों ने मास्क तैयार करने का काम जेल के अंदर ही शुरू कर दिया था। जेल प्रशासन ने इन्हें उच्च क्वालिटी का कपड़ा उपलब्ध कराया था। कैदियों द्वारा तैयार किए गए मास्क को सबसे पहले जेल के स्टाफ ने पहना, फिर इन्हें कैदियों को ही दिया गया। बाद में नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, आईडीए को भेंट किया गया। नाममात्र के शुल्क पर इनकी बिक्री भी की गई, जिससे जेल प्रशासन को लाखों रुपयों की आय भी हुई।

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