हम हिन्दू-मुस्लिम में उलझे पड़े हैं और यहां और एक बड़ा जाति वर्गभेद पैदा होता जा रहा है… आरक्षण से जूझती सामान्य वर्ग की प्रतिभाओं के लिए अब राजनीति के दरवाजे भी बंद होते जा रहे हैं… उप्र में मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने जब पिछड़ों को जोड़कर सत्ता हासिल की, तभी से सभी राजनीतिक पार्टियों का रुझान इस वर्ग की ओर बढ़ता चला गया… हालत यह है कि अब देश के हिन्दीभाषी राÓयों में यह वर्गभेद का समीकरण तेजी से उभरने लगा है… पहले कांग्रेस ने ओबीसी और पिछड़ा वर्ग को साधकर मप्र में सत्ता में आने का प्रयास किया, लेकिन विश्वास के अभाव में वो तो सफल नहीं हो पाई, लेकिन भाजपा ने इस मर्म को ताड़ते हुए मध्यप्रदेश में ओबीसी तो छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री को पदासीन किया… हालांकि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी इसी वर्ग से आते थे और उसी समीकरण को यथावत रखते हुए प्रदेश में डॉ. मोहन यादव की ताजपोशी की गई… हालांकि मुख्यमंत्री यादव न केवल उ”ा शिक्षित हैं, बल्कि राजनीति की पाठशाला के भी अनुभवी हैं… लेकिन उनके मंत्रिमंडल की बात करें तो प्रदेश की जनसंख्या में बहुतायत रखने वाले सामान्य वर्ग से केवल 8 मंत्री हैं तो 1& ओबीसी, 5 दलित और 5 आदिवासी समाज से हैं… यह समीकरण इस बात का साक्षी है कि देश और प्रदेश की राजनीति अब पिछड़े, आदिवासी वर्ग की ओर केन्द्रित होती जा रही है… यह समीकरण इसलिए पनप रहा है कि सामान्य वर्ग के लोगों में जाति-वर्ग को लेकर कोई दुराग्रह नहीं है… सामान्य वर्ग के लिए पिछड़े और आदिवासी वर्ग के लिए जहां स्वीकारोक्ति है, वहीं उनका कोई विशेष संगठन भी नहीं है, जबकि पिछड़े आदिवासियों के लिए आदिवासी मोर्चा, भारत आदिवासी पार्टी और जयस जैसे संगठन भी मौजूद हैं… सामान्य वर्ग के पक्ष में यदि कोई बात जाती है तो वह केवल उनकी शिक्षा, सामर्थ्य और सामाजिक चेतना है… मप्र में यदि मंत्रिमंडल के गठन में ओबीसी और पिछड़े वर्ग की सोशल इंजीनियरिंग पर यदि सर्वाधिक ध्यान दिया गया है तो उसका कारण उप्र, बिहार सहित अन्य राÓयों के चुनाव भी हैं, जहां इन वर्गों का दबदबा है… मुख्यमंत्री मोहन यादव की ताजपोशी ने जहां बिहार में नीतीश कुमार को झटका दिया है, वहीं समाजवादी नेता अखिलेश यादव भी सकते में हैं… उप्र में योगी आदित्यनाथ का तो जबरदस्त प्रभाव है ही, लेकिन इस वर्ग को साधकर देश के सबसे बड़े प्रांत को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी तरह साध लिया है… सही मायनों में देखा जाए तो अब पिछड़ा वर्ग नाम के लिए ही पिछड़े रह गया है… राजनीति में उनके उत्थान ने अगड़ों को पिछड़ा कर दिया है…
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