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राजनाथ की ईरान यात्रा का महत्व

September 08, 2020

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ईरान यात्रा पूर्वनिर्धारित नहीं थी। वह तीन दिनों की यात्रा पर रूस गए थे। यहां रूस के साथ सामरिक सहयोग बढ़ाने का महत्वपूर्ण करार हुआ। राजनाथ शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी सम्मलित हुए। इस सम्मेलन में उनके विचारों को सर्वाधिक महत्व दिया गया। इसके बाद राजनाथ सिंह ईरान रवाना हुए थे।

जब देश की सीमा पर तनाव होता है, कई प्रकार के अप्रत्याशित निर्णय भी करने होते हैं। राजनाथ सिंह ने कोरोना संकट काल में ही दो बार रूस की यात्रा की। इससे भारत को सामरिक व कूटनीतिक लाभ हुआ। इसी प्रकार उनकी ईरान यात्रा भी महत्वपूर्ण साबित हुई। चीन व पाकिस्तान के संदर्भ में भी इसका महत्व है। इसके पहले राजनाथ सिंह ने मास्को में मध्य एशिया के देशों के साथ बैठक की थी। इसके भी सकारात्मक परिणाम हुए। इन देशों के साथ भारत का व्यापार बढ़ेगा।

नरेंद्र मोदी सरकार ने ईरान पर अमेरिका के दबाव को मानने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति पर अमल करेगा। इसमें भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय हित को अहमियत दी जाएगी। इसके साथ ही भारत विश्व शांति का समर्थक है। इसके अनुकूल ही वह अन्य देशों के साथ अपने संबन्धों का निर्धारण करेगा। इस नीति के अंतर्गत ही ईरान को महत्व दिया गया। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने पूरे मध्य पूर्व में स्वतन्त्र विदेश नीति पर अमल किया। कई इस्लामी मुल्कों ने नरेंद्र मोदी को अपना सर्वोच्च सम्मान दिया, इस्राइल खुलकर भारत का समर्थन कर रहा है।

राजनाथ सिंह ने मास्को में खाड़ी के देशों से अपने मतभेदों को परस्पर सम्मान के आधार पर बातचीत से सुलझाने का अनुरोध किया था। मध्य एशियाई देशों उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और ताजिकिस्तान के रक्षामंत्रियों के साथ भी द्विपक्षीय संबंधों और रक्षा समझौतों पर चर्चा हुई थी। एससीओ के आठ सदस्य देशों में भारत, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान,रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान हैं। इनमें चीन व पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी के साथ भारत के बेहतर रिश्ते हैं। राजनाथ सिंह ने ईरान पहुंचकर चीन और पाकिस्तान को सन्देश दिया है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के जवाब में भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है। यह भारत के लिए सामरिक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है। कुछ समय पूर्व चीन व ईरान के बीच व्यापारिक समझौता हुआ था।

भारत यह बताना चाहता है कि इस समझौते से भारत व ईरान के संबन्धों में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। चाबहार बंदरगाह से भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच व्यापार में भारी वृद्धि होगी। इसलिए चीन से समझौते के बाद भी भारत-ईरान संबन्ध मजबूत बने रहेंगे। इतना ही नहीं, इस बंदरगाह के माध्यम से रूस ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से भी भारत का व्यापार बहुत बढ़ जाएगा। रूस से व्यापार घाटे को भी कम करना संभव हो जाएगा। मजहबी कारण से ईरान व पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण रहते हैं। उधर रूस भी कह चुका है कि वह आतंकवाद के विरोध में भारत के साथ है। अब वह पाकिस्तान को हथियार नहीं देगा। क्योंकि उसको दिए गए हथियार आतंकी संगठनों तक पहुंच जाते हैं।

राजनाथ सिंह की ईरान यात्रा कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हुई। यहां ईरान के रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल अमीर हातमी से उनकी उपयोगी वार्ता हुई। उनकी इस यात्रा से अफग़ानिस्तान में भारतीय सहयोग से चल रही विकास योजनाओं को भी गति मिलेगी क्योंकि इसके लिए ईरान की भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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