नई दिल्ली । ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार(British-Indian novelists) सलमान रुश्दी(Salman Rushdie) की विवादास्पद पुस्तक “द सैटेनिक वर्सेज” राजीव गांधी सरकार(Rajiv Gandhi Government) द्वारा प्रतिबंधित किये जाने के करीब 36 साल बाद खामोशी से भारत वापस आ गयी है। पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी स्थित ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ में इस पुस्तक का “सीमित स्टॉक” बिक रहा है। इस किताब की विषय-वस्तु और लेखक के विरुद्ध काफी हंगामा हुआ था और दुनिया भर के मुस्लिम संगठनों ने इसे ईशनिंदा वाला माना था।
‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ की मालिक रजनी मल्होत्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हमें किताब मिले कुछ दिन हो गए हैं और अब तक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही है। अच्छी बिक्री हो रही है।” किताब की कीमत 1,999 रुपये है और यह पुस्तक केवल दिल्ली-एनसीआर में ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ स्टोर पर उपलब्ध है।
किताब विक्रेता ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ अब बाहरीसन्स बुकसेलर्स पर उपलब्ध है। इस अभूतपूर्व और विचारोत्तेजक उपन्यास ने अपनी कल्पनाशील कहानी और ‘बोल्ड’ थीम के साथ दशकों से पाठकों को आकर्षित किया है। यह अपने विमोचन के बाद से ही वैश्विक विवाद के केंद्र में रही है, जिसने अभिव्यक्ति की आजादी, आस्था और कला पर बहस छेड़ दी है।”
‘पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया’ की प्रधान संपादक मानसी सुब्रमण्यम ने भी सोशल मीडिया मंच पर रुश्दी का उद्धरण देते हुए पोस्ट किया। उन्होंने कहा, “भाषा साहस देती है, किसी विचार को ग्रहण करने और व्यक्त करने की काबिलियत पैदा करती है और इस हिम्मत के साथ सच्चाई आकार लेती है।’ आखिरकार। सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को 36 साल के प्रतिबंध के बाद भारत में बेचने की अनुमति मिल गई है। यह किताब दिल्ली के बाहरीसन्स बुकस्टोर पर उपलब्ध है।” ‘मिडलैंड बुक शॉप’ और ‘ओम बुक शॉप’ सहित अन्य बुकस्टोर ने इस पुस्तक को आयात करने की योजना नहीं बनाई है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवंबर में उपन्यास के आयात पर राजीव गांधी सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी और कहा था कि चूंकि अधिकारी प्रासंगिक अधिसूचना पेश करने में विफल रहे हैं, इसलिए यह “मान लिया जाना चाहिए कि वह मौजूद ही नहीं है।” यह आदेश तब आया जब सरकारी अधिकारी पांच अक्टूबर 1988 की अधिसूचना प्रस्तुत करने में विफल रहे जिसमें पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया था।
1988 में किताब प्रकाशन के कुछ समय बाद ही मुश्किल में पड़ गई थी। ईरानी नेता रूहोल्लाह खोमैनी ने एक फतवा जारी कर मुसलमानों से रुश्दी और उसके प्रकाशकों की हत्या करने को कहा था। रुश्दी ने लगभग 10 साल ब्रिटेन और अमेरिका में छिपकर बिताए। जुलाई 1991 में उपन्यासकार के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की उनके कार्यालय में हत्या कर दी गयी। लेबनानी-अमेरिकी हादी मतर ने 12 अगस्त 2022 को एक व्याख्यान के दौरान मंच पर रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया, जिससे उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। भले ही यह पुस्तक बाहरीसन्स बुकसेलर्स पर बिक्री के लिए उपलब्ध है, फिर भी पाठकों की ओर से इसे मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है।
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