इंदौर। 65 एकड़ की चर्चित राजगृही कालोनी में धारा 20 सीलिंग की छूट की भी नई जानकारी सामने आई है। पिछले दिनों प्रशासन ने सूर्या गृह निर्माण के अलावा अन्य गृह निर्माण संस्थाओं में इस छूट के दुरुपयोग को लेकर जमीन को सरकारी घोषित करने की प्रक्रिया भी शुरू की है। लगभग ढाई एकड़ सरकारी जमीन भी कालोनी में शामिल कर अभिन्यास मंजूर करवा लिया। वहीं संस्था के सदस्यों की वरीयता सूची भी आज तक नहीं बनी और बेची गई जमीन की मूल फाइल ही सहकारिता विभाग से गायब हो गई। लगभग आधा दर्जन अन्य संस्थाओं को जमीन बेचने के अलावा कुछ रसूखदारों ने भी भूखंड ग्रुप बनाकर कबाड़ लिए।
पिछले दिनों शहरी सीलिंग एक्ट का फायदा लेकर सरकारी होने से बचाई जमीनों की संस्थाओं ने सदस्यों की बजाय ये जमीनें भूमाफियाओं और रसूखदारों के हत्थे चढ़ गई। सर्वानंद और सूर्या गृह निर्माण के साथ कलेक्टर मनीष सिंह ऐसी तमाम गृह निर्माण संस्थाओं के खिलाफ विस्तृत आदेश जारी कर रहे हैं, जिसमें शहरी सीलिंग की धारा 20 की छूट संस्थाओं को मिली और उन्होंने सदस्यों को भूखंड देने की बजाय जमीनों की अफरा-तफरी कर दी। दरअसल शहरी सीलिंग की छूट में ही यह स्पष्ट शर्त थी कि दुरुपयोग होने पर छूट स्वत: समाप्त हो जाएगी और जमीन शासन में वैस्थित मान ली जाएगी। पिछले दिनों सूर्या गृह निर्माण का विस्तृत आदेश प्रशासन ने जारी किया और अब यह भी खुलासा हुआ कि पिपल्याहाना स्थित जागृति गृह निर्माण संस्था की चर्चित कालोनी राजगृही को भी शहरी सीलिंग से छूट हासिल है।
इसके चलते अब प्रशासन इस संबंध में भी कार्रवाई करेगा। पिछले दिनों भोपाल से आए आदेश के बाद 1500 की बजाय 1250 स्क्वेयर फीट के भूखंड देने की कवायद भी शुरू हुई। हालांकि यह इसलिए आसान नहीं है क्योंकि 1500 स्क्वेयर फीट के मान से रजिस्ट्रियां करवाई गई और उसी आधार पर पूर्व में कालोनी का अभिन्यास मंजूर करवाया, जिसमें बाद में जो संशोधन किया उसमें भी नगर तथा ग्राम निवेश ने अभी स्पष्टीकरण जारी किया है कि तथ्यों को छुपाकर ली गई अनुमति के चलते मंजूर अभिन्यास को प्रतिसंहित किया गया था, जिसे अब पुनर्जीवित करना संभव नहीं है। कलेक्टर द्वारा पिछले दिनों राजगृही की जो जांच एसडीएम प्रतुल्ल सिन्हा से कराई गई थी उन्होंने भी अपनी जांच रिपोर्ट में कई नए तथ्यों का खुलासा किया है। वरीयता सूची भी नहीं है, तो भूखंडों का आबंटन कैसे हो गया? सविता गृह निर्माण को भूमि विक्रय की अनुमति डिप्टी रजिस्ट्रार ने दी, मगर उसकी मूल फाइल ही गायब है। जबकि दीप गणेश, दीप ऋषभ व अन्य को बेची जमीनों की तो अनुमति भी नहीं ली।
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