शहर की शान राजबाड़ा एक माह बाद फिर अपनी रौनक में लौटेगा
झारखंड की कम्पनी ने अलग-अलग राज्यों के मजदूरों की टीम जुटाकर दिया काम को अंजाम, अब एक माह तक गिट्टी पाउडर की कोटिंग और फाइनल वर्क होगा
इंदौर, सुनील नावरे। आजादी के बाद राज्य शासन (State Goverment) द्वारा अत्यधिक टैक्स लगाए जाने के चलते शिवविलास पैलेस तो पहले ही बिक गया था, बाद में 1974 में राजबाड़ा (Rajbara) भी 16 लाख रुपए मेें बेच दिया गया। बाद में शासन ने राशि लौटाकर राजबाड़ा (Rajbara) पुरातत्व विभाग (archeology department) को सौंप दिया था। राजबाड़ा (Rajbara) की मरम्मत का काम बीते तीन-चार वर्षों से जारी है और अब एक माह में काम पूरा होने की उम्मीद है। इसे फिर से संवारने के लिए 17 करोड़ का ठेका झारखंड की कंपनी को दिया गया।
शहर की कई छत्रियों को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत संवारने का काम पहले ही करोड़ों की लागत से पूरा किया जा चुका है। इनमें बोलिया छत्री, छत्रीबाग की छत्रियां, कृष्णपुरा और कुछ अन्य स्थानों की छत्रियां हैं। इसके बाद गोपाल मंदिर को संवारने का काम पूरा कर लिया गया। गोपाल मंदिर के साथ-साथ राजबाड़ा को भी संवारने का काम शुरू किया गया था, लेकिन कोरोना काल के चलते काफी समय तक काम बंद रहने के चलते इसमें देरी हुई। अब इसकी रंगत धीरे-धीरे नजर आने लगी है। राजबाड़ा के आसपास लगाया गया लोहे का जाल भी हटाया जा रहा है। ऊपरी मंजिल की कुछ छतों को सुधारने का काम किया गया तो कुछ जगह नई छतें बिछाई गईं, जिनमें दाल, गुड़, मैथीदाना, बिलपत्र का फल उपयोग में लाया गया। देसी पद्धति से काम किया गया, ताकि उसके मूल स्वरूप को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे। इतिहासकारों के मुताबिक अत्यधिक टैक्स के चलते कभी ट्रस्टों द्वारा इस मामले में राज्य शासन को शिकायतें की गई थीं और इसी कारण शिवविलास पैलेस को बेच दिया गया था। उसके बाद फिर 1974 में राजबाड़ा भी 16 लाख रुपए में बिक गया था। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल ने राजबाड़ा की बिक्री के लिए दी गई राशि वापस कराकर फिर से शहर की जनता को यह अमूल्य धरोहर सौंप दी थी और इसकी देखरेख तभी से पुरातत्व विभाग करता आ रहा है।
दीवारों पर गिट्टी पाउडर और चूने की कोटिंग
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के कार्यपालन यंत्री डीआर लोधी के मुताबिक राजबाड़ा का काम अब आंतरिक हिस्सों में कुछ शेष बचा है, जो एक माह में पूरा हो जाएगा। कई जगह जीर्ण-शीर्ण दीवारों को सुधारा जा रहा है और उस पर चूने और गिट्टी के पाउडर की कोटिंग की जा रही है। बाहरी हिस्सों में अधिकांश कार्य पूरा कर लिया गया है और अब एक बार फिर आला अधिकारियों की टीम निरीक्षण के लिए पहुंचेगी, जिसमें पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी शामिल रहेंगे।
वडोदरा, अहमदाबाद, जयपुर के एक्सपर्ट जुटे
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत राजबाड़ा को संवारने का काम नासपे कंपनी झारखंड को 17 करोड़ रुपए में दिया गया। शुरुआती दौर में काम करने वाले कंपनी को भी परेशानी आ रही थी, जिसके चलते पहले पुरातत्व विभाग के स्थानीय अधिकारियों से परामर्श लिया गया और बाद में धीरे-धीरे वडोदरा, अहमदाबाद, जयपुर, पंजाब के कई एक्सपर्ट को बुलाया गया और उनके मार्गदर्शन में काम चला। अफसरों के मुताबिक कई जगह लकड़ी के कार्य थे, जिसके चलते पंजाब के कुशल कारीगरों की मदद ली गई, जिन्होंने गोपाल मंदिर संवारने में भी भूमिका निभाई। इसके अलावा वडोदरा के कई एक्सपर्ट आए और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ निरीक्षण कर दिशा-निर्देश दिए।
अब रंगरोगन की बारी, चार सैंपल भेजे
अफसरों के मुताबिक राजबाड़ा पर वर्षों पुराने पैटर्न का वही रंग किया जाएगा, मगर फिर भी सावधानी के बतौर कंपनी और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने वहां किए जाने वाले रंगों के चार सैंपल पुरातत्व विभाग को भेजे हैं, जिनमें से एक सैंपल फाइनल किया गया है। राजबाड़ा का रंग नहीं बदलेगा, लेकिन फिर भी सैंपल के फाइनल रंग को कुछ हिस्सों में ही पहले प्रयोग के तौर पर किया जाएगा और फिर अफसरों की टीम के फाइनल करने के बाद पूरे राजबाड़ा पर वही कलर होगा।
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