जयपुर (Jaipur)। राजस्थान (Rajasthan) के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट (Former Deputy CM Sachin Pilot) ने एक बार फिर तल्ख तेवर (harsh attitude) दिखाए हैं। पायलट ने दो टूक कहा है कि वह वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के शासन में हुए भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग पर अडिग हैं। वह किसी डरने वाले नहीं हैं। किसी की परवाह नहीं है। बता दें कि, पायलट ने बीजेपी सरकार (BJP government) के शासन में हुए कथित भ्रष्टाचार (alleged corruption) के खिलाफ पिछले माह एक दिन का अनशन किया था। कांग्रेस ने इसे पार्टी विरोधी कदम बताया था। पार्टी आलाकमान की सख्ती के बावजूद भी सचिन पायलट अपनी मांग पर अडिग हैं।
राजानीतिक विश्लेषक चुनाव से पहले पायलट के तेवरों के अलग-अलग सियासी मायने निकाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की यह प्रेशर पॉलिटिक्स है। हालांकि, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) ने साफ कहा है कि पायलट को अनशन की बजाय विधानसभा में सवाल उठाना चाहिए। सीएम गहलोत का जवाब मिल जाता।
चुनाव से पहले दबाव की रणनीति
राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2023 के अंत में है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पायलट चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान उनके समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दे। पायलट संगठन में नियुक्तियां चाहते हैं, इसलिए चुनाव से पहले मुद्दा उठाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें गहलोत कैबिनेट के 4 मंत्री पायलट समर्थक माने जाते हैं, जबकि एक दर्जन से अधिक विधायक पायलट समर्थक माने जाते हैं। पायलट चाहते हैं कि उनके समर्थकों की संख्या बढ़े ताकि चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री की रेस में आगे बने रहे।
राजनीतिक विश्लेषक पायलट की नाराजगी की वजह महत्वाकांक्षा से जोड़कर देख रहे हैं। इसलिए पायलट बार-बार अपनी ही सरकार को घेर रहे हैं। पायलट ने पेपर लीक का मुद्दा उठाकर एक बार फिर सीएम अशोक गहलोत को निशाने पर ले लिया। जानकारों का कहना है कि पायलट सरकार में एक साल से अधिक मंत्री पद पर रहे थे। उस समय पायलट ने वसुंधरा के भ्रष्टाचार का मुद्दा क्यों नहीं उठाया। चुनाव से 7-8 महीने पहले मुद्दा उठाकर पायलट सीएम गहलोत को पर दबाव बनाना चाहते हैं।
चुनाव से पहले चाहते हैं पार्टी में बड़ी भूमिका
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सचिन पायलट चाहते हैं कि चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे। 2020 की बगावत के बाद पायलट को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि, सुलह होने के बाद पायलट समर्थक विधायकों को मंत्री बना दिया था, लेकिन सचिन पायलट को मंत्री नहीं बनाया था। पायलट ने सत्ता में बराबर की हिस्सेदारी ली, लेकिन पायलट समर्थक चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान चुनाव से पहले सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी दें। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावन से पहले सचिन पायलट दबाव की रणनीति के तहत अपनी मांगें मनवाने में कामयाब हो सकते हैं, क्योंकि कि पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस आलाकमान हर मांग पूरी करता आ रहा है। चुनाव से पहले पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है।
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