जयपुर। राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट के राजनीतिक घमासान का पहला राउंड सियासी हुनर और शक्ति-प्रदर्शन के इम्तिहान का था जिसमें मुख्यमंत्री पास हो गए। दूसरा राउंड अदालती चौखट पर पहुंचा हुआ है। अपने सियासी वार से पायलट को ‘पैदल’ करने वाला गहलोत कैंप अब सरकार की स्थिरता को लेकर निश्चिंत है। सचिन पायलट की अगुआई में बागी विधायकों ने स्पीकर से मिले अयोग्यता नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती दी है लेकिन गहलोत खेमा बेफिक्र है। फैसला जो भी आए, कांग्रेस आलाकमान और सीएम गहलोत ने ऐक्शन प्लान तैयार कर रखा है। अगर पायलट कैंप इस अदालती लड़ाई को जीत भी जाती है तब भी उन्हें या तो पार्टी के साथ आना ही होगा या फिर विधानसभा सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा।
सूत्रों के मुताबिक सीएम गहलोत जब शनिवार को गवर्नर कलराज मिश्र से मिले तो उन्हें किसी भी वक्त सदन में बहुमत साबित करने की अपनी इच्छा से अवगत कराया। सीएम ने गवर्नर को 2 अन्य विधायकों के सरकार को मिले समर्थन की जानकारी दी। सूत्रों के मुताबिक गहलोत ने गवर्नर को बताया कि वह विधानसभा का सत्र बुलाएंगे और बहुमत परीक्षण से गुजरेंगे। हालांकि, सत्र बुलाने के फैसले में कानूनी लड़ाई की वजह से देरी हो रही है।
कांग्रेस के चीफ विप की तरफ से बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की याचिका पर स्पीकर सीपी जोशी ने पायलट और उनके 18 समर्थक विधायकों को नोटिस दिया है। इस नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट का मंगलवार को फैसला आना है। यह फैसला अगर बागियों के हक में भी गया तब भी कुछ खास नहीं बदलने वाला और गहलोत खेमा इसके लिए भी पहले से पूरी तैयारी कर ली है।
कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और सीएम अशोक गहलोत ने पायलट कैंप पर ऐसा शिकंजा कसा है कि उनका निकलना आसान नहीं है। राजस्थान में मध्य प्रदेश की कहानी न दुहराई जाए, इसके लिए कांग्रेस आलाकमान ने समय रहते मोर्चा संभाल लिया। पायलट को डेप्युटी सीएम और राजस्थान कांग्रेस के चीफ पद से हटाने के साथ-साथ सोनिया गांधी ने सूबे में पार्टी के पूरे संगठन को ही मथ दिया। बतौर प्रदेश अध्यक्ष पायलट ने अपने 7 साल के कार्यकाल में संगठन में अपने जितने भी लोगों को जगह दी थी, एक झटके में उन सभी को उनके पदों से हटा दिया गया। यह सोनिया-गहलोत का पहला सीधा वार था।
मौजूदा याचिका में बागियों ने सिर्फ स्पीकर के नोटिस को चैलेंज किया है। दलबदल विरोधी कानून के तहत इसके दो पहलू हैं- पहला ये कि क्या बागियों की गतिविधियां ADL के तहत ‘स्वेच्छा से कांग्रेस की सदस्यता छोड़ने’ के समान है और दूसरा पहलू यह है कि क्या इस मामले के अदालत में लंबित रहने के दौरान भी कांग्रेस इन विधायकों को बहुमत परीक्षण में हिस्सा लेने का निर्देश देने के लिए एक अन्य विप जारी कर सकती है। अगर गहलोत ने विश्वास प्रस्ताव रखा तो पार्टी बागियों को फिर से विप जारी कर सकती है और तब ये मामला फिर से हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है।
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