कोटा। राजस्थान (Rajasthan) के कोटा में रंगों-उमंगों का त्योहार होली (festival of colors Holi) और उसके अगले दिन धुलेंडी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन रियासतकाल में कोटा में हाथियों की होली (Elephants Holi) यहां के लोगों के मनोरंजन का सबसे बड़ा जरिया हुआ करती थी। कोटा के जाने-माने इतिहासकार डॉ जगत नारायण (Dr Jagat Narayan) ने अपनी पुस्तक ‘महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय एवं उनका समय’ में रियासतकाल में कोटा के राजपरिवार की ओर से आयोजित होने वाली इस हाथियों की होली का विवरण किया है।
अपने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में होली का उल्लेख करते हुए डॉ. जगत ने लिखा है कि ‘हाथियों की होली कोटा की जनता के मनोरंजन का सबसे बड़ा कार्यक्रम होता था। रियासतों के समय राजपरिवार के रिसाले में तो खूब हाथी होते थे तो तत्कालीन जागीरदारों-ठिकानदारों के पास भी हाथी होते थे। महाराव उम्मेद सिंह के शासनकाल में महाराव दोपहर 12 बजे पतंगी रंग की पोशाक पहनकर गढ़ से जनानी ड्योड़ी पहुंचकर चंद्र महल में रानी के साथ होली खेलते थे जबकि तत्कालीन महाराव के हुक्म के अनुसार जागीरदार-सरदार हाथी के ऊपर बैठते थे।’ उन्होंने बताया कि इसके बाद महाराव की उपस्थिति में कोटा के पाटनपोल, घंटाघर, रामपुरा से लाडपुरा तक हाथियों का यह काफिला होली खेलते गुजरता था, जिसे देखने हजारों लोग उमड़ पड़ते थे और तब चारदीवारी के भीतर सिमटे कोटा का सारा वातावरण ही उल्लास में हो जाता था।
‘किराये पर हाथी देकर करने थे जीवन यापन’
बीते कुछ दशकों पहले तक कोटा में ऐसे कुछ महावत परिवार निवास करते थे जिन्होंने हाथी पाल रखे थे। इनमें से ज्यादातर महावतों ने उस समय लगभग उपेक्षित पड़े कोटा के नयापुरा इलाके में स्थित दो भागों में बंटे ऐतिहासिक क्षार बाग के बड़े हिस्से पर कब्जा करके वहां हाथी पाल रखे थे जिसका उपयोग वे त्योहारों, शादी-ब्याह में हाथियों को किराए पर देकर अपने परिवार का गुजर-बसर करने में करते थे।
कोटा में बचे कुछ ही महावत
डेढ़ दशक पहले वर्तमान एवं तत्कालीन नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों से क्षार बाग के नाना देवी मंदिर वाले हिस्से का जीर्णोद्धार-सौंदर्यीकरण एवं मनोरंजन स्थल के रूप में विकास हुआ तो महावतों को यहां से हटना पड़ा। अब कोटा में कुछ ही महावत परिवार ऐसे हैं जिनके पास हाथी बचे हैं। वैवाहिक सीजन में दूल्हे की सवारी के लिए किराए पर देकर जीविका उपार्जन करते हैं, हालांकि कोटा में होली का उल्लास आज भी कम नहीं हुआ है। खासतौर पर धुलेंडी के दिन ढोल-ताशे, चंग बजाते नाचते-गाते लोगों के हुजूम जब शहर की मुख्य सड़कों-गलियों में गुलाब-अबीर उड़ाते एक-दूसरे के चेहरे को उससे मलते देखते हैं तो मन खुशी से सराबोर हो जाता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved