– रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान कांग्रेस में सत्ता को लेकर चल रहा संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। इस कारण प्रदेश में बहुप्रतिक्षित मंत्रिमंडल में फेरबदल व विस्तार रुका पड़ा है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में पिछले सवा साल से आरपार की लड़ाई चल रही है। कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद भी दोनों गुटों के नेता झुकने को तैयार नहीं है। इस कारण राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के समक्ष असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दोनों ही गुटों के नेता अपने-अपने समर्थकों को लामबंद करने में लगे हुए हैं।
कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राजस्थान में सचिन पायलट समर्थकों को भी पर्याप्त सम्मान मिले व उन्हें भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए। इसके लिए कांग्रेस आलाकमान द्वारा पूरी कवायद की जा रही है। मगर राजस्थान में मंत्रिमंडल में फेरबदल व राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पा रही है। अशोक गहलोत चाहते हैं कि मंत्रिमंडल का सिर्फ विस्तार किया जाए। मंत्रिमंडल में रिक्त स्थानों पर नए मंत्रियों की नियुक्ति हो। किसी भी वर्तमान मंत्री को हटाया नहीं जाए। जबकि कांग्रेस आलाकमान के पास राजस्थान सरकार के कई मंत्रियों के खिलाफ लंबी-चौड़ी शिकायतें पहुंच रही हैं। वहीं, सचिन पायलट भी अपने समर्थक छह विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करवाना चाहते हैं। जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पायलट समर्थक तीन विधायकों को ही मंत्री बनाने की जिद पर अड़े हैं। पायलट खेमे से मंत्री बनने वाले तीन विधायकों का चयन भी मुख्यमंत्री गहलोत अपनी मर्जी से करना चाहते हैं जो पायलट को मंजूर नहीं है।
पिछले महीने दिल्ली से वरिष्ठ नेता लगातार राजस्थान का दौरा कर गहलोत को मनाने का प्रयास करते रहे। मगर बात नहीं बन पाई। कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, राजस्थान के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी इसी सिलसिले में राजस्थान का दौरा कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलकर पायलट गुट को समायोजित करवाने का प्रयास कर चुके हैं। राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने तो लगातार तीन दिनों तक कांग्रेस के सभी विधायकों, बसपा से आए छह विधायकों, सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों से फीडबैक ले चुके हैं। फीडबैक के दौरान अधिकांश विधायकों ने माकन से सरकार में शामिल कई मंत्रियों की जमकर शिकायतें भी की थी।
अपनी तीन दिवसीय यात्रा के बाद दिल्ली रवानगी से पूर्व पत्रकारों से बातचीत में माकन ने तो इतना कह दिया था कि मैं ही दिल्ली हूं। उनका इशारा था कि वह जो निर्णय करेंगे वही कांग्रेस आलाकमान का निर्णय माना जाएगा। मगर मकान द्वारा लिए गए फीडबैक का अभीतक कोई नतीजा नहीं निकला है। वहीं मुख्यमंत्री गहलोत के नजदीकी स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने यहां तक कह दिया था कि राजस्थान में तो कांग्रेस के एकमात्र आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही हैं। जैसा गहलोत चाहेंगे वैसा ही राजस्थान में होगा। धारीवाल के बयान को माकन के मैं ही दिल्ली हूं वाले बयान का जवाब माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धारीवाल से बयान दिलवाकर गहलोत ने माकन को भी उनकी सीमा में बांध दिया है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी राजस्थान का पूरा मामला हैंडल कर रही हैं। सचिन पायलट की बगावत के बाद प्रियंका गांधी के प्रयासों से ही पायलट फिर से पार्टी के साथ आ गए थे। उस समय प्रियंका गांधी ने पायलट से वादा किया था कि उनकी सभी समस्याओं का समाधान करवाया जाएगा और पार्टी में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया जाएगा। प्रियंका गांधी के प्रयासों से ही गहलोत व पायलट के मध्य उपजे विवादों को दूर करवाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने वरिष्ठ नेताओं अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल व अजय माकन की तीन सदस्य समिति बनाई थी। उस समिति को पायलट व गहलोत के मध्य सुलह करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
मगर अचानक ही समिति के वरिष्ठ सदस्य अहमद पटेल का कोरोना से निधन हो जाने के कारण आगे की प्रक्रिया रुक गई। लेकिन कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर समिति के दोनों सदस्य केसी वेणुगोपाल व अजय माकन जयपुर आकर वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। उनका प्रयास है कि प्रियंका गांधी द्वारा सचिन पायलट से किए गए वायदे को पूरा किया जाए।
इसी कवायद में दिल्ली से वरिष्ठ नेताओं को जयपुर भेजा जा रहा है। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपनी बात पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि पायलट की बगावत के समय पार्टी का साथ देने वाले विधायकों व मंत्रियों को पहले तरजीह मिलनी चाहिए। चूंकि पायलट ने बगावत कर एक तरह से गहलोत सरकार को उखाड़ने का पूरा प्रयास किया था। मगर पार्टी विधायकों, मंत्रियों, बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों व निर्दलीय विधायकों के समर्थन से पायलट व भाजपा के मंसूबे पूरे नहीं हो पाए थे।
ऐसे में पायलट समर्थकों को तरजीह मिलने से पार्टी में अनुशासनहीनता की घटनाएं बढ़ेगी और भविष्य में फिर कोई नेता पार्टी से बगावत की हिम्मत करेगा। इसलिए पायलट व उनके समर्थक विधायकों को अपनी गलती के लिए कुछ समय तक सत्ता से दूर रहकर प्रायश्चित करवाना चाहिए। ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो सके। पायलट की बगावत के कारण राजस्थान में कांग्रेस सरकार की आमजन में छवि खराब हुई थी तथा बेवजह एक महीने तक सभी विधायकों, मंत्रियों को होटलों की बाड़ेबंदी में रहना पड़ा था। गहलोत का मानना है कि कम समय में पार्टी ने पायलट को बड़े-बड़े पदों पर बैठाने के बावजूद अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने पार्टी से दगा किया था। जिसकी सजा उनको मिलनी ही चाहिए।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोरोना के पहले चरण के प्रारंभ होने के बाद से ही अधिकांश समय अपने सरकारी आवास से ही कार्य कर रहे हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर वह अपने आवास से बाहर भी नहीं निकले हैं। पिछले दो महीनों से तो मुख्यमंत्री गहलोत अपने आवास पर भी किसी से व्यक्तिगत नहीं मिलकर सिर्फ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही बात कर रहे थे। दो महीने के बाद 15 अगस्त के दिन पहली बार गहलोत अपने सरकारी आवास से बाहर निकलकर कुछ कार्यक्रमों में शामिल हुए थे।
आगामी नौ सितंबर से विधानसभा का मानसून सत्र आहूत किया जा रहा है। ऐसे में संभावना है कि मंत्रिमंडल का विस्तार भी उसके बाद ही किया जाएगा। मुख्यमंत्री गहलोत ने जितनी सख्ती पायलट को लेकर दिखाई है। वैसा कड़ा रुख उन्होंने उससे पहले कभी नहीं किया। इसलिये लगता है कि राजस्थान की राजनीति में अंततः वही होगा जो अशोक गहलोत चाहेंगे। पायलट कितना भी भागदौड़ कर लें, गहलोत की मर्जी के बिना राजस्थान में कुछ भी नहीं होने वाला है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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