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    Rajasthan: ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के कारण लगा गहलोत-पायलट विवाद पर ब्रेक, असल लड़ाई CM पद की

  • December 25, 2022

    जयपुर । राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच भले ही विवाद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ (‘Bharat Jodo Yatra’) की वजह से कुछ दिनों के लिए थम गया हो, लेकिन लगता नहीं की हमेशा के लिए ब्रेक लगा है। दरअसल, गहलोत और पायलट के बीच असल लड़ाई (real fight) मुख्यमंत्री पद (Chief Minister’s post) के लिए है, जिसपर अब तक कांग्रेस आलाकमान (Congress high command) ने कोई भी फैसला नहीं किया है। विधानसभा चुनाव होने में सिर्फ एक साल का समय ही बचा है और पार्टी अब तक इसी ऊहा-पोह में फंसी हुई है कि राज्य में नया नेतृत्व दिया जाए या फिर गहलोत को ही जारी रखें। 25 सितंबर को गहलोत के करीबी विधायकों द्वारा की गई बगावत के बाद माना जाने लगा था कि जल्द ही राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हो जाएगा, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका।


    राजस्थान में कांग्रेस का भविष्य हैं पायलट
    राजस्थान में सचिन पायलट को कांग्रेस का भविष्य माना जाता है। राज्य में कांग्रेस का कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जिसकी लोकप्रियता पायलट की तरह दिखाई देती हो। हालांकि, पायलट पर साल 2020 के मध्य में की गई ‘बगावत’ हर बार भारी पड़ जाती है, जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा विधायकों का समर्थन नहीं हासिल हो सका। हालांकि, पायलट गुट का कहना है कि यदि प्रत्येक विधायकों से उनकी राय पूछी जाए तो गहलोत के बजाए सचिन पायलट का पलड़ा भारी होगा। पायलट को एक इंटरव्यू में गद्दार कहने वाले अशोक गहलोत भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। आलाकमान से स्पष्ट संकेत मिलने के बाद भी गहलोत ने हार नहीं मानी और अब तक मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष जैसा पद भी छोड़ दिया।

    राजस्थान में भी हिमाचल जैसा ट्रेंड
    राजस्थान में विधानसभा चुनाव का इतिहास देखा जाए तो पता चलता है कि पिछले कई चुनावों से हर पांच साल में सत्ताएं बदलती रही हैं। यही ट्रेंड हिमाचल प्रदेश में भी पिछले तीन दशकों से रहा और इसका फायदा इस बार कांग्रेस को मिला। हर पांच साल में सरकार बदलने के ट्रेंड के हिसाब से देखें तो बीजेपी के लिए आगामी चुनाव राहतभरा हो सकता है। प्रदेश में गहलोत सरकार के खिलाफ बेरोजगारी, एंटी इनकमबेंसी समेत कई प्रमुख मुद्दे हैं, जिसपर कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ सकता है। राजस्थान की राजनीति को समझने वाले जानकार कहते हैं कि पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने के पीछे एक वजह यह भी हो सकता है कि कांग्रेस को समझ आ गया है कि आगामी चुनाव में पार्टी को झटका लग सकता है। ऐसे में सचिन पायलट, जोकि राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में कांग्रेस के लिए लोकप्रिय चेहरा हैं, को चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बनाकर उनकी छवि को खराब क्यों किया जाए? यदि आगामी चुनाव कांग्रेस के पक्ष में नहीं जाते हैं तो फिर पंजाब की तरह ही कांग्रेस का दांव राजस्थान में भी खराब हो जाएगा।

    सीएम बनाया तो चन्नी की तरह न हो जाए हश्र
    पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को विधानसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्हें काम करने का मौका नहीं मिला। पंजाब का पहला दलित सीएम होने के बाद भी चन्नी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को पंजाब चुनाव में बुरी तरह से पराजित किया। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इसी प्रकार से पायलट को यदि कमान सौंपी जाती है तो उन्हें भी बतौर मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के लिए काफी कम समय मिलेगा। इस वजह से कांग्रेस आलाकमान पायलट को अगले साल दस राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के रूप में काम करवाने पर ज्यादा विचार कर रहा है। उल्लेखनीय है कि पायलट ने हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस की ओर से स्टार प्रचारक की भूमिका निभाते हुए प्रियंका गांधी के साथ कई रैलियां की थीं, जिसकी वजह से पार्टी ने बुरे दौर से गुजरने के बाद भी जीत दर्ज की।

    कांग्रेस और पायलट दोनों को किसमें लाभ?
    ‘मनीकंट्रोल’ के अनुसार, एक्सपर्ट मानते हैं कि राजस्थान के अगले विधानसभा चुनाव में गहलोत अपना आखिरी चुनाव होने का इमोशनल कार्ड भी खेल सकते हैं, जिसका कुछ प्रतिशत लाभ होने की भी संभावना है। इसके अलावा, यदि गहलोत को पार्टी राजस्थान तक सीमित रखकर पायलट को केंद्रीय स्तर तक ले जाती है तो उससे पायलट और कांग्रेस, दोनों को ही लाभ मिलेगा। कांग्रेस के पास एक राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा चेहरा मिल जाएगा, जिसे लोग घंटों सुनना पसंद करते हैं और जिसकी युवाओं तक पहुंच भी है। वहीं, पायलट को भी फायदा मिलेगा कि वे गांधी परिवार और कांग्रेस आलाकमान के साथ रहकर ज्यादा समय तक काम कर सकेंगे, जिससे पार्टी नेतृत्व का उन पर विश्वास और बढ़ सकेगा।

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