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राजस्थानः ‘मिशन 2023’ के लिए भाजपा तैयार

– रोहित पारीक

राजस्थान में साल 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा अभी से इलेक्शन मोड में है। ‘मिशन 2023’ फतेह करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में दौरे और प्रवास के कार्यक्रम तेज कर दिए हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसकी कमान संभाल ली है। दूसरी तरफ कांग्रेस में गहलोत-पायलट खेमों में फिर कोल्ड वॉर शुरू हो गया है।

पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने जयपुर में दो दिन का प्रवास कर संगठनात्मक बैठकें ली थीं। इस दौरान लिए गए फीडबैक के आधार पर जो रिपोर्ट पार्टी आलाकमान तक पहुंची, उसके आधार पर ही नड्डा और शाह ने वरिष्ठ नेताओं के बीच चल रही गुटबाजी और चेहरे की लड़ाई खत्म करने का प्लान बनाया है। इसके लिए पार्टी के प्रमुख नेता अब लगातार कुछ-कुछ माह के अंतराल में राजस्थान के प्रवास पर रहेंगे। यह प्रवास और दौरे जयपुर तक सीमित न रहकर अलग-अलग संभाग और जिलों में रहेंगे। इस दौरान पार्टी के शीर्ष नेता आम कार्यकर्ता और नेताओं में इस बात का भी मैसेज देंगे कि चुनाव सिर्फ मोदी के चेहरे और कमल के निशान पर लड़ा जाएगा। चेहरा तय होगा तो भी सियासी शक्ति प्रदर्शन से नहीं, बल्कि पार्लियामेंट्री बोर्ड के निर्णय से ही होगा।

पार्टी नेतृत्व ने तय किया है कि आला नेताओं के दौरे और प्रवास अब अलग-अलग संभाग और जिलों में रखे जाएंगे। फोकस उन क्षेत्रों पर रहेगा, जहां पर पिछले चुनाव की दृष्टि से भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर है। हाल ही में जेपी नड्डा सवाई माधोपुर आए थे और अब बीकानेर संभाग के हनुमानगढ़ और सूरतगढ़ में उनका कार्यक्रम होगा। यह वो इलाका है जहां किसान आंदोलन के चलते भाजपा की स्थिति पिछले एक से डेढ़ साल में कमजोर हुई थी और इसका फायदा आम आदमी पार्टी सहित अन्य राजनीतिक दल उठाना चाह रहे थे। नड्डा इस इलाके में 10 और 11 मई को दौरा कर पार्टी को मजबूती देने का काम करेंगे।

बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की फीडबैक रिपोर्ट में यह भी जाहिर किया गया था कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के उन तमाम सक्रिय नेताओं को भी मुख्यधारा से जोड़ना है, जो पार्टी में रहकर भी पार्टी से जुड़ी गतिविधियों से दूर हैं। अब पार्टी के शीर्ष नेताओं के अलग-अलग इलाकों में बनने वाले प्रवास के दौरान पार्टी ऐसे नेताओं को भी पार्टी की गतिविधियों से जोड़ने का काम शुरू करेगी।

प्रदेश इकाई ने इस दिशा में काम शुरू कर भी दिया है। जेपी नड्डा ने सवाई माधोपुर में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के विशेष सम्मेलन को संबोधित किया था। उसके बाद अब जनजाति क्षेत्र में ही मोर्चे की बड़ी बैठक रखी गई, जिसमें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ मोर्चे के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी शामिल हुए। बताया जा रहा है कि मई के अंत तक केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी आदिवासी क्षेत्रों के 2 से 3 दिनों के प्रवास पर आ सकते हैं। मतलब साफ है कि पार्टी आदिवासी क्षेत्र में बढ़ रही बीटीपी और कांग्रेस की पकड़ को कमजोर करने और भाजपा की पकड़ मजबूत करने में जुटी है और इसी के तहत यह कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं।

पार्टी के शीर्ष नेताओं के राजस्थान में होने वाले दौरे का एक मकसद नेताओं के बीच चल रहे गतिरोध को तोड़कर उन्हें एक जाजम पर बैठाना भी है। खासतौर पर वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे दिग्गज नेताओं के बीच एकजुटता बढ़ाने के लिए नेताओं के प्रवास और दौरे महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। पिछले दिनों जेपी नड्डा ने दिल्ली में राजस्थान के प्रमुख नेताओं की बैठक में एकजुटता का संदेश दिया था। अब आगामी दिनों में अपने दौरे और प्रवास के जरिए पार्टी आलाकमान यह फीडबैक जुटाएगा कि एकजुटता के साथ राजस्थान में काम हो रहा है या नहीं। यदि उसमें कुछ कमी होगी तो उसे दुरुस्त करने के लिए कुछ बड़े निर्णय भी लिए जा सकते हैं।

दूसरी तरफ राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच एक बार फिर से खींचतान बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं। दोनों खेमों में 15 दिन से तल्खी बढ़ती हुई दिख रही है। सीएम अशोक गहलोत इस बार लगातार हमलावर रुख अपनाए हुए हैं। करीब 20 दिनों में अलग-अलग मौकों पर सीएम के बयानों पर गौर करें तो पायलट कैंप के प्रति नाराजगी साफ झलकती है।

इधर, सचिन पायलट ने भी लंबे समय से सीएम गहलोत के साथ मंच साझा नहीं किया। उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर से पहले राजस्थान में ऊपरी तौर पर भले सब कुछ ठीक दिख रहा हो, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे कुछ समय की शांति मान रहे हैं। आगे भी कई मुद्दों पर गहलोत-पायलट खेमों के बीच तल्खी बढ़ने के आसार बन रहे हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट हाल ही सोनिया गांधी से मिल चुके हैं। हाईकमान से मुलाकातों के बावजूद गहलोत-पायलट के बीच तल्खी कम नहीं हुई है। दोनों नेताओं के समर्थक हर दिन सोशल मीडिया पर भिड़ रहे हैं।

राजस्थान में चुनाव में डेढ़ साल से कम का समय बचा हुआ है। गहलोत पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने और बजट के दम पर सरकार रिपीट करने का दावा कर रहे हैं। पायलट ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कहा था कि हमें सरकार बदलने की परिपाटी तोड़नी है। इसके लिए राजस्थान में बहुत मेहनत करनी होगी। पायलट गहलोत की स्टाइल से सहमत नहीं है। कांग्रेस में खींचतान की वजह से अब तक जिला और ब्लॉक स्तर पर संगठन पदाधिकारी ही नहीं बन सके हैं। पायलट सरकार और संगठन में बाकी पड़ी नियुक्तियों को जल्द करने की पैरवी कर रहे हैं। सरकार-संगठन में गहलोत समर्थकों को ज्यादा महत्व मिलने से भी पायलट नाराज बताए जा रहे हैं।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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